75 वर्ष बाद भी हम पाश्चात्य संस्कृति के गुलाम

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विजय कुमार जैन (राघौगढ़ म.प्र.)- सैकड़ों वर्षो की अंग्रेजों की गुलामी से भारत को आजाद कराने हजारों भारत माता के सपूतों ने स्वाधीनता आन्दोलन चलाया। जेलों अमानवीय यातनायें सही और शहीद हुए। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नेतृत्व में चले अहिंसक आन्दोलन ने अंग्रेजों को मजबूर कर दिया कि भारत को आजाद करना ही होगा। वह शुभ घड़ी 15 अगस्त 1947 को आई जब हम गुलामी की जंजीरों से मुक्त होकर स्वतंत्र भारत के नागरिक गर्व से कहलाये।

भारतवर्ष को आजाद हुए 75 वर्ष पूर्ण हो गये है। आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने पर हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। सरकार के आव्हान पर सारे देश में घर घर तिरंगा अभियान चलाया है। देश में तिरंगा यात्रा निकाल कर इस पर्व को गौरवशाली बनाया है। यह अभियान स्वागत योग्य है। हमने भारत में आजादी के बाद हर क्षेत्र में तीव्र गति से विकास किया है। कृषि, उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य, संचार क्रांति में अप्रत्याशित प्रगति हुई है। आम आदमी गुलामी के समय निर्धनता में जीवन यापन करता था। अब सम्पन्नता आई है, जीवन स्तर भी बदला है। खुशहाली आई है। इन अनेक उपलब्धियों और सफलताओं के बीच अनेक ऐसे प्रश्न हैं जो आजादी देने के साथ ही अंग्रेज हमे दे गये हैं, जिन्हे 75 वर्ष से जोर शोर से जारी रखे हुए हैं।

भारत को आजाद करने के साथ ही अंग्रेजों ने देश के टुकड़े कर पाकिस्तान का गठन कर दिया। आज तक भारत और पाकिस्तान के बीच कटुता जारी है। मधुर संबंध बनने की तो हम कल्पना भी नहीं कर सकते। सन 1947 से पूर्व भारत एक था। आजादी के बाद दो भाई एक दूसरे के दुश्मन बने हुए है। पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव से हम हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति से विमुख हो रहे हैं। हम जन्मदिन को पाश्चात्य रीति रिवाजों के अनुसार बर्थ डे के रूप में मनाते हुए मोमबत्ती बुझा रहे हैं। मोमबत्ती बुझाकर प्रकाश से अंधकार की ओर जा रहे है। जबकि भारतीय संस्कृति अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का पावन संदेश देती है। कहा है तमसो माँ ज्योर्गमय। हम दीप जलाने की भारतीय परंपरा को भूल गये है।

भारतीय संस्कृति एवं परंपरा के अनुसार नव वर्ष का शुभारंभ विक्रम संबत, गुड़ी पड़वा या दीपावली के पावन दिन से होता है। भारतीय नव वर्ष को भूलकर एक जनवरी को हम नया वर्ष प्रारंभ कर उत्सव जोर शोर से मना रहे है। 31 दिसंबर को रात्री बारह बजे से जश्न नाच गाने एवं नशे से प्रारंभ होता है जो रात भर चलता है। एक जनवरी को नया वर्ष विदेशों में आता है। साथ ही एक अप्रेल को भी नया वर्ष मनाने की देन अंग्रेजों की है। एक अप्रेल को अंग्रेज ही मूर्ख दिवस मनाते है। दूसरी ओर एक अप्रेल से नया वर्ष प्रारंभ कराकर अंग्रेज हमे मूर्ख बना रहे हैं। भारत में घी दूध की नदियां बहती थी। चाय अंग्रेज ही भारत में लाये। आजादी से पूर्व अंग्रेजों ने भारतवासियों  को चाय का चस्का लगाने नगर नगर में चाय के स्टाल लगाकर निशुल्क चाय पिलायी।

आज हर परिवार में विस्तर से उठते ही चाय चाहिए।आज दूध कोई नहीं पीता चाय पीते है। भारतवासियों को चाय का नशा अंग्रेज ही दे गये हैं। हमारी भारतीय संस्कृति संयुक्त परिवार की थी, मगर दुख है कि पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में आकर संयुक्त परिवार टूट गये हैं। एकल परिवार की परंपरा प्रारंभ हो गई है। वृद्ध, बीमार, असहाय माता-पिता के जीवन के अंतिम समय में बेटा उनका सहारा न बनकर उन्हें उपेक्षित जीवन जीने मजबूर कर रहे हैं। जिन माता-पिता ने जन्म दिया, लालन-पालन किया, पढ़ाया,  सुखी जीवन जीने का मंत्र दिया उनको जीवन के अंतिम समय में वृद्धाश्रम में रहने के लिये मजबूर करते है। माता-पिता को वृद्धाश्रम रखने की परंपरा पाश्चात्य संस्कृति की देन है।

अपने माता-पिता को हम अंग्रेजों का अनुशरण कर मोम, डेड कह रहे हैं।जीवित पिता को डेड कर रहे हैं और माता को मोम का पुतला बता रहे हैं। माता-पिता का इससे ज्यादा अपमान और क्या होगा। माता-पिता पाश्चात्य संस्कृति में रच पच गये है वे भी अपनी संतान से मोम डेड कहलाने में अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। भारत के संविधान में धर्म निरपेक्षता के सिद्धांत को स्वीकार किया है। सभी धर्मों का समान आदर किया जाता है। इसी सिद्धांत के अनुरूप भारत में ईसाई मिशनरियों द्वारा सारे देश में स्कूल और अस्पताल संचालित हैं।

सारे देश में गरीब आदिवासियों को स्वावलंबन का प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन कराया जाता है उन्हें ईसाई बनाया जाता है। स्कूलों में जिन छात्र छात्राओं द्वारा प्रवेश लिया जाता है उन्हें ईसाई धर्म के नियम सिखाये जाते हैं तथा उन्हें इनका अनुशरण करने की शिक्षा दी जाती है। मिशनरी स्कूलों में दीपावली के स्थान पर गुड फ्राइडे मनाया जाता है। जिससे बचपन से ही बच्चे पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में चले जाते हैं। पाश्चात्य संस्कृति का ही प्रभाव है आज लड़का लड़की एकसी ड्रेस पहन रहे है। यह पहचानना कठिन होता है कि लड़का कौंन है लड़की कौंन है। जब हर अंग्रेजों के गुलाम थे, उस समय उन्नीसवीं शताब्दी में सुप्रसिध्द दार्शनिक लार्ड मेकाले भारत भ्रमण पर आया। उसने भारत भ्रमण कर वापस इंग्लैंड पहुंच पर वहाँ की संसद हाउस आफ कामन्स् में भाषण देते हुए भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों का उल्लेख करते हुए कहा था भारत में भाई चारा है, चोरी, अपराध नहीं के बराबर है सभी एक दूसरे की मदद करते हैं।

मेकाले ने संसद में यह सुझाव दिया कि अगर भारत को लम्बे समय तक गुलाम रखना है तो वहाँ नई शिक्षा नीति लागू की जाये। लार्ड मेकाले द्वारा सुझायी शिक्षा नीति आजादी से पूर्व भारत में अंग्रेजों ने लागू की। उस शिक्षा नीति का सबसे बड़ा दोष सहशिक्षा है। सहशिक्षा से युवा पीढ़ी में अनेक विकृतियां आती है और समाज का नैतिक पतन हो रहा है। आजादी के 75 बाद भी भारत में अनेक सरकारें आई और चली गयी,मगर लार्ड मेकाले की शिक्षा नीति नहीं बदली गई है। प्रेम विवाह, विवाह पूर्व फिल्मांकन

Pre wedding shoot आदि कुप्रथाओं से भारतीय संस्कृति तार तार हो रही है। नई पीढ़ी में बढ़ रहे अपराध पाश्चात्य संस्कृति की ही देन है। हमारा दुर्भाग्य है अंग्रेज तो 75 वर्ष पूर्व भारत को आजाद करके इंग्लैंड चले गये। मगर ऐसी अनेक कुप्रथाएं या आदतें छोड़ गये जिनसे समाज विशेषकर युवा पीढ़ी का नैतिक पतन हो रहा है। विश्व बंदनीय भगवान महाबीर, भगवान बुद्ध, भगवान श्रीराम के देश में आजादी के बाद भी पाश्चात्य संस्कृति का निरंतर बढ़ता प्रभाव चिन्ता का विषय है।                           
नोट:- लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं भारतीय जैन मिलन के राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष है।

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