इंटेलिजेंस (मन) और ब्रिलियंस (बुद्धि) की रोचक वार्ता

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इंटेलिजेंस (मन) और ब्रिलियंस (बुद्धि) की रोचक वार्ता

एक शाम, मेरे मन और मेरी बुद्धि फुर्सत के क्षणों में बतिया रहे थे। दोनों में अपने महत्व को बताने की होड़ लगी थी। और मेरी चेतना अंतर में लीन थी, यही वह क्षण था जब मैं दोनों की बातें सुनने में समर्थ थी। जो सार वार्ता का मुझे समझ में आया, वह जीवन में सकारात्मक और सफलता का दीप जलाने के लिए पर्याप्त था।

इंटेलिजेंस मेरे मन की उपलब्धि थी, तो ब्रिलियंस मेरी बुद्धि की। मन तो मन है, अपनी चलाता है और चलाएं भी क्यों न, क्योंकि मन के तले पर ही इंटेलिजेंस रहता है, जो व्यक्ति की सफलता में महत्वपूर्ण रोल अदा करता है। मेरी यह बातें अचरज भरी जरूर हैं, पर बहुत हद तक हमारे जीवन को प्रभावित करती हैं।

आपने देखा ही होगा कि कुछ लोग बहुत कम मेहनत से बहुत कुछ सफलता हासिल कर लेते हैं, वहीं कुछ लोग जीवन में ठोकर खाते हुए दर-दर के धक्के खाते हैं तो भी अपने लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाते। कारण स्पष्ट है – “बुद्धि और इंटेलिजेंस”। बुद्धि की जिज्ञासा असीमित है और कहीं-कहीं अनावश्यक भी है, जबकि इंटेलिजेंट अपनी आवश्यकता का जिज्ञासु है। इस आवश्यक और अनावश्यक जिज्ञासा में खर्च होने वाला समय और श्रम हमारी सफलता में विशेष महत्व रखते हैं।

उदाहरण के लिए रामकृष्ण परमहंस जी के जीवन की घटना को समझते हैं। एक बार रामकृष्ण जी से महाज्ञानी व्यक्ति ने कहा, “क्या आपको पानी पर चलने की विद्या आती है?” रामकृष्ण जी ने बड़ी ही सरलता से ना में जवाब देते हुए कहा, “मुझे इसकी आवश्यकता ही नहीं है।” पर शान तो अपनी बुद्धिमानी प्रकट करने में थी, सो वह ज्ञानी सज्जन अपनी 20 वर्ष की तपस्या से प्राप्त विद्या का प्रदर्शन करने उन्हें नदी किनारे ले गए और बहुत ही सफलतापूर्वक नदी के दोनों छोर पानी में चलकर नाप लिए। और छाती फुलाकर बड़े ही गर्व से अपनी वाहवाही करने लगे और ऐसी वाहवाही की अपेक्षा रामकृष्ण जी से भी करी। पर यह क्या, रामकृष्ण जी सिर्फ मुस्कुरा रहे थे। दूसरे ही क्षण, समीप खड़े नाविक से रामकृष्ण जी ने नदी के पार जाकर आने की बात कही, तो वह नाविक जल्दी उन्हें नदी के दोनों छोड़ भ्रमण करवा कर ले आया। वापस आकर रामकृष्ण जी ने किराया पूछा, तो दो कोड़ी का था, जो उन्होंने उसे दे दिया। और ज्ञानी सज्जन को बड़े ही प्यार से बोले, “भाई, तुमने जीवन के 20 वर्ष सिर्फ दो कौड़ी के लिए खर्च कर दिए।” यहाँ फिर इंटेलिजेंस बुद्धि पर भारी पड़ती है।

इंटेलिजेंस आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करता है, जबकि बुद्धि अनावश्यक की ओर भटकती रहती है। वर्तमान में समझें तो जब हम किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कुछ सीखने की चाह से जाते हैं, तो हमारी बुद्धि हमें अनावश्यक ज्ञान की खोज में भटकाती है। हम ढूंढ रहे होते हैं कुछ और, पहुंच कहीं और जाते हैं और समय और श्रम दोनों हाथ से निकलते जाते हैं। हम फिर मंजिल की राह में दो कदम पीछे आ जाते हैं।

वहीं युवा पीढ़ी की बात करें तो डिग्री हो तो कई हासिल कर लेते हैं, पर लक्ष्य निर्धारित नहीं कर पाते। परिणामस्वरूप मायूसी और असफलता हाथ लगती है। दरअसल, जीवन को सफल बनाने के लिए अपनी छोटी-छोटी जरूरतों को जानना आवश्यक है, बजाय उटपटांग बड़ी-बड़ी बातों को मालूम करने के। अपनी समय शक्ति का सही समय पर सही उपयोग करना इंटेलिजेंस है, न कि बात-बात पर बेकार की बातों में अपना बहुमूल्य समय शक्ति बर्बाद कर बुद्धिमानी दिखाना।

देखिए, सफलता के शिखर पर पहुंचे लोग आपको आकर्षित करते हैं और आप भी सफलता के शिखर को छूना चाहते हैं, तो अपने क्षण-क्षण का उपयोग कर जीवन में आवश्यक और अनावश्यक ज्ञान को समझें। अपनी शक्ति और समय का सदुपयोग करें, क्योंकि जरूरत से ज्यादा ऊंचे विचार और आदर्शों की व्यवहारिक जीवन में कोई आवश्यकता नहीं होती। जहां बुद्धि दिखावटी प्रदर्शन करवा कर प्रशंसा चाहती है, वहीं इंटेलिजेंस जीवन में आवश्यक ज्ञान को प्राप्त कर स्वतः प्रसिद्ध स्थापित करता है। बुद्धि भ्रमित कर जीवन में आकुलता और प्रतिस्पर्धा को जन्म देती है, वहीं इंटेलिजेंस लक्ष्य की ओर तटस्थ रहकर शांतिपूर्ण उत्साहपूर्वक रहती है।

अरे, यह क्या… बुद्धि और इंटेलिजेंस की वार्ता से मेरी ध्यानमग्न चेतन जाग उठी और पुनः जीवन के सकारात्मक पहलू से रोमांचित हो गई। अब मुझे मेरी सफलता का रास्ता साफ नजर आने लगा। धन्य है वह घड़ी जब मैं ध्यानमग्न हो गई और मेरे जीवन में सफलता की राह में “दीप” जल गई।

बरखा विवेक बड़जात्या जैन
बाकानेर, जिला धार, मध्य प्रदेश)

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