आपके जीवन को विधयों का पलायन कर देगी सिद्धों की आराधना ।”भावलिंगी संत आचार्य श्री विमर्शसागर जी

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जैनधर्म में पंच परमेष्ठियों का विशिष्ट स्थान माना गया है। अरहंत सिद्ध जी, आचार्य परमेळी उपाध्याय परमेष्ठी और साधु परमेष्ठी: इन पाँचों ही परमेष्ठी भगवतों में सिक परमेष्टी का स्थान सर्वोपरि – सर्वोत्कृष्ट हैं। बन्धुओ ! आपके घर में कोई सामान्य नेता आए अथवा कोई मंत्री आए अथवा मुख्यमंत्री आए अथवा कभी प्रधानमंत्री आए तो आपकी तैयारियों और आपकी खुशी उत्तरोत्तर बड़ती ही जाएगी। वैसे ही जब आपके नगर में कोई पण्डितजी, त्यागीकृती आए अपना कोई एलक जी. क्षुल्लकजी आयें अथवा कोई मुनिराज आयें अथवा आचार्य परमेष्ठी आयें अथवा अरहंत परमेष्ठी का सानिध्य प्राप्त हो तो आपकी खुशी, आपके आनन्द में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जाती है और जब सर्वोत्कृष्ट – सर्वोत्तम सिद्ध भगवन्तों की आराधना का महान सौभाग्य प्राप्त हो, तो निश्चित ही हमारे अंतरंग में आनन्द की, सुशियों की कोई सीमा नहीं रहती अर्थात् सिद्धों की आराधना में सतत अपूर्व और असीमित आनन्द की अनुभूति हुआ करती है। ऐसा महामंगलकारी उद्‌बोधन सिद्धचक्र महामण्डल विधान की आराधना के पूर्व परम पूज्य भारलिंगी संत आचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज ने धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए दिया ।
सिद्धचक्र महामण्डल विधान का माहात्म्य बताते हुए आचार्यश्री ने कहा सिद्ध परमेष्ठी भगवान सम्पूर्ण लोक में सर्वोत्कृष्ट है, आत्मा के अनंत शुद्ध गुणों को उन्होंने प्रगट कर लिया है, उन्हें अब कुछ भी करने की अवशेष नहीं रहा है अतएव वे कृतकृत्य हो चुके हैं, ऐसे अनन्तानन्त सिद्ध भगवान लोकाग्र में विराज मान हैं। सदाकाल अपने स्वभाव में स्थित ऐसे अनन्तानन्त सिद्ध भगवन्तों की जो भी प्राणी भावपूर्वक आराधना करता है उसके जीवन से सभी प्रकार की विघ्न-नाधायें और संकट क्षणभर में पलायन कर जाते हैं, ऐसी ही महिमा हम न्चिरकाल से देखते आ रहे हैं।
17 मार्च, से 25 मार्च तक धर्मनगरी एटा में हो रही है, “सिद्धों के प्रेमी भावी सिद्धों के सानिध्य में अनन्तानन्त सिद्ध भगवन्तों की महा आराधना । सिद्धचक्र महामण्डल विधान एवं विश्वशान्ति महायन्त आयोजन के प्रथम दिवस आचार्य श्री विमर्शद्यागर जी महामु‌निराज के सानिध्य एवं ‘आशीर्वाद एवं प्रतिष्ठाचार्य पण्डित संकेत जैन ‘विवेक’ देवेन्द्रनगर के कुशल निर्देशन में प्रातः काल देव-आत्ता, गुरु-आता ली गई, नगर में घटयात्रा निकाली गई पुनः जिनालय में पहुंचकर ध्वजारोहण किया गया पश्चात श्रीजी का अभिषेक एवं विश्वशान्ति की कामना से शान्तिधारा की गई सिद्धों की महा-आराधना में मुख्य पात्रों के रूप में डॉ. शैलेन्द्र – डॉ. रूपा जैन, श्री आनन्द जैन (पारस ज्वेलर्स), श्री कुलदीप जैन (करुणा प्रेस) आदि अनेकों सुधी श्रावकों ने आराधना में भाग लेकर अपना सौभाग्य वर्षित किया है।

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