विलुप्त होता शिक्षक धर्म —- विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैनभोपाल

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शिक्षा /ज्ञान एक ऐसा दीपक हैं जिसके द्वारा कभी अन्धकार नहीं मिलता या होता .ज्ञान रुपी प्रकाश से अज्ञानता विलीन होती हैं .शिक्षा /ज्ञान का महत्व हर युग मेँ बहुत रहा हैं और रहता हैं .इसलिए ज्ञान के देवी सरस्वस्ती पूज्यनीय हैं ,पहले ज्ञान प्राप्त करने गुरुकुल मेँ जाकर ज्ञान प्राप्त किया जाता था .चाहे सामान्य विद्यार्थी हो या राजकुमार हो ,इसके उदाहरण राम आदि चारो भाई ,पांडव कौरव आदि सभी और भगवान् श्री कृष्ण को उज्जैन के सांदीपनि आश्रम मेँ रहकर शिक्षा लेनी पडी थी .ज्ञान याचना का विषय रहा जिसके लिए विद्यार्थी या उनके पालक पहले गुरु से आज्ञा लेकर प्रवेश दिलाते थे .
गुरुकुल परंपरा बहुत प्राचीन और बहुत समय तक चली उसमे गुरु यानी जो अँधेरे से उजाले को ओर ले जाए उसे गुरु कहते हैं .गुरु यानी ज्ञान आदि मेँ भारी मतलब अनेक विषयों का ज्ञाता .गुरुकुल मेँ प्रवेश की शुरुआत बाल्यावस्था से शुरू होती थी जो युवावस्था तक चलती थे .उस दौरान छात्र या विद्यार्थी को स्वयं अपने आप से गृह कार्य ,शिक्षा का कार्य और गुरु के उपदेशों का पालन करना पड़ता था .उस दौरान सामाजिक ,व्यवहारिक .नैतिक ,राजनीति ,नीतिशास्त्रों का अध्ययन करना अनिवार्य था उसके अलावा शिक्षा का भी पाठ्यक्रम पढ़ना पड़ता था .यह क्रम अठारहवीं शताब्दी तक भारत वर्ष मेँ चला .
अंग्रेजी की गुलामी के समय उन्होंने यह अध्ययन किया की इस देश मेँ गुरुकुल पद्धति से शिक्षा मिलने से अधिक समय तक गुलाम नहीं बना सकते .इसके लिए गुरुकुल पद्धति को समापत कर कॉन्वेंट और अंग्रेजी माधयम से शिक्षा ,अध्ययन अध्यापन का कार्य शुरू किया और गुरु के स्थान पर टीचर /शिक्षक बनाना शुरू किया .
अंग्रेजी संस्कृति के कारण देशवासी पुरानी ज्ञान, शिक्षापद्धति की छोड़कर अंग्रेजियत के रंग मेँ ढल गए या चुके .उनकी शिक्षा पद्धत्ति से देश मेँ सुधार हुआ और उनके द्वारा शिक्षित लोगों के कारण गुलामी के विरुद्ध बिगुल बजे और आंदोलन हुए .इस युग मेँ अंग्रेजी का बोलबाला बहुत बढ़ा .कुछ लोगों ने जैसे महात्मा गाँधी आदि ने विरोध भी किया पर अंग्रेजी भाषा के प्रभाव से पूरा देश ढल गया .शिक्षा का तरीका अंग्रेजी भाषा मेँ होने से वे शिक्षक /टीचर बनना शुरू हुए .यहाँ तक तो बात ठीक चल रही थी पर अब कोचिंग संस्कृति ने शिक्षक या टीचर की मर्यादाऔर नष्ट करदी .
पहले सरकारी स्कूल कॉलेज ही शिक्षा के संस्थान रहते थे .उसी के माध्यम से सभी नेता अभिनेता ,डॉक्टर ,वैज्ञानिक, टीचर ,वकील इंजीनियर बने थे .पर विगत पचास वर्षों मेँ जो शिक्षा एक सेवा थी उसने व्यवसाय का रूप धारण किया .पहले टीचर /शिक्षक को गुरु रूप मेँ प्रतिस्थापित करते थे जब से व्यवसाय बना उनकी प्रतिष्ठा गिरने लगी कारण जब पैसा दे रहे हैं पालक– विद्यार्थी तो उन्हें वे सेवक के रूप मेँ देखने लगे .पहले टुएशन उनको दी जाती थी जो छात्र कमंजोर होते थे और छात्र –समाज हिकारत की नजर से देखते थे .आजकल कोचिंग ज्ञानवान बनाने का सर्वोत्तम साधन मान्य किया जा रहा हैं पर उनमे सक्षम वर्ग ही जा पाता हैं कारण वे इतने महंगे और लम्बे समय ज्ञान उड़ेलने या थोपने का काम करते हैं की वह मन मष्तिष्क मेँ पैठ /जमा नहीं हो पता .कुछ बिरले ही पारंगत /प्रवीण होकर सफल हो पाते हैं .प्राइवेट कॉलेज और स्कूलों ने शिक्षा स्तर गिराया दिया .प्राइवेट कॉलेज डिग्री बांटने की फैक्ट्री बन गयी हैं .उनको धन /फीस से मतलब होता हैं और डिग्री दिलाने की शर्त पूरी करते हैं .ज्ञान शून्य होता हैं जैसे इंजिनीरिंग ,बीएड ,अन्य कोर्स आदि .
आज सरकारी ,.गैर सरकारी ,संविदा ,दैनिक भोगी आदि किस्म किस्म के शिक्षक ,टीचर ,प्रोफेसर ,व्याख्याता कार्यरत हैं .सरकारी व्यवस्था मेँ स्कूली कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर पर बहुत अच्छा वेतनमान हैं पर वहां गुणवत्ता का आभाव होने लगा और निजी संस्थानों मेँ शोषण किया जाता हैं जैसे कम वेतन देना अधिकतम कार्य संपादन कराना .
उदाहरण स्वरुप एक निजी स्कूल मेँ एक शिक्षक छात्रों को पढ़ा रहा था की गंगा नदी अमरकंटक से निकलती हैं !इस पर प्रधानाचार्य बोले ये गलत पढ़ा रहे हो .गंगा गंगोत्री से निकलती हैं ,अमरकंटक से नहीं .शिक्षक बोला कम वेतन मेँ तो अमरकंटक से निकलती हैं और यदि पूरा वेतन मिलेगा तो गंगोत्री से निकलेगी .
आर्थिक तंगी,बेरोजगारी और बिना मन के मज़बूरी मेँ शिक्षा क्षेत्र मेँ जानाशिक्षा का पतन का कारण हैं .धर्म का अर्थ था मर मर कर जो सेवा को अंगीकार किया हैं उस पर अटल रहा और प्राण पल से निभाना .पर व्यवसायीकरण होने से न शिक्षा और न शिक्षक का कोई महत्व रहा .कम वेतन भोगी होने से कोई भी शिक्षकीय कार्य नहीं करना चाहता और आज बुनियादी शिक्षा के लिए पढ़ाने वाले शिक्षक नहीं हैं .आज बुनियादी शिक्षक जो बीएड करके आते थे या बीएससी मैथ्स बीए आदि नहीं हैं आज प्राथमिक स्तर का अध्ययन इंजीनियर ,डॉक्टर वकील ,शोध स्नातक द्वारा किया जा रहा हैं .जब हमारी नींव कमजोर होंगी तब भवन कितना मजबूत और विशाल बन पायेगा .
आज जरुरत हैं जो खोई हुए प्रतिष्ठा जो शिक्षक ने खोई हैं उसे गुरु रूप मेँ उतारे .उनको महंगाई के अनुरूप वेतन दिया जाय और उनको भी अपने कर्तव्य के प्रति कटिबद्ध होना होगा अन्यथा भविष्य मेँ टीचर /शिक्षक वर्ग विलुप्त होगा और जिसके जीवन मेँ गुरु नहीं उसका जीवन शुरू नहीं हो पायेगा .
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संसंरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026 मोबाइल ०९४२५००६७५३

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