तीर्थंकर महावीर स्वामी की तपस्थली अवंतिका उज्जैन में ऐतिहासिक धर्म प्रभावना के साथ सम्पन्न हुआ

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उज्जैन। प.पू. मुनि श्री सुप्रभसागरजी -मुनि श्री प्रणत सागर जी महाराज के पावन सान्निध्य में उज्जैन के इतिहास में प्रथम बार सम्पन्न हुआ इन्द्रध्वज महामण्डल विधान। विधि विधान पं. अजित शास्त्री, ग्वालियर एवं  पं. अखिलेश जैन शास्त्री, रमगढ़ा ने कराया। 23 जुलाई को घटयात्रा के साथ श्रीजी एवं मुनिश्री पहुँचे आयोजन – ‘स्थल श्री गुजराती समाज धर्मशाला जहाँ ध्वजारोहण, महेन्द्र गंगवाल परिवार ने किया तो मण्डप उद्‌घाटन नरेन्द्रकुमार, नीरज सौगानी परिवार ने किया।
हस्तिनापुर से आये 458 प्रतिष्ठित जिनबिम्ब विराजित किये गये, जिनबिम्बों का  प्रथम अभिषेक करने का सौभाग्य सत्येन्द्र जैन एवं सौधर्म इन्द्र अनिल जैन सीमेंट ने प्राप्त किया। कंठस्थ कलाकेन्द्र से आये सत्येन्द्र शर्मा दिल्ली ने प्रतिदिन सांस्कृतिक प्रस्तुतियां प्रदान की।
इस मौके पर मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने कहा कि 458 अकृत्रिम जिनालय में विराजित जिनबिम्बों के शिखरोंबपर जाकर इन्द्रगण ध्वजा स्थापित करते हैं इसलिए इन्द्रध्वज नाम सार्थक है।
इन्द्रध्वज महामण्डल विधान सीमित साधनों से असीमित पुण्य कमाने का साधन है।
कुबेर इन्द्र-हीरालाल बिलाला, महायज्ञ – ताराचंद जैन, यज्ञ नायक विजय बुरखारिया के साथ-साथ लगभग 500 इन्द्र-इन्द्रानियों ने की इन्द्रध्वज के माध्यम की जिन-अर्चना । विधान के मध्य में 30 जुलाई को मुनिश्री द्वारा सृजित कृति ‘चिन्ता का चिन्तन’ का विमोचन किया गया। 01 अगस्त को गय रथयात्रा के माध्यम से निकाली गई जिनबिम्बों की उज्जैन के इतिहास में प्रथम बार भव्य शोभायात्रा।
-डॉ सुनील जैन संचय

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