*”मन” की स्थिति बड़ी विचित्र है,क्षण भर में हम रुष्ट हो जाते है,क्षणभर में ही खुश हो जाते है, मुनि श्री प्रमाण सागर जी
राजेश जैन दद्दू
इंदौर
आज रामचंद्र नगर स्थित आदिनाथ बाग में पुज्य मुनि श्री प्रमाण सागर जी अपनी मंगल देशना में कहा कि
बाहर के उतार चडा़व को तो हम रोक नहीं सकते,लेकिन मेरी भावना की ये पक्तियों को यदि हम जीवन में चरितार्थ कर लें, तो हमारा जीवन धन्य हो जाऐगा*
*”होकर सुख में मग्न न फूले,दुःख में कभी न घबरावे,इष्ट वियोग और अनिष्ट योग में, सहनशीलता दिखलावे” यही धर्म का अंतरंग पक्ष है,अंदर की समता अर्थात ठहराव लाकर आप सदा बहार प्रसन्न रह सकते है”।
मुनि श्री ने कहा कि हम लोगों के मन में जब इष्ट का वियोग और अनिष्ट का संयोग होता है,तो कयी प्रकार के विकल्प आते है,और जब भी मन के विरुद्ध कुछ घटता है,तो मन परेशान हो जाता है, संत कहते है की थोड़ा विचार करो संसार में जो कुछ भी घट रहा है क्या सब कुछ तेरे हाथ में है?जब तेरे हाथ में कुछ भी नहीं है, तो तू क्यों परेशान होता है, “बस्तु का परिणमन मेरे स्वभाव से नहीं उसका परिणमन उसके स्वभाव से होता है” जब यह बात समझ लोगे तो इष्ट अनिष्ट विकल्प नहीं आऐंगे।
मुनि श्री ने कहा कि यह हमारी भूल है कि हमने पुण्य और पाप के फल को अपना मान लिया और यह धारणा बनाली कि जो में जो चाहुं वह कर सकता हूं, जैसा में चांहू और जो में करूं वही हो,इसी बुद्धि से प्रेरित होकर मेंने पर में इष्ट और अनिष्ट की कल्पना की और अपने विचारों को दूसरे पर थोपा अपने बिचारो से किसी को अच्छा,और किसी को बुरा कहा राग द्वैष की परणति ही मेरे दुःखों का असली कारण है। मुनि श्री ने कहा कि जैसे “मृग” को रेगीस्तान में सूर्य की किरण पानी के समान दिखाई देती है और वह मृग पानी के पीछे दोड़ दोड़ कर अपने प्राण गंवा देता है,यह मृगतृष्णा ही है जो आपको सबको दौड़ लगवाती है। मुनि श्री ने कहा कि जब तक अंतरंग में ऐसा अज्ञान वैठा रहेगा व्याकुल चित्त बने रहेगो,यदि अपने चित्त को प्रसन्न बनाये रखना चाहते हो तो एक बात ध्यान में रखो कि “में एक शुद्ध आत्म तत्व हूं मेरी आत्मा के अतिरिक्त एक परमाणु भी मेरा अपना नहीं है, में ज्ञान दर्शन लक्षण से युक्त एक आत्मा हूं मेरा कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ कर सकता है और न कोई सुधार सकता है,मुझसे जुड़ी हुई सभी चीजें संयोगाश्रित है उन बस्तुओं की इष्ट या अनिष्ट मानना ही मेरे मन की झूंठी कल्पना है” मुनि श्री ने कहा कि मन में स्वभाव को जान लेंने से और स्वीकार करने से प्रसन्नता आ जाती है,सबसे पहले अपने आप को अपने स्वभाव को अपने स्वरुप को जानकर बस्तु के स्वरुप को जान लोगे तो आपको संकल्प और विकल्प नहीं उठेंगे,तथा सामान्य रूप से जो व्यवस्था बनाई है उस व्यवस्था को स्वीकार कर लोगे तो किसी भी प्रकार के संकल्प विकल्प और असंतोष के भाव नहीं उठेंगे। मुनि श्री ने कहा कि आप लोग अपने दुःखों का रोना तो रोते हो, यह क्यों नहीं सोचते कि मुझे यह नर भव मिला सुंदर स्वस्थ शरीर मिला यह क्या कम है? अपनी तुलना अपने से नीचे बालों से करो अपने से ऊपर बालों से नहींं, जो चीजें तुम्हारे हाथ में है वही तुम पा सकते हो जो चीजें तुम्हारे नियंत्रण से बाहर है उसे तदानुरुप स्वीकार कर लोगे तो आपको दुःख नहीं होगा।अभावोन्मुखी दृष्टि को स्वभावोन्मुखी दृष्टी की ओर ले जाओगे तो सुःख महसूस करोगे,कल की व्यवस्था को बनाओ पुरुषार्थ करो लेकिन उसकी चिंता में अपने आज को नष्ट मत करो यदि यह सोच आपने विकसित कर ली तो हर पल आनंद महसूस करोगे, साधू संतों के सानिध्य में आकर यदि धर्माचरण का पालन नहीं किया तो आपका सत्संग बेकार है, और यदि उसे आत्मसात करोगे तो आपको प्रसन्नता महसूस होगी। धर्म समाज प्रचारक राजेश जैन दद्दू एवं प्रवक्ता अविनाश जैन ने बताया आज सांयकाल का शंकासमाधान रामचंद्र नगर में होकर रात्री विश्राम यंही होगा।कार्यक्रम के शुभारंभ में आचार्य श्री के चित्र का अनावरण एवं दीप प्रज्जवलन धर्म प्रभावना समिति के पदाधिकारियों ने किया इस अवसर पर अध्यक्ष अशोकरानी डोसी,महामंत्री हर्ष जैन, नवीन आनंद गोधा कमल अग्रवाल अनिल गांधी डॉ जैनेन्द्र जैन विपुल बांझल सहित रामचंद्र नगर के पदाधिकारी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।इस अवसर पर मुनि सेवा से जुड़े कार्यकर्ताओं ने शास्त्र भेंट किये तथा स्मृति नगर,संगम नगर,अंजली नगर के सदस्यों ने गुरु चरणों श्री फल अर्पित कर उनकी कालोनी में पधारने का अनुरोध किया। संचालन अभय भैया ने किया।
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