औरंगाबाद नरेंद्र अजमेरा पीयूष कासलीवाल भारत गौरव साधना महोदधि सिंहनिष्कड़ित व्रत कर्ता अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज एवं सौम्यमूर्ति उपाध्याय 108 श्री पीयूष सागर जी महाराज ससंघ का विहार महाराष्ट्र के ऊदगाव की ओर चल रहा है विहार के दौरान भक्त को कहाँ की
कोई कितना भी अपना हो..
पहले अपना देखता है..!आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज
सभी को अपने और अपना पसंद है, पराये कोई भी नहीं। जब पराये भी अपने लगने लगे, तब मानना कि तुम्हारे अन्दर इन्सानियत का जन्म हो गया है। अब तुमसे भगवान ज्यादा दूर नहीं है। यही है विश्व बंधुत्व की भावना, सदभाव प्रेम मैत्री की भावना, देवत्व-शिवत्व की भावना, बुद्धत्व-अपनत्व और मनुष्यत्व की भावना। सभी अपनों के लिये जीते हैं, अपनों के लिये करते हैं, अपनों के लिये मरते हैं, अपनों को याद रखते हैं, लेकिन जीवन का कड़वा सच तो यही है कि तन भी अपना नहीं है, फिर ये सब अपने कैसे हो सकते हैं-?मनुष्य जीवन करोड़ो जन्मों की पुण्याई का फल है। चन्द समय के लिए मेहमान बनकर आये हैं, किसकी अर्थी कब उठ जाये, कुछ कहा नहीं जा सकता। इसलिए अर्थी उठे – उससे पहले जीवन के अर्थ को जान लेना जीवन की सबसे बड़ी समझदारी है। चिता जले – उससे पहले चेतना को जगा लेना सबसे बड़ी समझदारी है। अस्तियाँ बिखरे – उससे पहले परमात्मा के प्रति अटूट श्रद्धा, विश्वास पैदा कर लेना ही सबसे बड़ी समझदारी है। अन्यथा अर्थी तो उठेगी — चिता जलेगी — अस्तियाँ बिखरेगी। ये त्रैकालिक सत्य है, जिसे भगवान भी नहीं नकार पाये। समय के मूल्य को समझो और समझदार बन जाओ।
ज़िन्दगी के हर पल को अहोभाव के साथ जियो अन्यथा एक दिन ऐसा आयेगा कि आपके प्रोग्राम में आपकी गैर हाज़िरी होगी। इसलिए – *दान, पूजा, भक्ति, सेवा, परोपकार, नियम, संकल्प लेकर इस जीवन को महान बनाओ और परमात्मा से कहो – हे प्रभु! सब तेरा है तेरा तुझको अर्पण करता हूँ। सब मेरे हैं और मैं सबका हूँ…!!!
– नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल