मुनि श्री विनय सागर जी महाराज ससंघ सानिध्य मै आयोजित की गई आचार्य विद्यासागर जी महाराज के चरणों में विनयांजलि

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भिंड के ऋषभ सत्संग भवन में भिंड सकल दिगंबर जैन समाज द्वारा विनयांजलि जिन मंदिर जीर्णोद्वारक संत, प्रशांत मूर्ति श्रमण मुनि श्री 108 विनय सागर जी गुरुदेव ससंघ में सानिध्य आयोजित की गई आचार्य विद्यासागर जी गुरुदेव के चरणों में प्रथम विनयांजलि वीरेंद्र पंडित जी द्वारा पूज्य गुरुदेव के चरणों में अपने भाव प्रकट की इसी क्रम में रविसेन जैन जी, ओम प्रकाश बाबूजी अग्रवाल, संदीप मिश्रा जी, आनंद बेकरी, शैलू जैन,नीतेश जैन संगीता पवैया ने अपने अपने भाव प्रकट किए इस अवसर पर उपस्थित समाजजन द्वारा जैनाचार्य की त्याग, तपस्या, वात्सल्य को याद करते हुए नमन वंदन किया गया। लोगों ने कहा कि आचार्यश्री युगों-युगों तक जाने जाएंगे।उन्होंने आगे कहा कि वे हम सब के प्राण दाता राष्ट्रहित चिंतक परम पूज्य गुरुदेव ने विधिवत संलेखना विधिपूर्वक धारण कर ली थी पूर्ण जागृतावस्था में उन्होंने आचार्य पद का त्याग करते हुए 3 दिन के उपवास ग्रहण करते. उन्होंने अखंड मौन धारण कर लिया था शनिवार-रविवार की मध्य रात्रि को ब्रह्मलीन हो गये. परम पूज्य गुरुदेव ने पूरी जागृत अवस्था में नश्वर देह का चंद्रगिरी तीर्थ पर बीती रात्रि 2:35 पर त्याग कर दिया वे सभी धर्म संप्रदायों में अत्यंत लोकप्रिय महान संत थे. ओम प्रकाश बाबूजी अग्रवाल ने आगे कहा कि जी गुरुदेव ने मूक माटी जैसे ग्रंथ की रचना की तो वहीं गौ संवर्धन हथकरघा एवं कैदियों के जीवन को परिवर्तित करने का अथक प्रयास किया वे सही मायने में चलते-फिरते तीर्थंकर थे.इस अवसर पर जैन मंदिर में णमोकार मंत्र का वाचन किया गया जैन समाज द्वारा मंगलवार को सुबह 11 बजे तक सारे प्रतिष्ठान बंद रखे जिन मंदिर जीर्णोद्वारक संत, प्रशांत मूर्ति श्रमण मुनि श्री 108 विनय सागर जी गुरुदेव ने अपने बताया कि राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ के चंद्रगिरी में जैन आचार्य विद्यासागर महाराज ने 18 फरवरी 2024 को रात्रि में समाधि ली। दिगंबर मुनि परंपरा के आचार्य विद्यासागर महाराज ने छत्तीसगढ़ के चंद्रगिरि तीर्थ में पूर्ण जागृतावस्था में उन्होंने आचार्य पद का त्याग करते हुए तीन दिन का उपवास लिया था और अखंड मौन धारण कर लिया था, जिसके बाद उन्होंने प्राण त्याग दिए। आचार्य विद्यासागर महाराज एक अत्यंत श्रद्धेय दिगंबर जैन आचार्य हैं जो अपनी असाधारण विद्वता, गहन आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि और तपस्या और अनुशासन के जीवन के प्रति अटूट प्रतिबद्धता के लिए पहचाने जाते थे।
दस अक्तूबर 1946 को कर्नाटक के सदलगा में जन्मे, उन्होंने छोटी उम्र से ही आध्यात्मिकता को अपना लिया। मंदिर में उपस्थित मधुबन जैन शास्त्री व प्रदुमन जैन शास्त्री ने बताया कि आचार्य विद्यासागर महाराज जैन शास्त्रों और दर्शन के अध्ययन और अभ्यास में गहराई से डूबे हुए थे। संस्कृत, प्राकृत और कई आधुनिक भाषाओं में उनकी महारत ने उन्हें कई व्यावहारिक कविताएं और आध्यात्मिक ग्रंथ लिखने में सक्षम बनाया था। अशोक जैन महामाया ने कहा कि आचार्य विद्यासागर कई धार्मिक कार्यों में लोगों के लिए प्रेरणास्रोत भी रहे थे।
आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज को मंदिर में उपस्थित सभी ने विनयांजलि देते हुए गहरा दु:ख प्रकट करते हुए अपने अपने भाव रखे।

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