ज़िन्दगी जीने का मकसद तो सूकून का ही था… लेकिन क्या करें…? कोई मन्दिर चला गया तो कोई होटल मधुशाला…!’ अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर।

0
135

औरंगाबाद नरेंद्र /पियूष जैन। साधना महोदधि सिंहनिष्कड़ित व्रत कर्ता अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज एवं सौम्यमूर्ति उपाध्याय 108 श्री पीयूष सागर जी महाराज ससंघ का विहार महाराष्ट्र के ऊदगाव की ओर चल रहा है विहार के दौरान भक्त को कहाँ की

ज़िन्दगी जीने का मकसद तो सूकून का ही था… लेकिन क्या करें…? कोई मन्दिर चला गया तो कोई होटल मधुशाला…!’

आज के इस दौर में रोज नये नये होटल खुल रहे हैं, जिसमें स्वाद के नाम कचरा और जहर परोसा जा रहा है। यही कारण है शरीर फैलने का, बीमारियों से – झूझने का, घर परिवार में अशान्ति और तनाव बढ़ने का ।

पहले हमारे घर परिवार में माता बहिनें, शादी-ब्याह में गृहकार्य में हाथ बटाने जाती थी और अब नृत्य सीखकर, महिला संगीत में नृत्य करने, दिखाने और देखने के लिये जाती है। अक्सर जो महिला घर के – काम के समय बीमार पड़ जाती है, वही महिला संगीत में घंटो डान्स करती है।

मैं किसी कवि की ये पंक्ति सदा गाता गुनगुनाता रहता हूँ- मुझको मेरा प्यारा भारत देश चाहिए… धोती, कुर्ता, साड़ी, लहंगा भेष चाहिए। साड़ी नहीं पहनना और घुंघट नहीं डालना यहाँ तक तो ठीक है लेकिन ऐसे वस्त्र पहनना जिनसे न शरीर ढ़कता हो न दिखने में कुछ बचता हो । प्रभु जाने क्या होगा आगे….! छोटे बड़े की शर्म या डर सब खत्म हो गया। जितने छोटे, ओछे कपड़े पहनकर आप शादी पार्टी में जाते हैं, उतने आपके अपने लोग खुश होते हैं और आँखों के इशारे में एक दूसरे से कहते हैं- क्या आइटम आया…!

आज के इस दौर ने लोक लाज, खान-पान, रहन-सहन और भारतीय संस्कृति का सत्यानाश कर दिया। यदि हमने इन सब पर ध्यान नहीं दिया तो आने वाला समय आपके लिये खतरनाक साबित हो सकता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here