पटाका फोड़ने से अनेक लाभ ! —- विद्या वाचस्पति पति-डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन भोपाल

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हमारी मानसिकता हैं की हमें नियम का विरोध करना .हमें शुरू से पढ़ाया जाता हैं की हमें झूठ नहीं बोलना चाहिए ,यह नहीं सिखाया जाता हैं की हमें सच बोलना चाहिए. हम हमेशा गलत दिशा में वाहन चलाएंगे ,हम लाल बत्ती की अवहेलना करते हैं . इसीलिए में कहता हु की बीड़ी पीने से तीन फायदे होते हैं .पहला घर म चोरी नहीं होती ,कुत्ता नहीं काटता और बुढ़ापा नहीं आता. अंडा खाओ हृदय रोग बुलाओ .सुप्रीम कोर्ट ने वायु प्रदुषण और स्वास्थ्य को लेकर पटाखों पर प्रतिबन्ध लगाया तो हमने उसका पूरी ताकत से विरोध कर पटाखों को फोड़ें .और हम अपने आप में गौरवान्वित हुए .हमारा मध्य प्रदेश भी क्यों कम रहता ?
हम प्रजातांत्रिक देश में रह रहे हैं ,यहाँ स्वछंदता का वातावरण हैं .हां यदि हम कोई तानाशाह या हिटलरशाही देश में रह रहे होते और ऐसी गुस्ताफी करते तो हमारा हश्र कैसा होता ? हम चाहते हैं सारे नियम तोड़ दो . इस सम्बन्ध में संविधान की कोई जरुरत नहीं हैं इस देश में .कारण हमें किसी न किसी बहाने नियमों की अवहेलना करना हमारा नैतिक धरम हैं . कोई भी अच्छा कार्य हमें कष्टप्रद लगता हैं . सुप्रीम कोर्ट को यह कह देना चाहिए की अगले वर्ष अपना घर बेचकर पटाकेँ फोड़ें और विशेष कर जिनके घर हृदय रोगी श्वास रोगी ,अलेर्जिक रोगी , शिशु होवे वे उधार लेकर जरूर फोड़े फटाकेँ और जिसके अड़ोस पड़ोस में ऐसे रोगी हो तो उन्हें जरूर सहयोग दे जिससे अगले दिन उनके क्रिया कर्म के भाग लेने के बहाने छुट्टी मिल जाएँगी .
फायदे बहुत हैं पहली बात हम अपने आनंद /ख़ुशी को मनाने अपना पैसा स्वयं अपने हाथों से जलाकर ताली बजाकर आंनद का अनुभव करते हैं आखिर हम लोग कल्याणकारी राष्ट्र के निवासी हैं .कम से कम हम उनके निर्माताओं ,बेचने वालों की आजीविका का पूरा ध्यान रखते हैं क्योकि आखिर उनका भी पेट लगा हैं .दूसरा यदि फोड़ने से हमारे घर में कोई दुर्घटना होती हैं और कोई अपंग होता हैं तो हमें जिंदगी भर उसकी सेवा करने का अवसर मिलता हैं .और कभी कभी घर जल जाता हैं तो नया घर इस बहाने बन जाता हैं अपंग या दुर्घटनाग्रस्त होने पर हमारा इलाज हॉस्पिटल में भर्ती होने पर होने से डॉक्टर का भी भला होता हैं . और कभी कभी हमारे परिवार के सदस्य जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करते हैं और हॉस्पिटल में शायद बिना दाम के इलाज़ तो नहीं होता .
हम इतने खुदगर्ज़ हैं की हमें पड़ोस धरम निभाना नहीं आता जैसे पाकिस्तान को पड़ोस धरम निभाना नहीं आता .आखिर हम उस परम्परा का निर्वाह करते हैं .कल ही एक प्रिंसिपल को पडोसी के लड़कों ने पीट दिया कारण प्रिंसिपल ने अपने घर के सामने पटाखे फोड़ने से मना किया ! मामला ठाणे पहुंच गया और उन लड़कों की दिवाली पूजन थाने में हुई. उसके बाद हमने कानून के विरोध में खूब तेज़ आवाज वाले बम फोड़े. और हम इतने राष्ट्र प्रेमी हैं की हमने चीन के पटाखों को विरोध स्वरुप आग लगाकर उसके पटाखों का विरोध दर्ज़ कराया पटाखा जलाकर .जैसे अंग्रेजों के ज़माने में विदेशी सामान की होली जलाने विदेशी सिगरेट को पीकर देश प्रेम दिखाते थे.
आगामी वर्ष के लिए सुप्रीम कोर्ट एक आदेश निकाल दे अभी से की प्रत्येक भारतीय अनिवार्य रूप से उधार लेकर खूब बम और पटाखे फोड़ें और जो न फोड़ेंगे उनको दंड का भागिदार होना होगा. क़र्ज़ लेकर और जिनके यहाँ हृदय रोगी ,श्वास रोगी कैंसर रोगी हो उनके यहाँ जाकर अवश्य फोड़ना होंगे .
हिंदुस्तान वास्तव में भेड़िया धसान हैं ,हमें अच्छे कामों में विरोध करना ही हैं चाहे उससे हमें कितना भी फायदा हो. हम जब कोई व्यापारिक संस्था बनाते हैं तब उसमे लिमिटेड /मर्यादित शब्द का क्यों उपयोग करते हैं ,अनलिमिटेड क्यों नहीं बनाते हैं ?हम अपना वाहन असीमित स्पीड में क्यों नहीं चलाते हैं ?हम असीमित खाना क्यों नहीं खाते हैं ? यहाँ वाहन चलाने ,खाना खाने में कोई प्रतिबन्ध नहीं पर हम सीमा में क्यों खाते हैं ?ऐसा भी नहीं की फ्री में मिल रहा हैं तो खूब खाओ या खुली सड़क मिल गयी तो दो सौ किलोमीटर की स्पीड से चलो और फिर कुछ हुआ तो फिर मरो .
सुप्रीम कोर्ट ने स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए प्रतिबन्ध लगाया था ना की पटाखें न चलाये पर हम देश वासी नियम में कैसे रह सकते हैं .यह अहसास किसी को कब होगा जब वह स्वयं या उसका परिवार उस प्रदुषण और पर्यावरण से प्रभावित होता हैं जब लगता हैं की ये आवाज और हवा कितनी नुक्सान दायी हैं ,वैसे हम सबसे प्रदूषित राष्ट्रों में सबसे अग्रणी हैं . चीन ,पाकिस्तान ,बंगलादेश ,नाइजीरिया से हम आगे हैं मात्र एक वर्ष में 25लाख15 हज़ार 5सौ पंद्रह मौतें जल, वायु ,के प्रदुषण से होती हैं जिसमे वायु से 18 लाख से अधिक और जल प्रदुषण से 6लाख 40 हजार मौतें हुई .ये मौतें एच .आई वी ,टी बी और मलेरिया से तीन गुनी अधिक हैं .
यह बात समझ से परे होती जा रही हैं की पहले हम अशिक्षित थे तो सबकी बात मान लेते थे पर हम जितने अधिक शिक्षित /पढ़े लिखे /बौद्धिक होते जा रहे हैं उतने हम नियम विरोधी और असंवेदनशील होते जा रहे हैं .इसे प्रज्ञापराध कहते हैं .जो अपराध बुद्धि के द्वारा जानबूझकर किया जाता हैं .
सरकार , अन्य संस्थाएं जितना इसके सम्बन्ध में हानियां /नुक्सान बताती हैं उतना हम विरोध करते हैं ? क्या हम बहुत अधिक आर्थिक रूप से सम्पन्न हो गए ? क्या नियमों को तोडना हमारा मौलिक अपराध हैं ? क्या हम विवेकहीन होते जा रहे हैं ?क्या यह सं संकीर्ण मानसिकता का ञोतक नहीं हैं ?
बीती ताहिं बिसार दे ,आगे की सुध ले. एक वर्ष हम सादगी से ,जितनी अनिवार्यता हो उससे दीवाली का त्यौहार मनाएं और उससे होने वाली स्वयं की बचत के साथ हम स्वास्थ्य और पर्यावरण में कितना सहयोग दे सकते हैं इस पर विचार करे.
हम नहीं सुधरेंगे कारण हम अहंवादी हैं
हम नहीं सुधरेंगे कारण हम धन वादी हैं
हम नहीं सुधरेंगे कारण हम हृदयहीन हैं ,
हम नहीं सुधरेंगे कारण हम संवेदनहीन हैं
हम नहीं सुधरेंगे कारण पर से अपेक्षा रखते हैं
हम जब सुधरेंगे जिस दिन हम पर बीतेंगी
हमजब सुधरेंगे जब हमारा कोई विछुड़ेंगा उस दिन
विद्या वाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन शाकाहार परिषद् भोपाल 09425006753

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