मानवता के मसीहा आचार्य श्री विद्यासागरजी

0
27

महावीर दीपचंद जी ठोले ,छत्रपती संभाजीनगर (महा), महामंत्री तीर्थ संरक्षिणी महासभा, महाराष्ट्र 7588044495
जिनके चर्या में आगम तंत्र हुआ करते थे ,जिनके वाणी में महामंत्र हुआ करते थे, इस युग में महावीर नहीं तो क्या गम है, आचार्य श्री विद्यासागर जी क्या महावीर से कम थे ।ऐसे अपनी जिंदगी को सुकून से जीता, अपने ही दुनिया में मशगूल एक ऐसा मस्त मौला जो किसी की आंखों में दर्द नहीं देख सकता था, अमन और प्यार का पैगाम देने वाले, यहां से वहां नंगे पैर धुमता, खानाबदोश सा अंदाज, ऐसे भव्यात्मा को मैं सेकडो बार नमन करता हूं ,श्रद्धा भक्ति और समर्पण से नमोस्तु बोलता हु।
आ श्री के करिश्माई के किस्से हजारो जुबानी सुने जा सकते हैं ।आज से 77 साल पहले 10 अक्टूबर 1946 के रोज कर्नाटक प्रांत के सदलगा (चिकोड़ी) के सर जमी पर अपनी मां श्रीमती देवी की कोख से मानव जाति के जीवन में अमुल्य चुल बदलाव लाने की मकसद से मानवता का मसीहा बनकर यह फरिश्ता धरती पर उतर आया। अमन, प्यार और हमदर्दी का पैगाम देने वाले इस मसीहा के दर से गुजरा भक्तों का हर लम्हा उनकी जिंदगी की बेशकीमती यादगार बन गये।बचपन में इस करिश्माई का नाम उनके वालीद मल्लप्पा अष्टगे ने विद्याधर रखा था ।पर सभी इन्हें बड़े प्यार से “पिल्लू” कह कर पुकारते थे। कुल नववी क्लास तक पढ़े इस पिल्लू के बारे में लोग यह नहीं जानते थे कि यह तो आसमानी है और कब इंसानों की बस्ती से उडकर एक दिन कुदरत के आगोश में जाएगा। और हुआ भी यही की 26 जून 1968 के रोज, विशाल जन समूह के बीच, अजमेर नगरी में दुनिया के सारे ऐशोआराम छोड़कर अपना लिया फकीरी का रास्ता। और विद्यासागर के रूप में दुनिया को मिला एक करिश्माई दरवेश। जब से आपने अपने दीक्षा गुरु आचार्य श्री ज्ञान सागरजी से दिगंबर परंपरा की सर्वोच्च जैनेश्वरी दीक्षा ली तब से आपका धरती ही बिछौना, आकाश ही ओढना और दसों दिशाऐ ही पहनावा बन गए। तन पर एक चिन्धी का टुकड़ा तक नहीं ।इनके पास मोर पंख का एक गुच्छा जिसे हम पीछी
कहते हैं ,और सुखे हुए बड़े नारियल का बना हुआ पानी के लिए एक तुंबा जिसे हम कमण्डलु कहते हैं ।बस इतनी सी दो चीजे उनकी दुनियावी जिस्मानी जरूरत के लिए काफी थी ।बस यही इनकी जायदाद थी। किसी गाड़ी घोड़े की सवारी नहीं करता, अपने दोनों कदमों से चलकर आज तक सवालाख मिल का सफर तय किया होगा ।इस मस्त मौला मसीहा के पास ना कोई जमीन का टुकड़ा, ना कोई आश्रम ,ना कोई आशियाना था। लू भरी तेज गर्मी हो या फिर बर्फानी सर्द का मौसम, हर हाल में जमीन पर ही चटाईपर या मिल गया तो लकड़ी के पटियो पर सोना,बैठना। अपनेही हाथों से अपने बालों को हर दो महीने में उखाड़ डालना। चाहने वाले मुरीन्दो का दिया हुआ सादा, साफ खाना, पाणी वह भी दिन में एक बार खड़े-खड़े अपने दोनों हाथों के करपात्र से लेना। कभी कोई नियम नहीं मिला तो उपवास करना। ऐसा फकीर दुनिया का एक अजूबा ही था। कभी गुसल न करने के बावजूद जिस्म से नूरानी महकसी निकलती थी। देखने में खूबसूरत, गोरा ,चिट्ठा, मुस्कुराता, खुश मिजाज, प्रसन्न चित्त विद्यासागरजी हर वक्त लाखों की भीड से घिरे हुए ,फिर भी अपने में अकेले थे। बस अपनी रूहानी दुनिया में मस्त थे।
जब इन्होंने दीक्षा ली थी तो अकेले ही थे ।लेकिन आज उनका काबीला इतना बड़ा हो गया है कि आपने अभी तक 550 से अधिक साधकों को मोक्ष मार्ग मे लगाया। जो उनकी बतलाए मार्ग पर चलकर अपने मंजिल की ओर बढ़ रहे है।
कहते हैं ना अकेला ही चला था जानीबे मंजिल की ओर। साथी मिलते गए और कारवा बनते चला।
मुल्क के पॉलिटिकल रहनुमा हो, बड़े-बड़े शहजादा ,कानूनगो, डॉक्टर ,इंजीनियर, विद्वान पंडित ऐसे एक से एक नामचिन हस्तीया जैसे हमारे देश के पंतप्रधान नरेंद्र मोदी जी, राष्ट्रपति आदि अनेक आपके दर पर कदमबोसी को पहुंचते थे ।गजब के अजूबे थे।कहते हैं ना इस निष्काम मसिहा की जिसने भी कदमबोसी की वह खुशहाल और मालामाल हो गया। क्योंकि उनके चेहरे पर देवताओ जैसा आभामंडल था और लगता था कि यह धरतीपर ईश्वर का हीं अंश हो। इसलिए तो मैं कहता हूं की जिन्हें शक है वह करें और खुदाओं की तलाश हम तो आचार्य श्री को ही दुनिया का खुदा मानते हैं ।
इस जानकार ने जिंदगी के फलसफे को अपने ही नजरों को लेकर अपने कलम से कई किताबें भी लिखी है। आपके द्वारा रचित संसार में सर्वाधिक चर्चित काव्य प्रतिभा की चरम प्रस्तुति है मुकमाटी महाकाव्य।जिसके माध्यम से राष्ट्रीय अस्मिता को पुनर्जीवित किया गया है। इस महाकाव्य को विभिन्न महाविद्यालयो के पाठ्यक्रम में पढ़ाया जा रहा है।
आपकी प्रेरणा से अनेक प्राचीन तीर्थो का जीर्णोद्धार हुआ है ,हो रहा है ।जैसे अमरकंटक, नेमावर, कुंडलपुर ,डोंगरगढ़ आदि । आपने अनेक मांगलिक संस्थाओं के ,विद्या केद्रो के, हाथकरघा केद्रो के,प्रतिभा स्थली के लिए प्रेरणा एवं प्रोत्साहन का संचार किया है।
आपके परिवार में आपके माता-पिता, तीनों भाई ,दोनों बहने घर जंजाल से मुक्त होकर जैनेश्वरी दीक्षा लेकर आत्म साधना रत हुए। धन्य है यह परिवार जिनके आठ सदस्य मुक्ति मार्ग पर चल रहे हैं। इतिहास में ऐसी अनोखी घटना का उदाहरण बिरले ही देखने को मिलेगा।
ऐसे आ श्री जिसने आकाश से निर्मलता,
चान्द से शीतलता, सागरसे गंभीरता ली है को कुछ दिन पुर्व असाध्य बिमारी ने घेर लिया। ऊनके शिष्योने, भक्तोंने,वैध्योने अथक प्रयास किए पर उसमे वे असफल रहे और 18 फर 2024 रविवार को रात्रि मे सारे जगत को अपने ग्यान रश्मीयो से आलोकित करने वाला यह चमकनेवाला सुरज अस्त हो गया, और जिधर उधर अंधेरा छा गया।
आचार्य श्री के वियोग से समाज में अपूरणीय क्षति का होना अवश्यंभावी है। परंतु उनका वियोग एक पड़ाव है, एक विश्रान्ती स्थल है ।यह उनकी महायात्रा, महाप्रस्थान है। उन्हें निश्चित ही उनकी धर्म की आस्था का प्रतिफल उन्हें तीर्थंकर के रूप में प्राप्त होगा ।यह उनकी महा यात्रा मंगलमय हो यही हमारी मनोकामना।
आचार्य श्री के संदेश युगों युगों तक संपूर्ण मानवता का मार्गदर्शन करें । हमारी प्रमाद मुर्च्छा को तोड़े ।हमें अंधकार से दूर प्रकाश के बीच जाने का मार्ग बताते रहे। तथा स्वस्थ, शालीन एवं सुसंस्कृत समाज बनाते रहे। यही हमारे मंगलमय भाव है। चित्त की अभिव्यक्ति है ।और हमारी प्रार्थना भी। ओम शांति।
श्री संपादक महोदय, सा जयजिनेद्र।
कृपया यह आलेख पत्रिका मे प्रकाशित कर उपकृत करे।इसमे कुछ उर्दु अल्फाज डाले है।
धन्यवाद।
महावीर ठोले छत्रपती संभाजीनगर (महा),7588044495

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here