विश्व वन्यजीव दिवस

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संयुक्त राष्ट्र महासभा ने २० दिसंबर २०१३ को, अपने ६८ वें सत्र में, अपने प्रस्ताव UN ६८/२०५ में, ३ मार्च १९७३ में हुए ‘जंगली जीव और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन’ को विश्व वन्यजीव दिवस अपनाने का दिन घोषित करने का निर्णय लिया जिसे थाईलैंड द्वारा दुनिया के जंगली जीवों और वनस्पतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और मनाने के लिए प्रस्तावित किया गया था। 3 मार्च को विश्व वन्यजीव दिवस के रूप में नामित करने का मुख्य उद्देश्य दुनिया के वन्य जीवों और वनस्पतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है ।

जिसकी शुरुआत थाईलैंड द्वारा दुनिया के जंगली जीवों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और मनाने के लिए प्रस्तावित किया गया था।। महासभा ने वन्यजीवों के पारिस्थितिक, आनुवांशिक,वैज्ञानिक, सौंदर्य सहित विभिन्न प्रकार से अध्ययन अध्यापन को बढ़ावा देने को प्रेरित किया । विभिन्न जीवों और वनस्पतियों की प्रजातियों के अस्तित्व की रक्षा भी इसका उद्देश्य कहा जा सकता है।

यूएनजीए संकल्प अपने प्रस्ताव में, महासभा ने वन्यजीवों के आंतरिक मूल्य और पारिस्थितिक, आनुवांशिक, सामाजिक, आर्थिक, वैज्ञानिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक, मनोरंजन और सौंदर्य सहित विभिन्न योगदानों की पुष्टि की, ताकि सतत विकास और मानव कल्याण हो । महासभा ने बैंकाक में ३ से १४ मार्च २०१३ तक विशेष रूप से संकल्प सम्मेलन में आयोजित पार्टियों के सम्मेलन की 16 वीं बैठक के परिणाम पर ध्यान दिया। १६.१ ३ मार्च को विश्व वन्यजीव दिवस के रूप में नामित करना, ताकि दुनिया के वन्य जीवों और वनस्पतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके, और यह सुनिश्चित करने में जंगली जीव और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन’ की।

महत्वपूर्ण भूमिका को मान्यता दी कि जिससे वह यह सुनिश्चित कर सके की अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से प्रजातियों के अस्तित्व को खतरा नहीं है। महासभा ने विश्व वन्यजीव दिवस के कार्यान्वयन की सुविधा के लिए, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के संबंधित संगठनों के साथ मिलकर जंगली जीव और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन’ सचिवालय का अनुरोध किया। पशुओं और पौधों की करीब 10 लाख से भी अधिक प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं। इस पर नजर रखने वाली संस्था IPBES के मुताबिक, इंसानों के इतिहास में ऐसी स्थिति पहले कभी नहीं बनी है।

अमेरिका की ब्राउन यूनिवर्सिटी के अध्ययन के मुताबिक, 6 करोड़ वर्ष पहले जब इंसान नहीं थे, तब के मुकाबले आज 1,000 गुना ज्यादा तेजी से प्रजातियों की संख्या घट रही है। इस रिपोर्ट का कहना है कि फिलहाल जो कुछ भी रह गया है, उसे बचाने के लिए तुरंत कदम उठाने की आवश्यकता है। वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (WWF) की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि ताजे पानी में रहने वाले जानवरों की नस्लों में सबसे तेजी से कमी हुई है। साल 1974 से लेकर 2018 के बीच करीब 84 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।

-विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद्

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