भगवान श्री श्रेयांसनाथ जी का जन्म तप कल्याणक

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श्रेयांसनाथ ग्यारहवें तीर्थंकर हैं। श्रेयांसनाथ जी का जन्म फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया को श्रवण नक्षत्र में सिंहपुरी में हुआ था। प्रभु के माता पिता बनने का सौभाग्य इक्ष्वाकु वंश के राजा विष्णुराज व पत्नी विष्णु देवी को प्राप्त हुआ था। इनके शरीर का वर्ण सुवर्ण (सुनहरा) और चिह्न गेंडा था।

श्रेयांसनाथ जी शुरु से ही वैरागी थे। लेकिन माता-पिता की आज्ञानुसार उन्होंने गृहस्थ जीवन को भी अपनाया और राजसी दायित्व को भी निभाया। श्रेयांसनाथ जी के शासनकाल के दौरान राज्य में सुख समृद्धि का विस्तार हुआ। लेकिन जल्द ही उन्होंने अपने पुत्र को उत्तराधिकारी बना वैराग्य धारण कर लिया।

जैन धर्मानुसार ऋतुओं का परिवर्तन देखकर भगवान को वैराग्य हुआ। ‘विमलप्रभा’ पालकी पर विराजमान होकर मनोहर नामक उद्यान में पहुँचे और फाल्गुन शुक्ल एकादशी के दिन हजार राजाओं के साथ दीक्षित हुए। दो माह तक प्रभु छ्दमस्थ साधक की भुमिका में रहे। माघ कृष्ण अमावस्या के दिन प्रभु केवली बने। श्रावण कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को प्रभु श्रेयांसनाथ ने सम्मेद शिखर पर निर्वाण किया।

प्रभु के संघ में 70 गणधर प्रभु थे, प्रभु के प्रथम गणधर का नाम धर्म स्वामी था । प्रभु का यक्ष कुमार देव तथा यक्षिणी गौरी थी।  प्रभु श्रेयांसनाथ ने श्रावण कृष्ण तृतीया के दिन सम्मेदशिखर जी में निर्वाण प्राप्त किया , और इसी के साथ प्रभु ने अपने जन्म – जन्मांतरो से चले आ रहे कर्म चक्र को तोडकर निर्वाण प्राप्त किया , प्रभु ने अपने समस्त अष्ट कर्मो का क्षय कर दिया और सिद्ध कहलाये।

जनमे फागुनकारी, एकादशि तीन ग्यान दृगधारी |
इक्ष्वाकु वशंतारी, मैं पूजौं घोर विघ्न दुख टारी ||
ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णैकादश्यां जन्ममंगलमंडिताय श्रीश्रेयांस0अर्घ्यं नि0स्वा0 |
भव तन भोग असारा, लख त्याग्यो धीर शुद्ध तप धारा |
फागुन वदि इग्यारा, मैं पूजौं पाद अष्ट परकारा ||
ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णैकादश्यां निःक्रमणमहोत्सवमण्डिताय श्रीश्रेयांस0अर्घ्यं नि0स्वा0 |

-विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद्

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