ऋतु संधि काल में , खानपान पर विशेष ध्यान दे

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ऋतोरन्त्यादि सप्ताहावृतु संधिरीति स्मृतः .तत्र पूर्वो विधिस्त्याज्यः सेवनियॉपरः क्रमात .असातंज्य हि रोगाः स्युः सहसा त्यागशीलनात .(अष्टांग हृदय सूत्र अध्याय ३)
एक ऋतू के अंत के सात दिन और दूसरी ऋतू के आदि के सात दिन ,इन चौदह दिनों का नाम ऋतुसंधि हैं .एक ऋतू के अंतिम सात दिनों में क्रमशः उस ऋतू के नियमों का त्याग करते हुए अग्रिम ऋतू के प्रारम्भ के सात दिनों तक पूर्ण त्याग तथा अग्रिम ऋतू के सेवनीय आहार -विहार को इन चौदह दिनों में क्रमशः शनैः शनैः सेवन करना चाहिए .
वर्षा शीतो चितांगनाम सहसैवारकर रश्मिभिः .तप्तानामचितम पित्तम प्रायः शरदि कुप्यति (च सं सूत्र स्थान ६/४१ )
वर्षा काल में जिनको शीतसाम्य हो गया रहता हैं ऐसे लोगों के अंग सहसा सूर्य की प्रखर किरणों से तप्त हो जाते हैं ,फलतः वर्ष ऋतू में संचित हुआ पित्त शरद ऋतू में प्रकुपित हो जाता हैं .
बारिश के बाद अब शरद ऋतु का आगमन हो रहा है। आयुर्वेद शरद ऋतु को पित्त के कोप का समय मानता है। ऐसे में समय पर और नियमित रूप से अपनी पाचन शक्ति के अनुसार अनुकूल मात्रा में पोषक तत्वों से युक्त आहार लेना चाहिए।
बारिश के बाद अब शरद ऋतु का आगमन होता है। आयुर्वेद शरद ऋतु को पित्त के कोप का समय मानता है। ऐसे में खानपान में अत्यंत सावधानी बरतनी आवश्यक है। समय पर और नियमित रूप से अपनी पाचन शक्ति के अनुसार अनुकूल मात्रा में पोषक तत्वों से युक्त आहार लेना चाहिए। इसे ऋतु संधि काल भी कहा जाता है। यानी वर्षा ऋतु और शरद ऋतु के बीच का समय। यह सर्दियों की शुरुआत वाला मौसम है। इस बीच वर्षा ऋतु के खान पान को धीरे-धीरे छोड़कर शरद ऋतु के खान पान को अपनाना चाहिए।
किसी एक मौसम में कोई एक दोष बढ़ता है तो कोई दूसरा शांत होता है, जबकि दूसरे मौसम में कोई अन्य दोष बढ़ते-घटते रहते हैं। आयुर्वेद में हर मौसम के हिसाब से रहन-सहन और खान पान के निर्देश दिए गए हैं। इन निर्देशों का पालन करके आप निरोग रह सकते हैं। प्रतिदिन किया जाने वाला आहार, विहार एवं दैनिक क्रिया जो अपने लिए हितकर हो, दिनचर्या कहलाता है। इनका उचित पालन करने से शरीर की शुद्धि होती है और दोषों का प्रकोप नहीं होता है।
शरद ऋतु में स्निग्ध (चिकने) पदार्थ, मौसमी फल व शाक, घी, दूध, शहद आदि के सेवन से शरीर को पुष्ट और बलवान बनाना चाहिए। कच्चे चने रात को भिगोकर सुबह खूब चबा-चबाकर खाना, गुड़, गाजर, केला, शकरकंद, सिंघाड़े, आंवला आदि कम खर्च में सेवन किए जाने वाले पौष्टिक पदार्थ है। शरद ऋतु में उबटन ,लेप व शरीर की मालिश अत्यंत लाभकारी है।
शरद ऋतु में क्या खाएं
-इस मौसम में पित्त को शांत करने के लिए घी और तीखे पदार्थों का सेवन करना चाहिए। इस लिहाज से मीठे, हल्के, सुपाच्य खाद्य एवं पेय पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
-चावल, मूंग, गेहूं, जौ, उबाला हुआ दूध, दही, मक्खन, घी, मलाई, श्रीखंड आदि का सेवन लाभकारी होता है।
-सब्जियों में चौलाई, बथुआ, लौकी, तोरई, फूलगोभी, मूली, पालक, सोया और सेम खाएं।
-फलों में अनार, आंवला, सिंघाड़ा, मुनक्का और कमलगट्टा लाभकारी हैं।
– इस ऋतु में हरड़ के चूर्ण का सेवन, शहद, मिश्री या गुड़ मिलाकर करना चाहिए।
-आंवले को शक्कर के साथ मिलाकर खाएं।
क्या ना खाएं
इस मौसम में सरसों का तेल, मट्ठा, सौंफ, लहसुन, बैंगन, करेला, हींग, काली मिर्च, पीपल, उड़द से बने भारी खाद्य पदार्थ नहीं खाने चाहिए। इसके अलावा कढ़ी जैसे खट्टे पदार्थ, क्षार द्रव्य, दही और नमक वाले खाद्य पदार्थ अधिक मात्रा में नहीं खाने चाहिए।
स्वस्थ्य रहने के लिए इन दिनों नियमों का पालन हितकारी होता हैं .
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड भोपाल 462026 मोबाइल ०९४२५००६७५३

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