आम कहां से होय ………..

0
120

आजकल की लड़कियां रटा रटाया सा यही जबाब देती है , अपना फैसला मैं खुद करूंगी , जिन्दगी मुझे बितानी है , मैने उसे समझ लिया है , या फिर घरवालों को बिना बताए घर से खुद माल असवाब लेकर रफूचक्कर हो जाना , एक आम बात हो गई है ।

लड़कियां इसमें इतनी दोषी नहीं हैं जितने दोषी पालण पोषण करने वाले है , माँ – बाप प्रारम्भ से ही संस्कार के नाम पर यही कहते रहते है , तेरे लिए कोई गाड़ी – घोड़े वाला नोकर – चाकरों वाला , मालदार वर – घर ढूंढ़ेंगे , हमारी बेटी राज करेगी , दिन भर आराम कराने वाला व गाड़ियों में घुमाने वाला परिवार देखेंगे । कभी यह बात नहीं कहते हैं कि नारी का धर्म क्या होता है , कर्तव्य क्या होता है , दोनों कुलों को लेकर कैसे चला जा सकता है , यदि घर में कभी कोई विपत्ति आ जाए तो उससे कैसे सहन किया जाए व कैसे विवेक से निपटा जाए । फिर अपने कुल की मर्यादा , दादा – दादी से लिए जाने वाले संस्कार , पढ़ाई के साथ साथ धर्म का ग्यान , साधु सन्तों मंदिरों के दर्शन की प्रेरणा देने का पाठ पढ़ाना आदि से दूर रखना भी मुख्य कारण होता है । लड़की को आज के युग के अनुरूप पढ़ाना बहुत जरूरी हो गया है पर पढ़ाई के साथ साथ सामाजिक व व्यवहारिक ग्यान भी जरूरी होता है । विद्यालय में लड़की जाती है , वापिस कब आती है , क्या पढ़ती है , मोबाइल है तो उससे किससे बात करती है , विद्यालय में समय निकालकर जानकारी भी ली जा सकती है , कहीं किसी से मिलने का कहकर जाती है तो पता लगाते रहना चाहिए कि क्या व कितना सही है । आँख मूंद कर विश्वास करना घातक हो सकता है , लड़कियां साफ़ व भोले मन की होती है , वै जल्दी ही हर किसी पर विश्वास कर लेती है , उनके लिए व्यवहारिक ग्यान देने का काम दादी दादा कर सकते हैं पर अमूमन आधुनिक युग की माताएं उनसे दूर रखना चाहती है ।

घर से लड़की का भागना व मन मर्जी से अपना जीवन साथी ढूंढनां बड़ी उम्र तक शादी के बारे में नहीं सोचना भी मुख्य बिंदु होता है । शादी के लिए भी एक तय उम्र होती है ,और उस उम्र में बहकने की संभावनाएं भी ज्यादा रहती है क्यों कि घर से अच्छे संस्कारों के अभाव में अमूमन लड़कियां बहक जाती है ,पढ़ाई शादी के बाद भी बहुतों ने की है ऐसे सैकड़ों उदाहरण भरे पड़े हैं , अपने समाज में यह सौच भरी पड़ी है , बड़ीं उम्र तक शादी नहीं करना , पैसे वाला परिवार ढूंढना भले ही सँस्कार विहीन हो , शहर को प्राथमिकता देना , पति – पत्नी तक ही सीमित रहने आदि दुर्गुणों से भरी हमारी सौच के चलते हम केवल और केवल लड़कियों को दोषी नहीं ठहरा सकते है । समाज में यह ज्वलन्त समस्या पैदा करने के भी हम ही जिम्मेदार हैं , अभी हाल ही गुवाहाटी से एक समाचार – पत्र के माध्यम से खुलासा किया गया है कि मारवाड़ी समाज की दोसो से अधिक लड़कियां इस चक्कर में फंसी हुई है ।
अभी भी समय है , हमें अति आधुनिकता की सोच पर बिगड़ते परिवारों पर विचार कर उचित कदम उठाने की पहल कर लेनी चाहिए ।

लड़की के लिए संस्कारवान घर – वर ढूंढना चाहिए नां कि गाड़ी घोड़ा नोकर चाकर रईस व शहर देखना चाहिए पर मोटी बात है समय पर शादी करने की चिंता होनी चाहिए । सरकार नें भी लड़कियों की शादी की उम्र 21 वर्ष तय कर रखी है तो हम क्यों 26 ,27 व 28 तक यह कहते रहते हैं कि अभी हमारी बच्ची पढ़ रही है । हमे बदलना होगा , हमारे घर से जो संस्कार मिलने चाहिए उनके अवसर पैदा करने होंगे ,समय पर किया गया कार्य हमेशां अच्छे परिणाम देता है ।

समाज में जो आधुनिकता की आड़ में यह विष वृक्ष पनप रहा है , उसकी जड़ों में पानी देने का व उसे पनपाने का कार्य हम ही कर रहे हैं । कबीर दासजी का एक दूहा याद आ रहा है
बुरा देखने को चला , बुरा न मिलिया कोय ।
जो दिल देखा आपना मुझ से बुरा न कोय ।।

इस से अपने गिरेबान में झांककर देखिये , हम कितने गलत हैं।
माना कि आपका व्यापार लम्बा चौड़ा है , आपको समय का अभाव हो सकता है पर सुबह के पूजा – पाठ में अपने बच्चों को साथ बिठाकर , देव दर्शन के लिए प्रेरित कर , साधु – संतों का सानिध्य करवाकर , दादा – दादी के पास बैठकर उनसे ग्यान प्राप्त करने का कहकर संस्कार भरे जा सकते हैं , पर यदि घर का वातावरण ही दूषित होगा तो आप सन्तान से क्या आशा कर सकते हैं । माँ यदि होटलों – किटी पार्टियों में व्यस्त रहेगी और जवान बेटी से शुशील होने की आशा करेगी तो व्यर्थ ही होगा ।
आप बाबाजी बैंगन खाते रहेंगे और चेलो चपाटियों को प्रदोष बताते रहेंगे तो क्या चेले – चपाटी बैंगन खाने से रह जाएंगे ?
अंत में सार बात लड़कियों से भी कहना चाहूंगा कि जो आपका 20 – 25 वर्षों से पालन – पोषण कर रहे हैं , आपके जीवन को सुखमय बनाने के लिए रात – दिन आपकी चिंता में अच्छी तरह सो भी नहीं पाते हैं , उनको सरे आम जलील कर अंजान के साथ भाग जाना , व माता – पिता को जीते जी मार जाने जैसा कृत्य करने से पहले हजार बार सोचना चाहिए कि जिसके प्यार में पागल होकर मैं मेरे खानदान की इज्जत तार – तार कर जा रही हूँ , क्या उसका खानदान मेरे खानदान से अच्छा है , उनका रहन – सहन , खान – पान , कुल – गोत्र क्या मेरे अनुरूप है ?
यदि यूँ भागकर शादियां करने वाले सफल जिंदगी जी लेंगें तो परिजनों को तो फिर लाखों करोड़ों खर्च कर शाही ठाट – बाट से शादी करने की जरूरत ही किसलिए होगी । परिजन जो रिश्ता तय करते हैं , ठोक – बजाकर , अच्छी तरह जांच – परख कर ,रिश्तेदारों से सारी जानकारी लेने के बाद अपनी बेटी का हाथ किसी के हाथ में देते हैं ।

यूँ नहीं की चलते – फिरते , ऊठते – बैठते या थोड़ा साथ पाकर जीवन का फैसला कर लिया जाय । जिंदगी बड़ी कीमती होती है और इज्जत उससे भी ज्यादा कीमती , इज्जत लुट जाने के बाद इह लीला समाप्त करने के अलावा कोई चारा नहीं बचता है।

ऐसे हालात पैदा हो इससे बचने के लिए बहुत सोच समझ कर फैसला करना चाहिए ताकि नां ही जिंदगी मिटाने की जरूरत पड़े और नां ही माता – पिता को जलालत की जिंदगी जीने के लिए मजबूर होने के लिए जीते जी मरना पड़े ।
सभी को जय जिनेन्द्र !
पवन पहाड़िया डेह नागौर 9414864009

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here