औरंगाबाद नरेंद्र /पियूष जैन। साधना महोदधि सिंहनिष्कड़ित व्रत कर्ता अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज एवं सौम्यमूर्ति उपाध्याय 108 श्री पीयूष सागर जी महाराज ससंघ का विहार महाराष्ट्र के ऊदगाव की ओर चल रहा है विहार के दौरान भक्त को कहाँ की डर – हमारी अकल और हिम्मत को ऐसे खा जाता है, जैसे अमरबेल वृक्ष को और दीमक किताब को खा जाती है..!
आदमी को दो डर हरदम सताते हैं– एक बीमारी और दूसरा मौत का डर। ये डर आदमी को ना जीने दे रहा है, ना ‘मरने ना खाने का सुख भोग पा रहा है, ना त्याग का संकल्प ले पा रहा है। एक सज्जन बोले- गुरुदेव, मैं 20 साल से शक्कर नहीं खा रहा हूं। हमने सहज ही पूछ लिया ? क्या आपको डायबिटीज है ? वो बोले — हां गुरुदेव । हमने कहा नहीं मिली अच्छी नारी तो बन गये बाल ब्रह्मचारी । शक्कर नहीं खाने का त्याग या संकल्प लिया आपने ? वे बोले — नहीं गुरुदेव । हमने कहा- ये तो मजबूरी का नाम सोनिया गांधी है बाबू! सबको मौत का डर है और मरना सबको है। दो बातें मेरी याद रखो – एक आत्मा कभी मरती नहीं तो डर किस बात का । – दूसरी – परमात्मा हर पर पल, हर क्षण हमको देख रहा है अब डर किस बात का भाई मेरे ।
ये दो बातें अपने जहन में बैठा लो और फिर जीवन जीने का आनंद उठाओ। अन्यथा – ना हम हँस पा रहे हैं, ना खुलकर रो पा रहे हैं। ना जी पा रहे हैं, ना मर रहे हैं। ऐसा आधा अधूरा जीवन जीने से कोई मतलब नहीं। ये तो ऐसा हो गया जैसे – धोबी का गधा, ना घर का ना घाट का….!!!
-नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद