जन्माष्टमी —अंधकार से प्रकाश की ओर का पर्व

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पर्व तीन प्रकार के होते हैं जैसे शाश्वत ,नैमित्तिक और जन्म दिवस ,जन्माष्टमी का त्यौहार जन्म दिवस के अंतर्गत मनाया जाता हैं ! .यह दिन जिनके जन्म में प्रेम ,घ्यान और अठखेलियों का एक साथ होना वह कृष्ण का ही रूप हो सकता हैं .इसे गोकुलाष्टमी भी कहते हैं . यह भगवान कृष्ण के जन्म का उत्सव हैं जिसे अखिल विश्व पूर्ण उत्साह ,हर्षोल्लास से मनाते हैं . श्री कृष्ण का जन्म यह दर्शाता हैं की अंधकार का नाश होना और दुष्टों का संहार करना और पापीओं को इस पृथ्वी से मुक्त करना .कृष्ण जन्माष्टमी एक ऐसा त्यौहार हैं जिसमे सम्पूर्ण विश्व उमंग और उत्साह में डूब जाता हैं .श्रावण कृष्ण अष्टमी को यह त्यौहार मनाया जाता हैं .
ऐसी मान्यता हैं की जब पृथ्वी पर अन्याय ,अत्याचार ,हिंसा का प्रादुर्भाव होता हैं तब पृथ्वी माँ ने ब्रह्मा जी से प्रार्थना की इस पृथ्वी के विनाश को बचाने के लिए कोई उपाय करे .भगवान विष्णु ने धरती माँ को आश्श्वत किया की वे पृथ्वी को बचाएंगे और दुष्टों का अंत करेंगे .अपने वादें के मुताबिक भगवान विष्णु ने कृष्ण के अवतार के रूप में इस पृथ्वी पर अर्धरात्रि को जन्म लिया ..श्रीकृष्ण विष्णु के आठवे अवतार के रूप में जाने जाते हैं .देवकी और वासुदेव के पुत्र कृष्ण का जन्म मथुरा में कंस के कारागृह में हुआ था .जिस समय कृष्ण का जन्म हुआ उस समय का काल बहुत दुखमय था ,स्वतंत्रता का अभाव, दुष्ट आत्माएं /कंस जैसे अत्याचारी राजा राज्य कर रहे थे.श्रीकृष्ण का जीवन बहुत कष्टमय था .कारण उसके मामा कंस को यहभविष्यवाणी मिली थी की उसकी मृत्यु उसके भांजे के हाथों होंगी .श्रीकृष्ण पूर्व से ही होने वाली घटनाओं से परिचित थे .वासुदेव ने तुरंत बाल कृष्ण को यशोदा और नन्द को कंस के भय के कारण सौंप दिया था.इस कारण इस कृष्ण भक्त इस दिवस को उपवास रखते हैं ,भक्ति गीत गाते हैं और कृष्ण मंदिरों में जाकर पूजा अर्चना करते हैं.
जैन धर्मानुसार श्री कृष्ण नौवें नारायण थे और नारायण शलाका पुरुष में आते हैं और वो नेमिनाथ भगवान के चचेरे भाई भी थे। नारायण, प्रति नारायण, बलभद्र आदि शलाका पुरुष होते हैं। वे सब निकट मोक्ष गामी भव्य जीव होते हैं। हमारे आगम के अनुसार श्री कृष्ण भी भावी तीर्थंकर हैं। आगामी चौबीसी में १६ तीर्थंकर होने वाले हैं। इसलिए श्री कृष्ण का महान स्थान तो हमारे धर्म में हैं लेकिन जैन धर्म के अनुसार हम वीतरागता को पूजते है। इस भव में श्रीकृष्ण ने वीतराग रूप नहीं पाया। अभी नारायण हुए, जब वे तीर्थंकरत्व को प्राप्त करेंगे तब हम उनकी पूजा अर्चना करेंगे। तो उसे उसी सन्दर्भ में देखकर करके चलना चाहिए। एक नारायण होने के नाते उनके जीवन और आदर्श की चर्चा करना, उनके गुणों की चर्चा करना, उनके कौशल और पराक्रम की चर्चा करके उनके आदर्शों से अपने जीवन में एक अच्छी प्रेरणा पाना, कोई बुरी बात नहीं है।
श्रीकृष्ण ने संसार में व्याप्त दुखों ,जन्म और मृत्यु पर बहुत उपदेश दिए ,उनका जन्म अवतार के रूप में हुआऔर उनका त्यौहार भगवान् के बाल रूप में मनाया जाता हैं .जो सबके प्रिय ,आकर्षक दिव्य विभूति और आध्यात्मिक पथ प्रदर्शक के रूप में पूजे जाते हैं .उनका पृथ्वी में अवतार लेने का मुख्य कारण यह था की उस समय पृथ्वी पर जो अज्ञानता रूप अंधकार ,राक्षसी प्रवृत्तियों द्वारा अत्याचार ,भय ,हिंसा का वातावरण बना हुआ था उससे मुक्त कराना था. और धर्म को स्थापित करना व दुष्ट कंस जिसने मानव जीवन कष्टमय बना रखा था को नष्ट किया. उनका सूत्र था की जब जब पृथ्वी पर अधर्म का राज्य होगा व अत्याचार /अनाचार /दुराचार/ हिंसा का बाहुल्य होगा तब तब मैं जन्म लूंगा.जन्माष्टमी पर्व आपसी भाई चारा को बढ़ावा देता हैं और आपस की मलिनता को दूर करता हैं .इसीलिए इस दिन इस दिन को पवित्रता के साथ मिलजुलकर मनाने का अवसर मिलता हैं . इस दिन पूरे देश विदेश में यह त्यौहार बहुत उत्साह ,उमंग ,उल्लास के साथ मनाया जाता हैं .इस दिन उनके उपासक उपवास रखते हैं और मंदिरों ,घरों में बाल लीलाएं होती हैं .युवा वर्ग मस्ती के साथ दही हांडी का कार्यक्रम रखते हैं .कई जगह रास लीला मनाई जाती हैं .उनके जन्म की झांकिया बनायीं और रखी जाती हैं .
इस समय उनकी मूर्ति को पालने में रखकर पंचामृत से अभिषेक करते हैं .यह पंचामृत प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता हैं उनके उपासक पालना झुलाकर उनका आशीर्वाद लेते हैं .उनकी आरती शंखों के नाद से की जाती हैं .इस दौरान कृष्ण मंदिरों में भव्य बिजली की सजावट की जाती हैं .कुछ मंदिरों में भागवत गीता का पाठ किया जाता हैं .सुंगंधित फूलों की वर्षा की जाती हैं .सुंगंधित कपूर की आरती की जाती हैं और मंदिरों में घंटियों से पूर्ण वातावरण शुद्ध व शांतिमय बन जाता हैं .विशेष रूप से मथुरा और वृंदावन में जन्माष्टमी बहुत उत्साह से मनाई जाता हैं और रात्रि जागरण होता हैं .नृत्य नाटक श्रीकृष्ण के चरित्र पर होते हैं .
महाराष्ट्र और गुजरात में दही हांडी की अधिकता होती हैं दक्षिण भारत में चावल के आटे की रंगोली बनाई जाती हैं और बालकृष्ण के चरण कमल अपने घरों के सामने बनाते हैं जिसका आशय कृष्ण हमारे घरों में पधारे .
इस दिन को हम वास्तव में श्रीकृष्ण के द्वारा दिए गए उपदेशों को जीवन में उतारे और अपने जीवन को सुख शांतिमय बनाये व इसके माध्यम से हम सर्व विश्व कल्याण की मंगल कामना करे व उन्होंने जीवन की नश्वरता का जो पाठ पढ़ाया ,नीतियां समझाई उसे अंगीकार कर अपना जीवन कृष्ण मय बनाये यह ही जीवन की सार्थकता होगी .
आपका जन्माष्टमी पर्व मंगलमय हो .
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् ए २/१०४ पसिफ़िक ब्लू नियर डी मार्ट होशंगाबाद रोड भोपाल ४६२०२६ मोबाइल ०९४२५००६७५३

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