कभी कभी यह विचार आता हैं की आज से पचास साल पहले हमारे जमाने में टी. वी ,मोबाइल या इस तरह के सामाजिक सन्देश (सोशल मीडिया ) का चलन होता तो क्या हम इतने पढ़ लिखकर
जो आज बने हैं वह बन पाते .हर सिक्के के दो पहलु होते हैं .जैसे उस समय इतनी अधिक आर्थिक सम्पन्नता नहीं थी और दूसरा पढ़ने लिखने के लिए समय देना पड़ता था .आर्थिक तंगी के कारण फीस ,पुस्तकें लेना देना कठिन था तो जो बहुमूल्य समय होता था उससे होम वर्क और अन्य कार्य करना पड़ते थे .पैदल जाना आना पड़ता था या बमुश्किल साइकिल रहती थी .ऐसा नहीं हैं की आज बच्चे नहीं पढ़ रहे पर व्यवहारिक दृष्टि से देखे तो हमारा कितना बहुमूल्य समय व्यर्थ जाता हैं .
मोबाइल एक व्यसन बन चूका हैं .हम इससे बच नहीं पा रहे हैं औरआर्थिक स्थिति अच्छी होने से हम उन्हें दे पा रहे हैं .इससे वे बहुत अधिक सूचना प्राप्त करके जानकार तो बन रहे हैं पर बुद्धिमान नहीं .आज कल्पनाशीलता ख़तम होती जा रही हैं .पुस्तकों ,पत्रिकाओं ,समाचार पत्रों का पठन– पाठन लगभग शून्य होता जा रहा हैं .यह बात सही हैं की हमें युगानुरूप रहना और चलना भी चाहिए ,पर कब ,कितना ,क्यों की जानकरी सहित .
बच्चों को स्मार्टफोन लेकर देना आपका अपना व्यक्तिगत निर्णय है, लेकिन यह निर्णय लेने से पहले आपको कई बातों पर विचार करने की आवश्यकता होती है।
बच्चे जरा से बड़े हुए नहीं कि स्मार्टफोन मांगने की जिद्द करने लगते हैं और आप अक्सर उनसे ये बोलते होंगे कि हमारे जमाने में 12वीं पास या फिर कॉलेज के टाइम पर बच्चों को फोन दिया जाता था। हालांकि अब जमाना बदल गया है और बच्चे स्कूल टाइम पर ही स्मार्टफोन की डिमांड कर लेते हैं। थक-हार कर माता-पिता को भी बच्चों को फोन दिलाना पड़ता है। हालात ये है कि माता-पिता को चाहे सुरक्षा के नाम पर हो या फिर मनोरंजन के लिए बच्चों को कम उम्र में ही फोन लेकर देना पड़ता है। कारण चाहे जो भी हो, बच्चों को फोन लेकर देना कभी भी एक समझदारी भरा निर्णय नहीं हो सकता है।आपको बच्चे को कब स्मार्टफोन लेकर देना चाहिए। बच्चों को स्मार्टफोन लेकर देना आपका अपना व्यक्तिगत निर्णय है, लेकिन यह निर्णय लेने से पहले आपको कई बातों पर विचार करने की आवश्यकता होती है जैसेः
क्या आपका वे पैसे को अच्छी तरह से संभालते हैं?
पहली बात यह है कि आपका बच्चा पैसे को कितनी अच्छी तरह से संभालता है और अगर वह महंगी चीजों की देखभाल कर सकता है तो आप उसे स्मार्टफोन लेकर दे सकते हैं लेकिन अगर आपको लगता है कि वे इसे खो देगा, तो आपको अपने फैसले पर फिर से सोचने की जरूरत है।
आपका बच्चे की टेक्नोलॉजी में रूचि है?
इस बात को जानने की कोशिश करें कि आपका बच्चा कितना टेक-प्रेमी है और क्या वह फोन को आसानी से चला सकता है। इस चीज को देखने के बाद ही बच्चे को स्मार्टफोन लेकर दें।
अगर आपका बच्चा जिम्मेदार हो
क्या आपको लगता है कि आपका बच्चा हर समय अपने साथ फोन ले जाने के लिए पर्याप्त रूप से जिम्मेदार है? अगर हां, तो आपको फैसले लेने में मदद मिलेगी और बच्चों को फोन देने में भी।
अगर वे कर सकें फोन का जिम्मेदारी से इस्तेमाल
कई बच्चे फोन का इस्तेमाल गैर-जिम्मेदाराना तरीके से करते हैं। वे अलग-अलग ऐप डाउनलोड करेंगे या दिन भर सोशल मीडिया पर लगे रहेंगे। इसलिए उन्हें स्मार्टफोन खरीदकर देने से पहले इस बारे में विचार करना आपके लिए अच्छा रहेगा।
बच्चे के साथ संपर्क में रहने की जरूरत
अपने बच्चे को फोन सौंपने से पहले, खुद से पूछें कि क्या उन्हें वाकई इसकी जरूरत है। अगर उन्हें फोन की जरूरत नहीं है, तो आप कुछ साल तक और इंतजार कर सकते हैं। लेकिन हां अगर आपके बच्चे के साथ आपको हमेशा संपर्क में रहने की जरूरत है तो जरूर उसे फोन लेकर दीजिए।
क्या वे आपकी बात मानते हैं?
सबसे आखिरी बात क्या आपके बच्चे आपकी बात सुनेंगे और सीमित समय के लिए फोन का उपयोग करेंगे या क्या आपको लगता है कि वे दिन भर इससे चिपके रहेंगे? इस बारे में सोच समझकर ही फैसला लें।
यह बहुत बड़ा नशा का रूप लेता जा रहा हैं और यह असाध्य बिमारी बनती जा रही हैं और भविष्य कितना उज्जवल होगा ?
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026 मोबाइल ९४२५००६७५३
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