लव जिहाद किसी तरह भी स्वीकार्य नहीं हो सकता

0
112

भारत में अन्तर्जातीय शादियों से लोगों को नफरत—–विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन,भोपाल
——————————————————————————————————————-
एक उम्र के बाद शादी करना अनिवार्य तो नहीं पर किये जाते हैं .जब लड़का -लड़की युवावस्था में होते हैं तब उनके शरीर में हार्मोन का स्त्राव होने से उनके शरीर व स्वाभाव में परिवर्तन होता हैं .इसी समय विपरीत लिगों के प्रति आकर्षण होता हैं और दोनों वर्ग केएक दूसरे के प्रति जिज्ञासु होते हैं और पहले २५ वर्षों तक गुरुकुलों में अध्ययन अध्यापन होने के कारण काम वासना के प्रति ध्यान नहीं जाता रहा होगा और वहां पर मनोवैज्ञानिक ढंग से गुरु मुख से शिक्षा मिलती थी .गुरुकुल शिक्षा प्रणाली में बालक बालिकाएं पृथक गुरुकुल में पद्धति थी पर अंग्रजों ने गुरुकुल संस्थाएं बंद करवाकर कान्वेंट संस्कृति और सह-शिक्षा का चलन बढ़ाया .
आजादी के पहले और शुरूआती दौर में ;लड़कियों की शिक्षा पर नियंत्रण रहा पर जैसे जैसे जागरूकता बढ़ी और जैसे जैसे पढाई, नौकरी ,व्यापार में भागीदारी के कारण घर से बाहर निकलना हुआ और उसके बाद उनमे स्वतंत्रता के साथ स्वच्छंता की मानसिकता होने से मनमानापन शुरू हुआ .उम्र के इस पड़ाव में ख़याली पुलाव बनते हैं और स्वाभाविक रूप से लड़के लड़कियां सुंदरता और सुडौलता के साथ आकर्षित होते हैं .जैसा कहा जाता हैं की “नींद न देखें टूटी खाट ,भूख न देखें जूठा भात और प्यार न देखें जात पात “इस उम्र में माँ बाप और निजी लोग दुशमन लगने लगते हैं और पहले झूठा प्यार और चंगुल में फंसने के बाद शादी और उसके बाद उपयोग करने पर या बच्चे होने पर थोड़ा सा मन मुटाव होने पर अलग होना .कभी कभी प्रताड़ना देना ,और कभी हत्या होना आम बात हैं .
एक विशेष कौम का मूल ध्येय हैं अन्य जातियों की बालिकाओं को अपने चंगुल में फंसाओं और उनका शोषण करो और मौका मिलते ही यूज़ एंड थ्रो करो . जरूरत पड़ने पर इतना कष्ट दो की उसे उनका घर त्यागना पड़े और अपने घर वापिस न जाने से बहुत ही दरिंगी की जिंदगी जीना पड़ती हैं या वैश्यालयों में जाने को मजबूर या फिर आत्महत्या करना स्वीकार्य होता हैं . यह एक असाध्य बिमारी बन चुकी हैं .इसमें बच्चों को हर सिक्के के लाभ हानि बताकर उनको समय से शादी करे और इस मामले में उन बच्चों को अपने माँ बाप अभिभावकों की बातें ,अनुभव ला लाभ ले जो उनके भविष्य को सुखद और आनंदमय बना सके .
अधिकतर भारतीय मानते हैं कि धार्मिक सहिष्‍णुता देश की पहचान का अहम हिस्‍सा है। एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार, हर धर्म के लोगों ने कहा कि उन्‍हें अपने धर्म के पालन की पूरी आजादी है।
अपनी विविधता के लिए मशहूर भारत में हर धर्म के पालन की स्‍वतंत्रता है। दुनिया के सबसे ज्‍यादा हिंदू, सिख और जैन भारत में रहते हैं। मुस्लिमों की अच्‍छी-खासी आबादी के अलावा करोड़ों ईसाई और बौद्ध भारत में शांति से रहते हैं। धर्म को लेकर भारतीयों की सोच क्‍या है? दूसरे धर्मों को वे किस तरह देखते हैं? आइए जानें रिपोर्ट की 10 बड़ी बातें—–
सर्वे में शामिल अधिकतर भारतीयों ने कहा कि उनकी जिंदगी में धर्म का बहुत महत्‍व है। हर धर्म के लगभग तीन-चौथाई लोगों ने कहा कि वे अपने धर्म के बारे में काफी कुछ जानते हैं।
दूसरे धर्म के लोगों को अलग देखते हैं भारतीय
काफी ऐसी बातें हैं जिन्‍हें लेकर हर धर्म के लोग एकमत हैं। जैसे कर्म के सिद्धांत पर ७७ % हिंदू विश्वास करते हैं तो इतने ही मुस्लिम भी। एक-तिहाई ईसाई (३२ %) भी ८१ % हिंदुओं की तरह गंगा के पानी की शुद्धता में यकीन रखते हैं। लगभग हर धर्म के लोगों ने कहा कि बड़ों का सम्मान उनके धर्म में बहुत जरूरी है।
इसके बावजूद लोग यह नहीं मानते कि दूसरे धर्म के लोग उनके जैसे हैं। अधिकतर हिंदू (६६ %) खुद को मुस्लिमों से अलग देखते हैं और मुसलमानों का भी यही रवैया है। हालांकि आधे से ज्यादा जैन और सिख मानते हैं कि उनमें और हिंदुओं में काफी कुछ मिलता-जुलता है।
दूसरे धर्म में शादियां रोकना चाहते हैं सब
भारत में अलग-अलग धर्मों के बीच शादियां बेहद कम होती हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, अधिकतर भारतीयों ने कहा कि उनके धर्म के लोगों को दूसरे धर्म में शादी करने से रोकना बहुत जरूरी है। मुस्लिम महिलाओं को दूसरे धर्म में शादी करने से ८० % मुसलमान रोकना चाहते हैं जबकि ६७ % हिंदू नहीं चाहते कि महिलाएं मुस्लिमों से शादी करें।
दूसरे धर्म के लोगों को नहीं बनाते पड़ोसी या दोस्‍त
भारतीय आमतौर पर अपने धर्म के लोगों को ही दोस्‍त बनाते हैं। सिख और जैन धर्म के लोगों का भी कहना है कि उनके दोस्‍त धर्म के भीतर ही हैं। कुछ भारतीय तो यहां तक कहते हैं कि उनके पड़ोस में केवल उनके धर्म के लोग रहने चाहिए। ४५ % हिंदुओं ने कहा कि उन्‍हें किसी और धर्म का पड़ोसी होने पर कोई दिक्‍कत नहीं है। हालांकि ४५ % हिंदुओं ने कहा कि वे दूसरे धर्म के पड़ोसियों को बर्दाश्‍त नहीं करेंगे।
धार्मिक और राष्‍ट्रीय पहचान को जोड़कर देखते हैं ज्‍यादातर हिंदू
सर्वे में करीब दो-तिहाई (६४ %) हिंदुओं ने कहा कि ‘सच्‍चा’ भारतीय होने के लिए हिंदू होना जरूरी है। अधिकतर हिंदुओं ने कहा कि वे हिंदी बोल पाने को भारतीय पहचान से जोड़कर देखते हैं। ऐसे लोगों ने २०१९ के संसदीय चुनावों में बीजेपी को वोट भी दिया था।
अधिकतर मुस्लिम मानते हैं, भारतीय संस्‍कृति सबसे अच्‍छी
भारत के दूसरे सबसे बड़े धर्म, इस्‍लाम को मानने वाले ९५ % लोग कहते हैं कि उन्‍हें भारतीय होने पर बेहद गर्व है। ८५ % इस बात को मानते हैं कि भारतीय संस्‍कृति बाकी सबसे अच्‍छी है। २४ % मुस्लिमों ने कहा कि उन्‍हें भारत में ‘काफी भेदभाव’ का सामना करना पड़ा। २१ % हिंदू भी मानते हैं कि उन्‍हें भारत में धार्मिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
अपनी अदालतें चाहते हैं भारत के मुसलमान
सर्वे में शामिल तीन-चौथाई मुसलमानों ने कहा कि वे इस्‍लामिक अदालतों के वर्तमान सिस्‍टम तक पहुंच का समर्थन करते हैं।
खुद को जातियों के चश्‍मे से देखते हैं ज्‍यादातर भारतीय
ज्‍यादातर भारतीय जाति से अपनी पहचान जोड़ते हैं, चाहे व‍ह किसी भी धर्म के हों। हर पांच में से सिर्फ एक भारतीय ने कहा कि अनुसूचित जातियों के लोगों के साथ भेदभाव होता है।
दूसरी जाति में शादी से कतराते हैं भारतीय
६४ % भारतीयों ने कहा कि उनके समुदाय की महिलाओं को दूसरी जातियों में शादी करने से रोकना बहुत जरूरी है। हिंदू, मुस्लिम, सिख और जैन में इंटरकास्‍ट मैरिज को रोकना प्राथमिकता है।
धर्म परिवर्तन से आबादी पर ज्‍यादा असर नहीं
सर्वे में पता चला कि धर्मांतरण से किसी धार्मिक समूह की आबादी पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता।
८२ % भारतीयों ने कहा कि वे हिंदू पैदा हुए थे। लगभग इतने ही लोगों ने कहा कि वे अब भी हिंदू हैं। अन्‍य धर्मों में भी यही ट्रेंड दिखा।
यह लव जिहाद एक सोची समझी साज़िश पर .
हमारी कमजोरी का फायदा उठाना उनका काम हैं
और हमें सतर्क और जागरूक होना अनिवार्य हैं
एक क्षण की भूल
जिंदगी भर के लिए
गुनहगार बना देती हैं
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन, संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट होशंगाबाद रोड ,भोपाल 462026 मोबाइल ०९४२५००६७५३

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here