राज्य शासन की अर्थ नीति

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वर्तमान में चुनाव कार्यकाल में सब पार्टियां दिल खोलकर जनता को प्रलोभन देकर चुनाव जीतना चाहती हैं और कोई न कोई पार्टी सत्तारूढ़ होगी और उस पार्टी द्वारा इतना अधिक सुविधाएँ देने की घोषणा जो बहुत अच्छा प्रयास हैं और उससे जनता कितनी खुश और लाभप्रद होंगी यह नहीं मालूम पर मध्य प्रदेश की जनता पर जरुर अधिकतम कराधान देना होगा ,सामान्य वर्ग अन्य वर्गों को पालन करे और सरकार वाह वाही लूटे .और जनता लुटे.इससे सरकार कर्ज़ों में डूबी हैं और विकास की रफ्तार में कमी अवश्य आती हैं .लाभार्थी काम चोर और पराश्रित होते हैं .इससे नपुंसक संस्कृति पुष्पित पल्लवित होंगी .
शासन का सञ्चालन अर्थ संग्रह की अपेक्षा रखता हैं ,इसलिए राजा प्रजा से कर अर्थात टेक्स लिया करता हैं .इस विषय में भगवान् ऋषभदेव जी ने बहुत सुन्दर नीति जो बहुत मधुर हैं —
पयस्विन्या यथा क्षीरं अद्रोहेनोपजीव्यते .
प्रजापयेवं धनं दोहया नाति पीड़ा करैः करैः .(महापुराण १६ -२५४)
जिस प्रकार दूध देने वाली गाय से उसे बिना किसी प्रकार की पीड़ा पंहुचाये दूध दुहा जाता हैं ,उसी प्रकार राजा को भी प्रजा से धन लेना चाहिए .अति पीड़ाकारी करों के द्वारा धन संग्रह नहीं करना चाहिए .
बलात्कारपूर्वक प्रजा से धन -ग्रहण करने वाले राजा व प्रजा की हानि व राजकीय अन्याय की कड़ी आलोचना की गई हैं —
प्रासाद ध्वंसनेन लोहकीलकलाभ इव लंचेन राज्ञोार्थलाभः .
राज्ञो लंचेन कार्यकरणे कस्य नाम कल्याणम .
देवतापि यदि चौरेषु मिलति कुतः प्रजानां कुशलम .
लुन्चेनार्थो पाश्रयं दर्शयन देशं कोशं मित्रं तन्त्रं च भक्षयति .
राज्ञोन्यैयाकरणम समुद्रस्य मर्यादलांघनमादित्यस्य तमः पोषणमिव माचश्चपत्यभाषणमिव कलिकालविजृंभितानी .(नीतिवाक्यामृत ११/४० -४४ )
जो राजा बलात्कारपूर्वक प्रजा से धन ग्रहण करता हैं ,उसका वह अन्याय -पूर्ण आर्थिक लाभ महल को नष्ट करके लोह कीले के लाभ समान हानिकारक हैं .अर्थात जिस प्रकार जरा से -साधारण लोहे कीले के लाभार्थ अपने बहुमूल्य प्रासाद (महल ) का गिराना स्वार्थ नाश के कारण महामूर्खता हैं ,उसी प्रकार क्षुद्र स्वार्थ के लिए लूट – मार करके प्रजा से धन ग्रहण करना भी भविष्य में राज्य -क्षति का कारण होने से राजकीय महामूर्खता हैं क्योकि ऐसा घोर अन्याय करने से प्रजा पीड़ित व संत्रस्त होकर वगावत कर देती हैं ,जिसके फल -स्वरूप राज्य क्षति होती हैं .
जो राजा बलात्कार करके प्रजा से धनादि का अपहरण करता हैं ,उसके राज्य में किसका कल्याण हो सकता हैं ?किसी का नहीं .
यदि देवता भी चोरों की सहायता करने लगे ,तोफिर किस प्रकार प्रजा का कल्याण हो सकता हैं ?नहीं हो सकता हैं .जब रक्षक ही पक्षक हो जाय -राजा ही जन रिश्वतखोरों व लूटमार करने वालों की सहायता करने लगे ,तब प्रजा का कल्याण किस प्रकार हो सकता हैं ?नहीं हो सकता हैं
अन्यायी लूटमार करने वाले राजा के विषय में इसी प्रकार का कथन किया हैं .रिश्वत वा लूटमार आदि घृणित उपाय द्वारा प्रजा का धन अपहरण करने वाला राजा अपने देश (राज्य )खजाना ,मित्र व सैन्य नष्ट कर देता हैं . राजा का प्रजा के साथ अन्याय (लूटमार आदि )करना ,समुद्र की मर्यादा का उल्लंघन ,सूर्य को अँधेरा फैलाना व माता को अपने बच्चे का भक्षण करने के समान किसी के द्वारा निवारण न किया जाने वाला महाभयंकर अनर्थ ,जिसे कलिकाल का ही प्रभाव समझना चाहिए .अतएव राजा को प्रजा के साथ अन्याय करना उचित नहीं हैं .
विकास के नाम पर अंधाधुंध टेक्स लगाना और राजकीय कार्यों में बिना सुविधा शुल्क के कोई काम न होना .अन्याय को धन के आधार पर न्याय करना बिलकुल उचित नहीं हैं .पेट की सीमा हैं पर पेटी की सीमा नहीं हैं .इसके बाद आज तक अपने साथ कुछ लेकर नहीं जा पाता हैं .उसके बाद भी संग्रह में लगे हैं .हर कंपनी मर्यादित ,लिमिटेड ,समिति होती हैं फिर भी अर्थ के पीछे सब प्रकार के पाप करते हैं .धन पाप पुण्य से मिलता हैं पर उसमे संतोष वृत्ति रखना होगा .
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड भोपाल 462026 मोबाइल ०९४२५००६७५३

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