क्या हम पहनावे से आधुनिक माने जायेंगे या सोच से !– विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन भोपा

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वैसे खान -पान पूजा -पाठ कपडा पहनना ये सब व्यक्ति की व्यक्तिगत /निजता हैं इसमें किसी को कोई विवाद ,तर्क ,समझाइश देने या करने की जरुरत नहीं हैं .पर जब मर्यादाओं की सीमाओं का उल्लंघन होने पर उन पर प्रतिबन्ध लगाने की जरुरत क्यों पड़ती हैं .
आज खान पान पहिनावा पर बहुत अधिक चर्चा के साथ विवाद हो रहा हैं .जैसे खान पान में आजकल पश्चिमी खान पान ने हमारे देश की पारम्परिक खान पान में ऐसी सेंध लगाई हैं .इस समय होटल और हॉस्पिटल का व्यापार बहुत फलफूल रहा हैं क्योकि दोनों एक दूसरे के पूरक हैं .
आक्रामिक बाज़ारीकरण के कारण विज्ञापनों के हमें मानसिक गुलाम के साथ पंगु बना दिया हैं की उससे बाहर नहीं निकल पा रहे हैं .यह बहुत बड़ी और दूरगामी सोची समझी राजनीति .रणनीति हैं .आज महंगाई के एक बहाना लेकर परिवार के प्रत्येक सदस्य कमाई करने वाला बनाया .मशीनी उपकरण की उपलब्धता जैसे फ्रिज ,वाशिंग मशीन ,मिक्सी ,चक्की .टीवी ,मोबाइल आदि से और शारीरिक और मानसिक गुलाम बनाकर समय का कृतिम अभाव बनाकर अन्य क्रिया कलापों में उलझाकर रखना जैसे इंटरनेट ने अधिकांश लोगों को एकाकी बना दिया .इससे हमें सब क्षेत्रों का ज्ञान बहुत जल्दी और सुगमता से उपलब्ध होने से वे हम सब काल्पनिक और आभासी दुनिया में जी रहे हैं .इससे बचे तो व्यसन और अपराध की दुनिया में चले गए .
आज हमारे घरों में खान पान की सामग्री भी बने बनाये आने से हम रासायनिक और मिलावटी खाद्य खाने से हम अनेक बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं और खाने के साथ दवाइयों का उपयोग बराबरी से होने के कारण हमारी आमदनी का बहुत बड़ा हिस्सा होटल और हॉस्पिटल में जा रहा हैं .उससे बची राशि हमारे परिधानों और वस्त्रों में हो रहा हैं .आज नवयुवक और नौकरी करने वाले घर ,कार के साथ अन्य घरेलु सामान क़र्ज़ या लोन से लेने से उनका बचा धन उसको चुकाने में जाने से वे बचत नहीं कर प् रहे हैं जिससे वे अधिक तनाव और अवसाद में रह रहे हैं .
हम आधुनिक बनते जा रहे हैं और बन चुके हैं पर हम उसे व्यवहारिक धरातल में नहीं उतार पा रहे हैं .आज कल महिलाओं के पहनावे पर बहुत अधिक विवाद के साथ तर्क वितर्क हो रहे हैं .अंग प्रदर्शन के साथ छोटे छोटे कपडे पहनने पर उनका अपना तर्क हैं और होना भी चाहिए .पर वे स्वयं इस प्रकार के पहने हुए अन्य महिलाओं और अपनी पुत्री ,बहिन. बहु को देखकर प्रसन्न और ख़ुशी महसूस करती हैं .क्या ऐसे वेशभूषा में वे अपनी माँ, बाप ,भाई ,चाचा ,दादा के सामने सुखद अनुभूति करती हैं या नहीं .तब अन्य पुरुषों से क्या अपेक्षा करना इसका स्वयं निर्णय ले .क्योकि बलात्कार छेड़खानी के अपराध में उनके कपड़ों का कारण भी हो सकता हैं या माना जाता हैं .
ड्रेस / यूनिफार्म हमें अनुशासन सिखाता हैं ,क्या मिलिटरीमैन ,पुलिस .वकील, डॉक्टर,विद्यार्थीअपनी यूनिफार्म से पहचाने जाते हैं .आज हम इतने आधुनिक होने के बावजूद पर भी गुरुद्वारा ,मस्जिद में एक प्रकार की ड्रेस में ही प्रवेश दिया जाता हैं वहां कोई समझौता नहीं होता हैं पर हमारे जैन मंदिरों में हिन्दू मंदिरों में कोई नियम धर्म नहीं हैं कुछ भी पहनकर जाना जैसे छोटे छोटे कपडे , पारदर्शी ड्रेस पहनना और तंग चुस्त कपडे पहनकर अंगों का दिखावा करने से क्या वे स्वयं अच्छा महसूस करती हैं .उनके पहनावे से अन्य लोग भी आकर्षित होते हैं और उनका ध्यान भगवान् की ओर न जाकर उनके अंगो और उनकी सुंदरता को देखने को विवश हो जाते हैं .
इसी को ध्यान रखकर कई जैन मंदिरों और हिन्दू मंदिरों में उचित परिधान पहनकर प्रवेश मिलेगा अन्यथा उन्हें वापिस कर दिया जायेगा और हो सकता हैं उनको बेइज्जती का सामना हो सकता हैं .
मंदिरों में प्रवेश ऐसी ड्रेस में जाए जो स्वयं के साथ दूसरे को भी अच्छा लगे .हां अपने निजी घर में वे निर्वस्त्र रहे कोई को कोई आपत्ति नहीं हैं पर जब हम सामाजिक ,धार्मिक ,पारिवारिक क्षेत्रों में वहां के अनुकूल क्यों पहनते हैं .
परिधान से व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रदर्शित होता हैं .हमारा कहना हैं आधुनिकता जरूर अपनाओ पर अपनी सीमा में और अपनी संस्कृति को बचाओ .कम या छोटे पहनावे से कोई भी उनकी प्रशंसा नहीं नहीं करता और यदि वे स्वयं अपने आपको ऐना के सामने खड़े होकर देखो और कैसी लग रही हूँ और अन्य मुझे देखकर कैसी दृष्टि या प्रतिक्रिया देंगे .
कपडे इज्जत ढांकने के लिए होते हैं .अंग प्रदर्शन के लिए निर्वस्त्र रहना ही सबसे सस्ता और सुलभ साधन हैं .एक बार ऐसा करके देखो .
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू, नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026 मोबाइल ९४२५००६७५३

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