*वेदचन्द जैन।*
पदों पर विराजमान जनों को पदानुरूप दायित्व निभाना चाहिए। उपयुक्त दायित्व का निर्वहन न करना अपराध है।इन्हें कर्मसिद्धान्त के न्यायालय में अनिवार्यतः दंड मिलेगा/ मिलता है। जो दायित्व न निभा सके उसे अविलंब पद त्याग देना चाहिए।
कानपुर से कुण्डलपुर पदविहार करते हुये मध्यप्रदेश के छतरपुर में विराजमान निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर महाराज ने कहा कि पद लालसाओं की पूर्ति का साधन नहीं है, सेवा और दायित्व निभाने का संकल्प है। मंदिर की समितियों, समाज की कमेटियों में पद पाने के लिये लालायित जन ये अच्छे से समझ लें,आप जिस पद पर हैं उसका दायित्व अपेक्षा से अधिक निभायें। आप पद के साथ न्याय नहीं कर पा रहे हैं तो अविलंब पद त्याग दें। ऐसे अनेक उदाहरण हैं पदाधिकारी वर्षों से पदों पर बैठे हैं और कर्तव्यों से विमुख हैं। न स्वयं कुछ करते हैं तथा योग्य जनों को कार्य करने से वंचित रखते हैं।
श्रमण साधना शिखर संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के सुयोग्य शिष्य मुनिपुंगव श्री सुधासागरजी महाराज ने कहा कि ऐसे पदाधिकारियों को कर्म के न्यायालय का दंड अवश्य मिलता है/ मिलेगा।कर्मसिद्धांत के न्यायालय में क्षमा का कोई प्रावधान नहीं है।ऐसे पदारूढ़ों को तत्काल पद त्याग देना चाहिए। आपने बताया कि इन्हें अंतराय कर्म और दरिद्र नामकर्म का दोष लगता है।
*वेदचन्द जैन*