जिस प्रकार हमारे राष्ट्र में आतंरिक और बाह्य दुश्मनों से खतरा बना रहता हैं .हम बाह्य दुशमन से तो सतर्क रहते हैं पर आतंरिक दुश्मन से लापरवाह होते हैं .आंतरिक दुश्मन बहुत तरीके से देश को खोखला और रोगग्रस्त करते हैं वैसे ही हमारे घरों में बहुत आंतरिक दुश्मन रहते हैं और उनसे हम अनजान रहते हैं .यह अनजानापन ही अधिक नुकसानदायक और हानिकारक होते हैं .
ऑपेरशन थिएटर जितना अधिक संक्रमण रहित होता हैं उतना ही ऑपरेशन सफल होता हैं उसी प्रकार हमारा किचिन ,घर ,लैट्रीन ,बाथ रूम और यहाँ तक हमारी दीवालें ,फर्श साफ़ सुथरे रहेंगे उतने हम स्वस्थ्य और सुखी रहेंगे .पर हम छोटी छोटी बातों को नज़रअंदाज़ करके अनचाहे बीमारियां बुला लेते हैं . इसी प्रकार कुछ समाज में महिलाएं /माताएँ शुचिता के साथ अपने वस्त्रों का प्रयोग खाना बनाते समय करते हैं .उसका स्पष्ट कारण यह हैं की हम बाह्य दुनिया या घर से बाहर के कीटाणु घर में न प्रवेश होने दे .और हम भी आधुनिक प्रचलन के कारण जूते पहनकर डाइनिंग टेबल में बैठकर खाना खाते हैं .कभी कभी खाद्य पदार्थ जमीन पर गिरने से संक्रमित होकर गंभीर बीमारियों का कारण बन जाती हैं .खासतौर पर जिस घर में छोटे छोटे बच्चे होते हैं .
हमारे घरों में किचन का कपड़ा सबसे ज्यादा गंदा होता है। यह घर में कीटाणुओं को दावत देता है। भारत में 100 प्रतिशत किचन के कपड़े सबसे ज्यादा गंदे होते हैं और यह भारतीय घरों में पाई जाने वाली सबसे गंदी चीज है.जब घरों की स्थिति ऐसी हैं तब होटल्स और रेस्टोरेंट की स्थिति तो अकल्पनीय हैं हमारे घर में सास को बहु के पानी छानने में शक होता है तब होटल की स्थिति तो अत्यंत दुखकारक होती हैं .
किचन में बार-बार एक ही कपड़े का इस्तेमाल करने से परिवार के सदस्यों को फूड पॉइजनिंग होने का खतरा रहता है। यूनिवर्सिटी ऑफ मॉरीशस के वैज्ञानिकों ने एक महीने के दौरान एक एक्सपेरिमेंट किया और किचन में इस्तेमाल होने वाले 100 तौलिए पर बैक्टीरिया के पनपने की जांच की। इस दौरान रिसर्चर्स ने पाया कि 100 में से 49 तौलिए में कॉलिफॉर्म्स पाए गए जो फेमस ई-कोलाइ बैक्टीरिया के परिवार के सदस्य हैं। किचन में इस्तेमाल होने वाले वैसे कपड़ों में ई-कोलाइ के पनपने की संभावना ज्यादा थी जिन्हें गीला छोड़ दिया जाता है, जबकि कॉलिफॉर्म्स और एस ओरियस बैक्टीरिया उन कपड़ों में ज्यादा पाया गया जिन घरों में नॉन-वेज खाना ज्यादा बनता है।
बहुत से किचन तोलिए में ई-कोलाइ की मौजूदगी मल के प्रदूषण से आयी होगी जो इस बात को दिखाता है कि बड़े पैमाने पर किचन में सही ढंग से साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखा जाता है।
यह भी पता चला-98% भारतीय अपने घर में उपस्थित कीटाणुओं और उनसे होने वाले खतरों के बारे में जानते हैं।
-62% लोग कीटाणुओं के बारे में चिंतित तो हैं लेकिन वे अपने परिवारों की रक्षा के लिए कीटाणुनाशक समाधान नहीं चाहते हैं।
-42% घर में कई सतहों पर कीटाणुओे को खत्म करने के लिए फिनाइल और डिटर्जेंट का उपयोग करते हैं।
ज्यादातर घरों में रोजाना की साफ-सफाई के बाद भी हर घर में औसतन 125 ग्राम धूल होती है जो कार्पेट, मैट्रेस या सोफा और टेबल के नीचे होती है और इसमें कॉकरोच का मल भी होता है। छिपी हुई धूल को लेकर किए गए एक अध्ययन में यह जानकारी मिली है।
घर के केवल चार स्थानों- कार्पेट, मैट्रेस, सोफा और कार के नीचे से औसतन 125 ग्राम धूल निकलटी जबकि उन घरों में रोजाना की जानेवाली साफ-सफाई हो चुकी थी।
‘2016 पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (ईपीआई) के मुताबिक, 3.5 अरब से ज्यादा लोग, जो कि दुनिया की आधी आबादी है, असुरक्षित हवा में सांस ले रहे हैं, जिसमें भारत की 75 फीसदी आबादी शामिल है।’
‘घर में मौजूद जहरीले प्रदूषक अत्यंत अल्प मात्रा में भी खतरनाक हैं क्योंकि हम अपना ज्यादातर समय घर में बिताते हैं और लगातार घर के अंदर मौजूद हवा में सांस लेते हैं। साल 2016 में कुल 90 लाख लोगों की वायु प्रदूषण से असमय मौत हुई, जो कि कुल वैश्विक मौतों का 16 फीसदी है।’
वायु प्रदूषण से नवजात का कम वजन, तपेदिक, हृदय रोग, मोतियाबिंद, अस्थमा और नासोफेनजील और लेनजील कैंसर्स होते हैं। वायु प्रदूषण संज्ञानात्मक विकास को भी प्रभावित कर सकता है।’
वायु प्रदूषण के कारण हर साल 5 वर्ष से कम आयु के करीब 6 लाख बच्चे मारे जाते हैं !वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली के 22 लाख स्कूली छात्रों के फेफड़ों को नुकसान पहुंचा है, जो कभी ठीक नहीं हो सकते।
अगर हर दिन जिम जाने, एक्सर्साइज करने और सही डायट लेने के बाद भी आपका वजन कम नहीं हो रहा तो हो सकता है इसकी वजह आपके घर की धूल-मिट्टी हो। आपको शायद इस बात पर यकीन नहीं होगा लेकिन घर के अंदर अगर थोड़ी सी भी धूल हो तो उसमें वातावरण के प्रदूषण फैलाने वाले तत्व मौजूद होते हैं जो फैट सेल्स की ग्रोथ में अहम रोल निभाते हैं।
घर की धूल में जो कंपाउड्स पाए जाते हैं उन्हें इंडोक्राइन-डिसरप्टिंग केमिकल कहते हैं वे फैट सेल्स को प्रोत्साहन देते हैं जिससे शरीर में और ज्यादा फैट जमा होने लगता है। इस स्टडी में पाया गया कि घर की धूल की वजह से एक अतिरिक्त तरह का फैट शरीर में जमा होने लगा जिसे ट्राईग्लिसराइड्स कहते हैं।
एंडोक्राइन -डिसरप्टिंग केमिकल सिन्थेटिक या नैचरल कंपाउन्ड्स होते हैं जो बॉडी के हार्मोन्स को दोहराने लगते हैं। जानवरों पर की गई कुछ स्टडीज़ में इस बात के सबूत भी मिले की हैं जीवन के शुरुआती दिनों में अगर एंडोक्राइन डिसरप्टिंग केमिकल के प्रति एक्सपोजर ज्यादा हो तो जीवन के बाद के सालों में वजन बढ़ने की समस्या पैदा हो जाती है। यह केमिकल आमतौर पर कंज्यूमर गूड्स में पाए जाते हैं जो आखिरकार इंडोर डस्ट बनकर हमारे घर के अंदर रह जाते हैं। बाद में घर की इस धूल को हम सांस के द्वारा अंदर लेते हैं और फिर वह हमारी स्किन में अब्जॉर्ब हो जाती है।
अमेरिका में हर दिन करीब ५० मिलीग्राम घर की धूल बच्चों के शरीर के अंदर जाती है। शोधकर्ताओं ने नॉर्थ कैरलाइना के 11 घरों से इंडोर डस्ट के सैंपल इक्ट्ठा किए। 11 में से 7 घरों से इक्ट्ठा की गई घर की धूल के सैंपल में फैट सेल्स को विकसित कर ट्राईग्लि्सराइड्स बनाने की क्षमता थी। इनमें से सिर्फ 1 डस्ट सैंपल ऐसा था जिसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
घर की धूल में मौजूद केमिकल के प्रति अगर आपका एक्सपोजर हो जाए तो यह शरीर के मेटाबॉलिक हेल्थ को प्रभावित करता है खासतौर पर बच्चों में।
वायु प्रदूषण बड़ी समस्या बनता जा रहा है। बढ़ता वायु प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। हवा में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा तीन गुना से अधिक बढ़ गई है। हवा में धूल के छोटे-बड़े कणों (पीएम 2.5 और पीएम 10) की तादाद भी मानक से काफी अधिक है।
यह समस्या केवल जिला स्तर पर ही नहीं बल्कि पूरे देश व प्रदेश की है। जिले में वायु प्रदूषण के प्रभाव को कम करने और इससे बचने के लिए लोगों को जागरूक किया जाएगा।
लोगों को बताया जाएगा कि वे अच्छी क्वॉलिटी के मास्क का प्रयोग करें। खुले में कूड़ा, फसल के अवशेष, पॉलीथिन व अन्य प्लास्टिक कचरा न जलाएं। कोयले का प्रयोग न करें। घटिया क्वॉलिटी के कोयले का प्रयोग करने से 40 प्रतिशत से अधिक कार्बन व फ्लाई ऐश निकलती है। वाहनों की फिटनेस ठीक रखें। अच्छी क्वॉलिटी के डीजल व पेट्रोल का प्रयोग करें। वाहन से निकलने वाले फ्यूजन को चेक कराते रहें। इंडस्ट्री से धुंआ निकलने के लिए चिमनी की ऊंचाई 20 मीटर से कम न रखें।
इसी प्रकार हमारे घरों में रखा हुआ सामान या बहुत दिन तक रहा अनुपयोगी सामानों में इसका खतरा अधिक रहता हैं .
हमारा स्वास्थ्य सबसे बड़ी हमारी धरोहर हैं .और हम छोटी छोटी बातों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं जो हमारे लिए घातक हो जाती हैं .
बचाव ही इलाज़ हैं ,सावधानी सतर्कता ही हमारा संरक्षण हैं .
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट ,होशंगाबाद रोड भोपाल 462026 मोबाइल 09425006753
Unit of Shri Bharatvarshiya Digamber Jain Mahasabha