मन की अभियक्ति — विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन भोपाल

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दिनांक २० अक्टूबर २०१२ को हमारे द्वारा पैसिफिक ब्लू सोसाइटी में गृह प्रवेश किया था .गृह प्रवेश करना जरुरी था मज़बूरी थी पर अनमने मन से प्रवेश किया .कारण २ सितम्बर २०१२ को श्रीमती सरिता जैन (पत्नी ) ओनिशा की मम्मी ,सचिन की सासु माँ ,आरवी की नानी और हमारे परिवार की बहु ,भाभी ,चाची ,मौसी ,नानी .दादी एवं नायक परिवार की पुत्री, बहिन ,बुआ का निधन होने के कारण अतिउत्साह में कमी रही .
जो जिंदगी भर अपने निजी निवास के लिए उत्साहित रही ,उसे निज निवास का सुख नसीब नहीं हुआ .मनुष्य के जीवन में बड़ी विचित्रता हैं .नए निवास ,नए परिवेश में एकाकी जीवन जीना बहुत कठिन कार्य होता हैं .सभी लोगों का सहयोग रहा .बेटी दामाद के साथ बड़े भाई भाभी ,भतीजे भतीजियां ,भाई ,बहिन ,साले लोगों का स्नेह रहा और सभी की आत्मीयता रही .
जैसा मेने “आनंद कही अनकही “उपन्यास में टिन्नी को एक शिक्षक के रूप में दर्शित किया .वास्तव में उनके लगभग ३२ वर्षों के सानिंध्य में हमारे घर, परिवार, नाते रिश्तेदारों को तराशा ,निभाया और अपनी कीर्ति स्थापित की वह आज भी स्थायी अमानत हैं .कुशल गृहणी ,कलाकार ,और सुव्यवस्थित घर को तराशने का काम किया .वह छाप आज भी दिखाई देती हैं .चुनाव हमेशा अद्भुत रहता था .जिनसे प्रेम तो अटूट रहता था .आज भी उनकी प्रिय सहेलियां उनकी याद में रो लेती हैं .
वर्ष २०१२ के बाद कुछ समय अनमना सा रहा .इस भरी दुनिया में सब होते हुए भी कोई नहीं रहता हैं .कमी तो खलती हैं पर विपरीत स्थितियों में जीवंत बने रहना बहुत कठिन कार्य हैं .पुराने संस्कार ,पूज्य पिताजी की शिक्षाए वात्सलयमयी माँ का दुलार ,बड़े भाई का अनुशासन, भाभी जी का स्नेह ,और स्थानीय मित्र श्री नितिन जी की प्रेरणा ,भाई हरिशंकर शर्मा जी .कमलेश चौरसिया जी का समय समय बड़े भाई छोटे भाई जैसा प्रेम की बदौलत आज भी बिना उनके जिन्दा हूँ .देखा सुना जाता हैं की पत्नी की मृत्यु उपरांत या पति की मृत्यु उपरांत पत्नी कोई अधिक समय तक जिन्दा नहीं रहता .जीवन मरण हमारे हाथ में नहीं हैं .जिसको जितना जीवन मिला हैं उसे भोगना /काटना पड़ता हैं .मृत्यु कोई नयी चीज़ नहीं हैं ,जो जन्मा
हैं उसकी मृत्यु निश्चित हैं .कब ,कहाँ ,कैसे होना हैं यह अनिश्चित हैं .
विपरीत समय में धर्म का आलम्बन ,सकारात्मक सोच ,ऊर्जावान रहना और रचनात्मक कार्यों में लगे रहना ,सबसे बहुमूल्य समता भाव रखना .इस दौरान मेने अपने आपको व्यवस्थित किया .कोई न कोई उत्प्रेरक् का कार्य करता हैं .भाई नितिन जी ने बहुत ही खुले दिल से संग दिया ,सोई हुई ऊर्जा को उत्प्रेरित किया .पूर्व का रुझान .पुस्तकों का संग्रह और लिखने को प्रेरित किया .इसी समय भाई सनत जैन एक्सप्रेस न्यूज़ भोपाल ने मेरे लेख निरंतर समाचार पात्र में प्रकाशित किये ..
उसके बाद पिता जी श्री प्रेमचंद जैन की सौवी पुण्य तिथि में भक्ति की शक्ति पुस्तिका प्रकाशित की .उसके बाद आनंद कही अनकही ,चार इमली ,चौपाल, चतुर्भुज ,चेतना का चातक,सुहाना सफर एवं अन्य पचास कहानियां ,परिषह जयी और स्वस्थ्य एवं सुखी जीवन के अनमोल सूत्र के साथ हज़ारो की संख्या में लेख पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए .
वर्ष २०१५ से मेने हिंदी भवन, दुष्यंत कुमार संग्रहालय .भारत भवन ,रविंद्र भवन ,शहीद भवन और अन्य साहित्यिक संस्थाओं से जुड़कर खूब भागीदारी निभाई .इन संस्थाओं में भी अच्छा स्थान मिला .कई संस्थाओं ने सम्मान भी किया .
वर्त्तमान में ,मैं भगवान का आभार वंदन अभिनन्दन करता हूँ जो आज भी जिन्दा हूँ और साथ ही साथ मध्य प्रदेश शासन का शुक्रगुजार हूँ जो मुझे ३७ वर्ष से अधिक सेवाओं के बदले पेंशन दे रही हैं जिससे मानसिक तनाव रहित जीवन यापन कर रहा हूँ .आर्थिक आभाव से मनुष्य टूट जाता हैं .अर्थ से बल मिलता हैं जिससे उत्साह बना रहता हैं .पराधीन सपने सुख नाहीं .पराधीनता भी दुःख का कारण होता ही हैं .ईश्वर की अनुकम्पा से इस क्षण तक मेरे ऊपर कोई क़र्ज़ नहीं हैं . और बस ईश्वर से यही प्रार्थना हैं की मुझे समता भाव के साथ जीवन की अंतिम श्वास निकले .शेष जीवन स्वस्थ्य और जागरूक रहे बस यही भावना हैं .
मेरे इतने जीवन तक कितने लोगों का स्नेह ,प्रेम ,दुलार और उलाहना मिली और कितनो को मेरे द्वारा प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष में कष्ट दिया होगा उनसे अनजान हूँ पर क्षमा माँगना मेरा अधिकार हैं .देना न देना उनका काम हैं .
मानव होने के नाते कोई न कोई को मानसिक दुःख दिया होगा उनसे भी क्षमा प्रार्थी .
अंत में मैं सभी जनों से यह अपेक्षा रखता हूँ की अब तक जैसा निभाया और आगे भी निभाते रहना .
कुछ जीवन शेष बचा हैं ,हंस कर कट जाये ,बीत जाए ,जितना अच्छा हो सके कर जाए .
सबसे जय जिनेन्द्र और सबको जय जिनेन्द्र
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड भोपाल 462026 मोबाइल ०९४२५००६७५३

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