राष्ट्र व धर्म की रक्षा सर्वोपरि – आचार्य अतिवीर मुनि

0
86

परम पूज्य आचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज के पावन सान्निध्य में हरियाणा की धर्मनगरी रेवाड़ी स्थित अतिशय क्षेत्र नसियां जी में दिनांक 11 अगस्त 2022 को श्री श्रेयांसनाथ निर्वाण कल्याणक महोत्सव व रक्षाबंधन पर्व का भव्य आयोजन व्यापक धर्मप्रभावना के साथ सानंद संपन्न हुआ| प्रातः काल जिनाभिषेक व शांतिधारा के पश्चात् नित्य नियम पूजन में सम्मिलित होकर सभी ने पुण्यार्जन किया| तत्पश्चात निर्वाण काण्ड पढ़ते हुए सभी भक्तों ने प्रभु के चरणों में निर्वाण लाडू समर्पित किया। इस अवसर पर श्री महावीर प्रसाद जैन सपरिवार (AMW) एवं श्री अजय जैन सपरिवार (AMW) को मुख्य निर्वाण लाडू समर्पित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। दोपहर में समाज की महिलाओं ने अकलंक शरणालय छात्रावास में अध्ययनरत बच्चों को राखी बांधी व विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये।

विशाल धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए पूज्य आचार्य श्री ने कहा कि जब भी सम्यक दर्शन के वात्सल्य अंग की चर्चा करते हैं तो आज की कथा का उल्लेख अवश्य होता है| श्री अकम्पनाचार्य जी ने उपसर्ग की घडी में किसी भी साधु को अपनी चर्या से विमुख होकर आग के घेरे से निकलने का आदेश नहीं दिया| सभी मुनिराज सतत अपनी साधना में संलग्न रहे और नश्वर काया की चिंता किये बिना बस आत्मकल्याण के मार्ग पर अग्रसर रहे| श्री अकम्पनाचार्य जी ने यह सन्देश दिया कि हमें सिर्फ अपने परिणामों को संभालना है, बाहरी परिवेश की चिंता नहीं करनी चाहिए। परन्तु यह कैसी विडंबना है? 700 मुनिराजों की रक्षा हेतु श्री विष्णु कुमार मुनि ने अपने मुनि पद का त्याग कर दिया!!! वह तो केवल अपने समयक्त्व की रक्षा करते हुए धर्मप्रभावना में निमित्त बने। शायद हम लोगों से इस कथा को समझने में कोई गलती हुई है।

आचार्य श्री ने आगे कहा कि श्रावकों के लिए साधुओं व साधर्मी की रक्षा सबसे बड़ा कर्त्तव्य है| वर्तमान में यदि किसी साधु पर कोई संकट आ जाए तो कोई भी व्यक्ति उसके निवारण के लिए आगे नहीं आता| परन्तु चर्या में कोई कमी हो तो हजारों लोग टोकने के लिए खड़े हो जाते हैं| रक्षाबंधन पर्व मनाने की सार्थकता तभी होगी जब सभी लोग अपने साधर्मीजनों की रक्षा का संकल्प लेंगे तथा हर परिस्थिति में साथ रहने का दृद निश्चय मन में कर लेंगे| एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण तभी संभव है जब वहां का प्रत्येक नागरिक समर्पण की भावना से ओतप्रोत होगा| राष्ट्र व धर्म की रक्षा करना सभी श्रावकों का परम कर्त्तव्य है|

वात्सल्य का अर्थ काफी विस्तृत है| आज हर तरफ हिंसा का तांडव चल रहा है| जगह जगह आधुनिक बूचडखाने खुलते जा रहे हैं| शायद हमने वात्सल्य को केवल इंसानों तक ही सीमित कर दिया है| परन्तु वात्सल्य तो प्राणी-मात्र के प्रति होना चाहिए| जैन समाज के समक्ष आज एक और चुनौती खड़ी है| हमारे पावन तीर्थ आज धीरे धीरे हमारे हाथों से छूट रहे हैं| परन्तु अफ़सोस हमारी जैन समाज निष्क्रिय होकर हाथ पर हाथ रखे बैठी है| अहिंसा का चोला ओढ़कर हम लोग धीरे-धीरे कायर बन गए| रक्षाबंधन का यह पर्व हमें तीर्थ संरक्षण के लिए भी प्रेरित करता है|

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here