लज्जाशील मनुष्य कभी नही करता अपयशपूर्ण कार्य- मंजू जैन

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यमुनानगर, 30 जनवरी (डा. आर. के. जैन):
श्री महावीर दिगम्बर जैन मंदिर के प्रांगण में श्री महावीर चालीसा की 40 पाठों की श्रंखला के 15 वें पाठ का आयोजन संजीव जैन व दीपा जैन परिवार के सौजन्य से किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता मंदिर संरक्षक सुभाष जैन ने की तथा संचालन उपाध्यक्ष मुकेश जैन व महामंत्री पुनीत गोल्डी जैन ने किया। कार्यक्रम का शुभारम्भ कलश स्थापित कर किया गया। पं. शील चंद जैन ने संबोधित करते हुये कहा कि अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर प्रगतिशील परम्परा के संस्थापक 24 वें तीर्थंकर हुये है, इन्होंने अपनी व्रत संबंधी प्रतिशील क्रांति के द्वारा जैन धर्म को युगाणुकूल रूप दिया। उन्होंने बताया कि तीर्थंकरों की यह परम्परा वैज्ञानिक दृष्टि से सत्य का अन्वेषण करने वाली एक प्रमुख परम्परा रही है। महावीर की साधना वीत रागता की साधना थी। इस प्रकार इस युग की तीर्थंकर परम्परा की अंतिम कड़ी भगवान महावीर हैं। भगवान ने जनजीवन को तो उन्नत किया ही, साथ ही उन्होंने साधना का ऐसा मार्ग प्रस्तुत किया जिस मार्ग पर चल कर सभी व्यक्ति सुख व शांति प्राप्त कर सकते है। नितिन जैन ने कहा कि भगवान महावीर स्वामी ने साधू के 28 मूल गुणों को स्वीकार किया और साधना द्वारा अपने गुप्त आत्म वैभव को प्राकाशित करने का प्रयास किया। तीर्थंकर महावीर अपने समय के महान तपस्वी ही नहीं थे, बल्की एक उच्च कोटी के विचारक भी थे। उन्होंने धर्म और दार्शनिक विचारों को साधू जीवन के मुक्ती के साथ नीबद्ध कर क्रियात्मक रूप दिया। मंजू जैन ने कहा कि धर्म सुख का कारण है, जो धरण किया जाये या पालन किया जाये व धर्म है। जिसका कोई स्वभाव न हो पर आचार रूप धर्म केवल चेतन आत्मा में पाया जाता है। वास्तव में धर्म आत्मा को परमात्मा बनाने का मार्ग बताता है। मनुष्य के विचार भी आचार से निर्मित होते है और विचारों से निष्ठा व श्रद्धा उत्पन्न होती है। उन्होंने आगे बताया कि सम्यग्दर्शन के अभाव में न तो ज्ञान ही सम्यक् होता है और न चरित्र ही। लज्जा मानव जीवन का भूषण है, लज्जाशील जीवन स्वाभीमान की रक्षा हेतू अपयश के भय से कभी कदाचार में प्रवृत नहीं होती है, यही भगवान महावीर का संदेश रहा है। भगवान महावीर का मुख्य संदेश अहिंसा रहा है, क्योंकि अहिंसा द्वारा ही हृदया परिवर्तन सम्भव है, यह मारने का नहीं सुधारने का सिद्धांत है। अपराध एक मानसिक बीमारी है, इसका उपचार प्रेम, स्नेह, सदभाव के द्वारा किया जा सकता है। इस अवसर पर समाज के गणमान्य व्यक्ति, महिलाएं तथा बच्चे उपस्थित रहे
फोटो नं. 2 एच.
आयोजकों को सम्मानित करते पदाधिकारी………..(डा. आर. के. जैन)

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