तीर्थंकर वासुपूज्य जी का मोक्ष कल्याणक – विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन भोपाल /पुणे

0
202

भगवान वासुपूज्य जी जैन धर्म के 12वें तीर्थंकर थे । भगवान वासुपूज्य का जन्म चम्पापुरी के राजपरिवार में फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी के दिन हुआ था।इनके पिता का नाम वासुपुज्य राजा और माता का नाम जयावती था।
भगवान वासुपूज्य के पाँचो कल्याणक चम्पापुरी में ही हुये थे । प्रभु की देह का रंग लाल था और प्रभु का प्रतीक चिह्न भैंसा था । प्रभु के शरीर की ऊंचाई ७०  धनुष (२१०  मीटर) थी । भगवान वासुपूज्य जी की आयु ७२  लाख वर्ष थी ।
प्रभु वासुपूज्य जी का जन्म इक्ष्वाकु कुल में हुआ था । फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी के दिन प्रभु ने चम्पापुरी में दीक्षा ग्रहण की और दीक्षा ग्रहण करते ही प्रभु चार ज्ञान से युक्त हो गये । प्रभु को मती ज्ञान ,श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मन:पर्व ज्ञान हो गये ।
प्रत्येक तीर्थंकर प्रभु जन्म के समय से ही तीन ज्ञान युक्त होते है , दीक्षा के समय उन्हे केवल मनः पर्व ज्ञान होता है । तीर्थंकर प्रभु की साधना कैवलय ज्ञान के लिए ही होती है ।
प्रभु वासुपूज्य जी का साधना काल १  वर्ष तक जारी रहा , १  वर्ष पश्चात माघ शुक्ल द्वितिया को प्रभु को केवल्य  ज्ञान की प्राप्ति  हुई ।केवल्य  ज्ञान की प्राप्ति  के साथ ही प्रभु ने अपने चार घनघाती कर्मो का क्षय कर अरिहंत कहलाये , इसके पश्चात् प्रभु ने चार तीर्थो की स्थापना कर तीर्थंकर कहलाये ।
प्रभु के संघ में 66 गणधर थे । प्रभु के यक्ष का नाम षण्मुख तथा यक्षिणी का नाम गांधारी था । प्रभु वासुपूज्य ने सत्य और अहिंसा का उपदेश दिया ।
इसके पश्चात भाद्रपद शुक्ला चतुर्दशी के दिन प्रभु ने निर्वाण प्राप्त किया और अष्ट कर्मो का क्षय कर सिद्ध कहलाये ।
सित भादव चौदस लीनो, निरवान सुथान प्रवीनी |
पुर चंपा थानक सेती, हम पूजत निज हित हेती ||
ॐ ह्रीं भाद्रपदशुक्लाचतुर्दश्यां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीवासु0 अर्घ्यं निर्व0।
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104  पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड   भोपाल 462026  मोबाइल  ०९४२५००६७५३

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here