राष्ट्रीय पोषण सप्ताह

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पोषण या पोषण इस बात का अध्ययन है कि शरीर भोजन में सभी आवश्यक पोषक तत्वों का उपयोग ईंधन और पोषण के लिए कैसे करता है। किसी व्यक्ति का पोषण, या पोषण, उसके जन्म के दिन से ही शुरू हो जाता है और उसके दुनिया छोड़ने तक जारी रहता है
राष्ट्रीय पोषण सप्ताह (एनएनडब्ल्यू), भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, खाद्य और पोषण बोर्ड द्वारा शुरू किया गया वार्षिक पोषण कार्यक्रम है। यह कार्यक्रम पूरे देश में प्रतिवर्ष 1 से 7 सितंबर तक मनाया जाता है। पोषण सप्ताह मनाने का मुख्य उद्देश्य बेहत्तर स्वास्थ्य के लिए पोषण के महत्व पर जागरूकता बढ़ाना है, जिसका विकास, उत्पादकता, आर्थिक विकास और अंततः राष्ट्रीय विकास पर प्रभाव पड़ता है।
प्रत्येक वर्ष पोषण सप्‍ताह स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण राष्‍ट्रीय पोषण सप्‍ताह मनाता है जिसमें इस अवधि के दौरान बच्‍चों के स्‍वास्‍थ्‍य की रक्षा और उनकी बेहतरी में उचित पोषण के महत्‍व के बारे में जन जागरूकता पैदा करने के लिए एक सप्‍ताह का अभियान चलाया जाता है।
नवजात शिशु एवं बाल आहार प्रथाओं को अधिकतम बढ़ावा देने के लिए मंत्रालय ने “मां- मां की असीम ममता” कार्यक्रम शुरू किया है ताकि देश में स्‍तनपान का दायरा बढ़ाया जा सके। मां कार्यक्रम के अंतर्गत स्‍तनपान को बढ़ावा देने के लिए जिला और ब्‍लॉक स्‍तर पर कार्यक्रम प्रबंधकों सहित डॉक्‍टरों, नर्सों और एएनएम के साथ करीब 3.7 लाख आशा और करीब 82,000 स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ताओं को संवेदनशील बनाया गया है और 23,000 से ज्‍यादा स्‍वास्‍थ्‍य सुविधा कर्मचारियों को आईबाईसीएफ प्रशिक्षण दिया गया है। साथ ही उपयुक्‍त स्‍तनपान परंपराओं के महत्‍व के संबंध में माताओं को संवेदनशील बनाने के लिए ग्रामीण स्‍तरों पर आशा द्वारा 1.49 लाख से अधिक माताओं की बैठकें आयोजित की जा चुकी हैं।
सप्‍ताह के दौरान कार्यक्रम
इस सप्‍ताह के दौरान कार्यक्रम प्रबंधकों के साथ माताओं की बैठकें और ब्‍लॉक/जिला स्‍तर की कार्यशालाओं के आयोजन की भी योजना जाती  है। समुदाय में आईबाईसीएफ प्रथाओं में परिवर्तन लाने और जागरूकता बढ़ाने के लिए आंगनबाड़ी केन्‍द्रों में ग्रामीण स्‍तर पर ग्राम स्‍वास्‍थ्‍य और पोषण दिवस आयोजित किया जाता है । इसके अलावा “सार्वजनिक सुविधाओं में स्‍तनपान प्रबंधन केन्‍द्रों पर राष्‍ट्रीय दिशा निर्देश  हाल ही में जारी किए गए हैं ताकि स्‍तनपान प्रबंधन केन्‍द्रों की स्‍थापना को आसान बनाया जा सके और बीमार और समय से पूर्व जन्‍मे बच्‍चों को सुरक्षित मानव स्‍तन दुग्‍ध मिल सके।
स्‍तनपान की जानकारी देना
बच्‍चों के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए स्‍तनपान महत्‍वपूर्ण है। जन्‍म के एक घंटे के भीतर स्‍तनपान नवजात शिशुओं की मृत्‍यु के 20 प्रतिशत मामलों को कम कर देता है। नवजात शिशुओं को जिन्‍हें मां का दूध नहीं मिल पाता उनकी स्‍तनपान करने वाले बच्‍चों की तुलना में निमोनिया से 15 गुना और पेचिश से 11 गुना अधिक मृत्‍यु की संभावना रहती है। साथ ही स्‍तनपान नहीं करने वाले बच्‍चों में मधुमेह, मोटापा, एलर्जी, दमा, ल्‍यूकेमिया आदि होने का भी खतरा रहता है। स्‍तनपान करने वाले बच्‍चों का आईक्‍यू भी बेहतर होता है।
शैशवावस्था एवं प्रारंभिक बाल्यावस्था के दौरान उचित पोषण बच्चों को जीवन में बढ़ने, विकास करने, सीखने, खेलने, भाग लेने और समाज में योगदान करने योग्य बनाता है, जबकि कुपोषण संज्ञानात्मक क्षमता, शारीरिक विकास, प्रतिरक्षा प्रणाली को ख़राब करता है तथा बाद के जीवन में रोग (जैसे कि मधुमेह एवं हृदय रोग) उत्पन्न होने के ज़ोखिम को बढ़ाता है।
जबकि कुपोषण कई तरीकों से प्रकट हो सकता है, अंतिम उद्देश्य समस्त बच्चों को सभी रूपों में कुपोषण से मुक्त करना है। हालांकि, कई शिशुओं एवं बच्चों को उचित आहार नहीं मिलता है। उत्कृष्ट शिशु एवं बाल आहार पद्यति के माध्यम से बेहतर बाल स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाले महत्वपूर्ण उपाय निम्नलिखित है-
(क) गर्भावस्था से पहले एवं गर्भावस्था के समय तथा स्तनपान के दौरान पर्याप्त मातृ पोषण
(ख) स्तनपान को बढ़ावा देना
जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान कराना शुरू करना।
जीवन के प्रारंभिक छह महीने तक स्तनपान कराना।
रोग के दौरान स्तनपान कराना जारी रखना।
माताओं एवं परिवारों को अपने बच्चों को उत्कृष्ट स्तनपान कराने के लिए सहयोग की आवश्यकता है। एमएए (माताओं के पूर्ण स्नेह) राष्ट्रीय-स्तनपान प्रोत्साहन कार्यक्रम की शुरुआत उत्कृष्ट स्तनपान सहयोग, प्रोत्साहन एवं संरक्षण के दृढ़ प्रयास के साथ स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा की गयी है।
(ग) छह महीने की अवस्था में स्तनपान कराने के साथ पर्याप्त व सुरक्षित पोषण एवं अनुपूरक (ठोस) खाद्य पदार्थों की शुरुआत, जिसे दो वर्ष या उससे अधिक उम्र तक जारी रखना
अनुपूरक आहार के बारे में जानकारी देना
केवल माँ का दूध छह महीने की अवस्था के आसपास शिशुओं के पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं होता है, इसलिए स्तनपान के साथ अन्य खाद्य पदार्थों और तरल पदार्थों की आवश्यकता होती है। स्तनपान से परिवर्तनकाल में पारिवारिक खाद्य पदार्थों की शुरूआत को अनुपूरक आहार कहा जाता है। इसमें छह महीने से लेकर चौबीस महीने की अवधि (अपितु स्तनपान दो साल और उससे ऊपर हो सकता है) शामिल है।
यह विकास की महत्वपूर्ण अवधि है, जिसके दौरान पोषण के तहत पोषक तत्वों की कमी और बीमारी का योगदान पांच साल से कम उम्र के बच्चों में अधिक दर से होता है।
अनुपूरक आहार के लिए स्वस्थ सुझाव
अनुपूरक आहार समय पर होना चाहिए -छह महीने की अवस्था के बाद, सभी शिशुओं को स्तनपान के अलावा पूरक आहार देना शुरू करना चाहिए, शुरुआत में छह से आठ महीने की अवस्था के बीच दिन में दो से तीन बार दिया जाना चाहिए, नौ से ग्यारह  महीने की अवस्था में रोज़ तीन से चार बार दिया जाना चाहिए तथा बारह से चौबीस महीने की अवस्था में आवश्यकतानुसार अतिरिक्त पौष्टिक अल्पाहार के साथ प्रतिदिन एक से दो बार दिया जाना चाहिए।
अनुपूरक आहार पर्याप्त होना चाहिए- इसे स्तनपान कराने के दौरान पर्याप्त मात्रा में, लगातार, अनुकूल और बढ़ते बच्चे की पोषण संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों का उपयोग करके दिया जाना चाहिए।
खाद्य पदार्थों को उचित तरीके से तैयार किया जाना चाहिए एवं सुरक्षित तरह से परोसना जाना चाहिए-जिसमें बच्चे को उम्र के अनुसार पर्याप्त अनुपूरक आहार दिया जाना तथा मनोवैज्ञानिक-सामाजिक देखभाल के सिद्धांतों को अपनाकर उत्साहपूर्वक अनुकूल वातावरण में आहार दिया जाना शामिल है।
उत्साहपूर्वक अनुकूल आहार- दूध पीने वाले शिशुओं को सक्रिय देखभाल एवं प्रोत्साहन की आवश्यकता होती है, जिसमें देखभालकर्ता को भूख के लिए बच्चे के संकेत को समझना है तथा उसे बच्चे को खाने के लिए भी प्रोत्साहित करना है। इसे सक्रिय या उत्साहपूर्वक अनुकूल आहार के रूप में जाना जाता है।
विभागों की आपसी समन्वयन
कुपोषण बहुआयामी समस्या है; इसलिए, इसे बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। बेहत्तर बाल स्वास्थ्य के लिए विभिन्न क्षेत्र जैसे कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, महिला एवं बाल विकास (आईसीडीएस), विद्यालयी शिक्षा, ग्रामीण विकास, पंचायत राज, खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण, और कृषि एवं सहबद्ध क्षेत्र पोषण को बढ़ावा देने के लिए सहायता और सहयोग प्रदान कर रहे हैं।
साल 2021 में दुनिया के 76.8 करोड़ लोग कुपोषण का शिकार पाए गए, इनमें 22.4 करोड़ (29%) भारतीय थे। यह दुनियाभर में कुल कुपोषितों की संख्या के एक चौथाई से भी अधिक है।
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खाद्य उत्पादक देश है। दूध, दाल, चावल, मछली, सब्जी और गेहूं उत्पादन में हम दुनिया में पहले स्थान पर हैं। इसके बावजूद देश की एक बड़ी आबादी कुपोषण का शिकार है। संयुक्त राष्ट्र की ‘द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड 2022 की रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 के कोरोनाकाल के बाद लोगों का भूख से संघर्ष तेजी से बढ़ा है। साल 2021 में दुनिया के 76.8 करोड़ लोग कुपोषण का शिकार पाए गए, इनमें 22.4 करोड़ (29%) भारतीय थे। यह दुनियाभर में कुल कुपोषितों की संख्या के एक चौथाई से भी अधिक है।
यह एक स्पष्ट बात है कि बच्चों में कुपोषण होने के दो कारण हो सकते हैं – पहला तो यह कि देश-समाज में गंभीर खाद्य असुरक्षा की स्थिति हो, उत्पादन न हो रहा हो और प्राकृतिक संसाधनों की कमी हो।
दूसरा कारण यह हो सकता है कि शासन व्यवस्था नीति, नैतिकता और नियत के मानकों पर कमजोर हो। मध्यप्रदेश में निश्चित रूप से भोजन-पोषण के उत्पादन और उपलब्धता में कमी नहीं है। इस वक्त मध्यप्रदेश समग्रता में देश के सबसे ज्यादा भोजन उत्पादन करने वाले तीन राज्यों में शुमार होता है।
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104  पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड  भोपाल 462026  मोबाइल  ०९४२५००६७५३

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