अन्तर्मना आचार्य प्रसन्न सागर जी का शिखर जी से महाराष्ट्र की ओर विहार

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  • जो मन से पूजता है पारस नाथ उनके हो जाते है…..अन्तर्मना आचार्य प्रसन्न सागर
  • उदगाव समाज ने चातुर्मास श्री फल भेंट कर आशीष ग्रहण किया

औरंगाबाद नरेंद्र /पियूष /रोमिल जैन- मुझे प्रवचन नही करना है बस आज मेरे मधुवन वासियो से बात करना है। जिस प्रकार गुरु उपकार करता है अपने शिष्य पर उसी तरह शिष्य भी गुरुआज्ञा का पालन कर गुरूपर उपकार ही करता है। हमारी तपश्या के परम सहयोगी आप सभी है।

नदी किसी से यह नही पूछती की आप कोन जाती के हो जो नदी के पास जाता है नदी उसकी प्यास भुजाती है। पेड़ कभी किसी की जाती नही पूछता है हवा धुप आधी तूफान सब सहन कर आप को छाया फल प्रदान करता है। उसी तरह जो पारस नाथ को मन से पूजता है पारस नाथ उनके हो जाते है। यह बात साधनामहोदधि उत्क्रष्ट सिंगनिस्क्रित व्रत कर्ता अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज ने सम्मेद शिखर जी के बीसपंथी कोठी प्रांगण में उपस्थित भक्तो को अपने मंगल अहिंसा पद यात्रा विहार से पूर्व आशीर्वचन देते हुए कहीं

उन्होंने कहा कि 557 दिन की इस साधना के दौरान मुझ से या मेरी वाणी व्यवहार आचरण से किसी को कोई दुख पहुचा हो मन को ठेस लगी हो तो में सब से दोनों हाथ जोड़ कर क्षमा मांगता हूं। गुरुदेव ने विशेष रूप से पर्वत के आसपास रहवासियों को डोली वाले बाइक वाले समस्त आदिवासियों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त कर उनकी सराहना की। इस दौरान उन्होंने राजनीतिक लोगो पर कटाक्ष करते हुए कहा कि अपनी राजनीति अपने वोटबैंक के लिए पारस नाथ भगवान को बीच मे न लाओ अपना खुद का पुरुसार्थ के दम पर कार्य करो। उन्होने मधुवन वासियो को तीन कार्य करने को कहा पहला जीते जी अपने माँ बाप को कभी अपना दुश्मन नही बनने देना। दूसरा ऐसा कोई कृत्य नही करना जिससे आपके कुल वंश धर्म मर्यादा का उलंघन हो। व तीसरा मधुवन में आने वाले सभी संतो का आदर सत्कार करना क्योकि धर्म गुरु व माँ-बाप ही जीवन की सीडी है

भक्तो ने नम आंखों से विदा किया अपने गुरुदेव को:-

कठिन साधना ओर परम तपस्वी वर्तमान महावीर अन्तर्मना आचार्य 108 श्री प्रसन्न सागर जी महाराज जो 557 दिनों के उपवास में 461 निर्जला उपवास ओर 61 पारणा कर इतिहास रचेता सम्पूर्ण भारत के जैन समाज नही अपितु साधर्मी समाज मे अपना छाप छोड़ने वाले संत जो परम पावन तीर्थराज श्री सम्मेद शिखरजी से विहार कर लोगो को अकेला छोड़ गए मधुबन के तमाम ग्रामवासी ओर मधुबन के सभी सामाजिक समिति के साथ-साथ जैन समाज के धरोहर जैन श्वेताम्बर समाज के अध्यक्ष श्री मान कमल सिंह रामपुरिया ओर सभी कोठी के प्रबंधक समस्त सेकड़ो श्रद्धालुओं ने अपनी नम आंखों से उनके बिहार होने में साथ चले जहाँ उन्होंने कहा कि ऐसे संत परमात्मा का रूप होते है ऐसा लोगो ने सुना था जो अन्तर्मना आचार्य ने सिद्ध कर के दिखाया जिन्होंने समाज के हर वर्गो को जोड़ने का काम किया ऐसे संत के दर्शन मात्र से जीवन धन्य हो जाता है ऐसे संत को मेरा बारम्बार वंदन ओर अभिनंदन हो।

जानकारी देते हुए प्रवक्ता रोमिल जैन नरेंद्र अजमेरा पियूष कासलीवाल ने बताया कि आयोजन से पूर्व बीसपंथी प्रांगण में सन्त समागम के साथ अन्तर्मना आचार्य श्री ने सभा को संबोधित किया। जहाँ उदगाव महाराष्ट्र के गुरु भक्तो ने अपने मन के मनोभाव को गुरु चरणों मे समर्पित करते हुए गुरु चरणों मे ससंघ के साथ चातुर्मास का श्री फल भेंट किया जहां उदगाव समाज ट्रस्टी श्री सुशील पाटिल ने गुरुदेव के समक्ष अन्तर्मना आचार्य व तपश्वि सम्राट सन्मति सागर जी महाराज के समय की बातों को भक्तो में साझा कर गुरदेव को संघ सहित चातुर्मास हेतु पधारने का आग्रह किया।

आयोजन में वीसपंथी कोठी के मेनेजर अजय जी आरा ने भी गुरुदेव के कार्य की सराहना करते हुए कहा कि वर्षो बाद ऐसे सन्त मधुवन में पधारे है जिन्होंने मधुवन में बिसपंथीं कोठी की पताका को फिर से लहराया है में गुरुदेव का सम्पूर्ण मधुवन वासियो की तरफ से आभारी हूं। जिसके बाद बेंडबाजो के साथ गुरुदेव का मंगल विहार अहिंसापद यात्रा के रुप में निमियाघाट की ओर हुआ। इस अवसर पर गुरूपरिवार के आकाश जैन सोनकच्छ,बिटू जैन भोपाल विवेक गंगवाल कोलकाता, उदगाव समाज अध्यक्ष संजय चौगुले,महावीर मणदुम,श्रेणिक मादनाइक, राजकुमार मगदुम, प्रकाश सलालाटे,संजय पाटील,अजित मादनाइक, राजु जैन, नितेश पाटनी ,अजित कासलीवाल,के यू चांदिवाल, राकेश भाई मामा आदि भक्त मौजूद थे। संचालन ब्र. तरुण भैया जी व आभार डॉ. आकाश जैन सोनकच्छ ने माना।नरेंद्र अजमेरा रोमिल जैन पियूष कासलीवाल

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