मिर्गी /अपस्मार(एपिलेप्सी ) और इलाज़

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वर्तमान में यह रोग बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता हैं .इस बीमारी को अधिकतर लोग छुपा कर रखते हैं ,जबकि यह साध्य रोग होता हैं .
अपगतः स्मृतिः यस्मिन रोगे स अपस्मारः! जिस रोग में स्मरण शक्ति का सर्वथा आभाव हो जाता हैं ,उसे अपस्मार कहते हैं .
स्मृतेरपगमं प्राहुरपस्मारं भिष्गिवदः! तमः प्रवेशं वीभत्स्चेष्टम धी सत्व संपलवात !! स्मरण शक्ति के नाश होने का नाम अपस्मार हैं .इस रोग में बुद्धि और मन के विकृत हो जाने से नेत्र के सामने अँधेरा सा दिखाई देना और शरीर में कम्प ,मुख से फैन का निर्गम आदि वीभस्त चेष्टाएँ रोगी करता हैं .जैसे नेत्र विकृत हो जाते हैं तथा रोगी हाथ -पैर भी फैंकता हैं .यह वातिक,पैत्तिक ,कफज और त्रिदोषज होता हैं .
विभ्रांत बहुदोषणामहिताशुचिभोजनात !रजस्तमोभ्याम विहते सत्वे दोषावृते हृदि !
चिंताकामभयक्रोधशोकोद्वेगादिभिस्तथा! मनस्यभिहते नृनामपस्मार: प्रवतर्ते !!
जो व्यक्ति अहितकर और अपवित्र भोजन करते हैं और उनके शरीर में प्रारम्भ से ही दोष उन्मार्गी तथा अधिक मात्रा में उपस्थित रहते हैं ,ऐसे व्यक्तियों के शरीर में जब सत्व गुण,रज और तम के बढ़ जाने से अधिक दुर्बल हो जाता हैं और हृदय वातादि दोष से आवृत हो जाता हैं तथा चिंता ,भय ,क्रोध ,शोक और उद्वेग आदि के कारण मन दोषों से विशेष रूप से दूषित हो जाता हैं तो अपस्मार की उत्पत्ति होती हैं .
यह दो प्रकार का होता हैं उग्र (ग्रैंडमाल) साधारण (पेटिटमाल)
मिर्गी एक तंत्रिकातंत्रीय विकार (न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर) है जिसमें रोगी को बार-बार दौरे पड़ते है। इस बीमारी का समय पर इलाज न होने से समस्या गंभीर हो जाती है। यह बीमारी 10 वर्ष से 60 वर्ष उम्र तक के किसी भी व्यक्ति को हो सकती है। जानकारी के अभाव में 75 से 80 फीसदी लोग इलाज से वंचित रह जाते हैं। दूषित जल और खान-पान से भी मिर्गी का खतरा बढ़ जाता है। दूषित जल और खान-पान के साथ ही आधुनिक जीवनशैली, काम का दबाव और तनाव से भी मिर्गी का खतरा बढ़ रहा है। दुनियाभर में 5 करोड़ और भारत में 1 करोड़ लोग इस बीमारी से ग्रस्त हैं। 2-3 साल तक दवा खाने से मिर्गी ठीक हो जाती है। सिर्फ 20-30 फीसदी लोगों को ही पूरी जिंदगी दवा खानी पड़ती है। करीब 10-20 फीसदी लोगों को ही ऑपरेशन की जरूरत पड़ती है।
छह माह से पांच वर्ष की उम्र के बच्चों में बुखार के साथ दौरे पड़ सकते हैं। यदि दौरे में अकड़न पूरे शरीर में होती है और यह 15 मिनट से कम है तो इसे सिम्पल फेब्राइल सीजर कहा जाता है। यदि यह शरीर के एक ही भाग में होती है और आधे घंटे से ज्यादा रहती है तो इसको कॉम्प्लेक्स फेब्राइल सीजर कहा जाता है। चार फीसदी बच्चों में यह बीमारी उनके परिवार के अन्य सदस्यों को भी हो सकती है। इसके इलाज में मिर्गी की दवाओं का लंबे समय तक प्रयोग नहीं किया जाता है। सिर्फ शरीर की स्पंजिंग और बुखार कम करने के लिए दवा का इस्तेमाल किया जा सकता है।
तीन में से एक मिर्गी के मरीज में इससे मानसिक समस्या भी पैदा हो सकती है। इसमें मानसिक अवसाद और घबराहट आम बात है। मरीज के सामाजिक जीवन पर इसका बुरा असर पड़ता है। मानसिक अवसाद 30 से 35 फीसदी मरीजों में पाया जाता है।
मिर्गी मस्तिष्क को प्रभावित करने वाले कई कारणों से होती है। ये कभी-कभी अनुवांशिक या अधिगृहित या दोनों हो सकते हैं। 60-75 प्रतिशत मिर्गी मामलों में कारण अज्ञात होता है। शेष 25-40 प्रतिशत लोगों में जन्म के समय चोट या आक्सीजन की कमी, गर्भावस्था में मस्तिष्क को क्षति, मस्तिष्क आघात, ब्रेन टयूमर अथवा संक्रमण (मैनिंजाइटिस, एड्स आदि) से यह हो सकती है।
– दौरा पड़ने पर रोगी को चप्पल जूता न सूंघाएं
– दौरा पड़ने पर पानी न पिलाएं
– बेल्ट, टाई आदि दौरे के वक्त ढीला कर दें
– दवा आदि भी न दें
– रोगी को करवट के बल लिटा दें
– साफ-सफाई रखें
-मरीज को खुली हवा में रखें और भीड़ न लगाएं
– सिर के नीचे मुलायम कपड़ा रखें
मिर्गी को मिथ से नहीं इलाज से ठीक किया जा सकता है। मरीज को डॉक्टर की बताई दवाएं ही देनी चाहिए। खुद दवा शुरू कर देने से उसके साइड इफेक्ट हो सकते हैं और मरीज की जान पर बन सकती है। मिर्गी मस्तिष्क से संबंधित विकार है। इससे डरने या इसे अभिशाप समझने की आवश्यकता नहीं है। इसका पूरा इलाज संभव है।
इसके अलावा रिब्बड लुफ़्फ़ा (कड़वी तरोई ) और यूफोर्बिआ नेरिफोलिआ (स्नुही ) का स्वरस अलग या मिलाकर देना चाहिए .
अगस्त्य पत्र ( लीव्स ऑफ़ सेस्बनिआ ग्रान्डीफ्लोरा )को पीसकर उसमे काली मिर्च और गाय का मूत्र मिलाकर देना चाहिए .
मुलेठी (लिकोरिस रुट) को पीसकर पेस्ट बनाकर पेठा के साथ सुबह और शाम तीन दिन तक देना चाहिए .
ब्राह्मी स्वरस दूध के साथ देना चाहिए .
वचा( एकरस कालमस) को २ ग्राम चासनी के साथ सुबह शाम दे और दूध का सेवन कराएं .
पंचगव्य घृत १० ग्राम सुबह शाम दूधके साथ बहुत लाभकारी होता हैं
चन्द्रावलेह १० ग्राम सुबह शाम दूध के साथ .यह मानसिक रोगों में उपयोगी
अपस्मारान्तक रस ५०० मिलीग्राम चासनी से सुबह शाम ले .
अधिक पुराना होने पर या औषधि का सेवन चिकित्सक के परामर्श से ले .
विद्यावाचस्पतिडॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट ,,होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026 मोबाइल 09425006753

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