नई दिल्लीः श्री दिगंबर जैन मंदिर ऋषभविहार में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के मोक्षकल्याणक पर निर्वाण स्थली अष्टापद- कैलाश पर्वत की प्रतिकृति की भव्य व विशाल रचना को एक लाख सत्तावन हजार सात सौ बहत्तर लोगों ने देखा और सराहा। इसका शुभारंभ 20 जनवरी को आचार्य श्री श्रुतसागरजी व मुनि अनुमानसागरजी के सान्निध्य में हुआ था। आर्यिका पदमनंदनी माताजी के सान्निध्य में विधि-विधान पूर्वक समापन हुआ। माता जी ने कहा कि इस रचना से बडी संख्या में लोगों को भगवान ऋषभदेव के बारे में जानकारी मिली। समाज का यह कार्य सराहनीय रहा है।
रचना में विशाल गगन चुंबी पर्वत, बर्फ से ढकी चोटियां, वन, मानसरोवर झील, पशु-पक्षी, सिद्धाश्रम, हिममानव, 72 जिनालय, गुफाएं, दुर्गम रास्तें, बादल, बर्फ, कोहरा, वन की शीतल वायु तथा प्रवेश द्वार पर चेकपोस्ट आदि का हूबहू चित्रण किया गया था। लाइट-साउंड की व्यवस्था भी थी। इसका निर्माण कोलकाता के 40 कलाकारों ने एक माह में किया था। यहां मंदिर में भगवान ऋषभनाथ की मूलनायक विशाल पदमासन प्रतिमा तथा दो अन्य वेदियां, विशाल व भव्य मानस्तंभ भी दर्शनीय है। दीवारों पर भगवान आदिनाथ के पांचों कल्याणक गर्भ, जन्म, तप, केवलज्ञान,व मोक्ष कल्याणक तथा उनके द्वारा सिखाई गई कलाओं का सुंदर रंगीन चित्रण किया गया है। मंदिर के चेयरमैन विजय जैन, अध्यक्ष सुनील जैन, महामंत्री विपुल जैन के संयोजन में प्रतिकृति का निर्माण किया गया था।
रचना को दिल्ली एनसीआर के अलावा दूर-दूर से आए श्रद्धालुओं ने देखा। समाज के सभी पदाधिकारी, महिला व युवा कार्यकर्ता पूर्ण समर्पण भाव से सेवा में लगे रहे। प्रत्येक व्यक्ति को स्वादिष्ट नाश्ता कराया गया। सुबह 8 से रात 8 बजे तक लोगों की भीड लगी रही। मैने भी इस रचना को 20, 28 जनवरी व 3 फरवरी को देखा, कईं परिचितों को कहा तो उन्होने भी देखकर सराहना की। अनेक अजैन लोगों ने देखकर भूरि-भूरि प्रशंसा की और वहां रखी विजिटर बुक में इस रचना को अदभुत, अविस्मरणीय व प्रेरक बताया।
समापन समारोह में सांध्य महालक्ष्मी ग्रुप के शरद जैन, प्रवीन जैन आदि ने समाज को इस अदभुत व सराहनीय कार्य के लिए प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। कुल मिलाकर ऋषभविहार समाज का यह प्रयास अविस्मरणीय बन गया।