वर्तमान में अमृत महोत्सव की उपादेयता कितनी हैं ?

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मनुष्य के जन्म से मृत्यु तक को आयु कहते हैं .आयु तो निर्बाध रूप से बढ़ती हैं ,चाहे रो के जियो या मर कर जियो सुख से जियो या दुःख से जियो .स्वस्थ्य जियो या रुग्ण जियो .अकेले जियो या परिवार के साथ जियो ,विख्यात होकर जियो या कुख्यात होकर जियो .और वय यानी हम वर्तमान में कितना जी चुके ,अभी मरे नहीं ,
हमारा देश अत्यंत प्राचीनतम देशों में से एक हैं .इसके देवताओं का देश कहते हैं .हमारे यहाँ ही भगवान् ,तीर्थंकर ,बुद्ध मुनि ,ऋषि आदि जन्मते हैं .ऐसा बताया जाता हैं की यहाँ पर सबसे पहले वेद पुराण ,आदि लिखे गए हैं ,ये प्राचीन ग्रन्थ हमारी धरोहरें हैं जिनमे ज्ञान ,विज्ञान का अथाह ज्ञान सागर नहीं महासागर के समान भरा पड़ा हैं .आज जितनी भी शोध ,अनुसन्धान खोज होती हैं वे हमारे ऋषियों ,आचार्यों द्वारा पूर्व में ही खोज कर बता दिया था ,संसार में कोई भी चीज़ नवीन नहीं होती ,हमारी अज्ञानता के कारण हम उनसे अनिभिज्ञ होते हैं ,पर वे पूर्व से ही स्थापित हैं और भविष्य में भी होने वाली खोजे भी हमें मालूम हैं पर जैसे शीशे के ऊपर धूल होने से हमें अपना अक्स नहीं दिखाई देता उसी प्रकार हमें वर्तमान में थोड़ी अज्ञानता होने से और पश्चिम द्वारा कोई बात बताने पर उसका खंडन मंडन कर सकते हैं .
इसी प्रकार वेदों में पुराणों में नैतिकता की शिक्षाएं से भरे पड़े हैं उनमे क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए उनका विस्तृत वर्णन किया गया हैं ,जो बताया गया हैं वे अकाट्य हैं ,जैसे चौबीस अवतार तो पचीसवाँ हो नहीं सकता .जिस प्रकार पंच पाप यानी हिंसा ,झूठ ,चोरी ,कुशील परिग्रह हैं इनसे अलग छठवा पाप नहीं हैं ,दुनिया में जितने भी कानून ,नियम ,संविधान कोर्ट ,कचहरी ,पुलिस वकील बने हैं वे सब पंच पापों के निराकरण के लिए ही बने हैं ,इन्ही के अलगअलग वर्णीकरण किये गए हैं पर सब इन्ही में अंतर्निहित हैं .इन पापों का निराकरण धर्म या व्रतों के द्वारा दूर किये जाते हैं .इसका मतलब जब से मानव ने जन्म लिया हैं तब से वर्तमान में व्यापत बुराइयां उस समय भी थी .चोरी ,डकैती ,बलात्कार ,झूठ बोलना,भ्र्ष्टाचार,कदाचरण आदि मानसिक वाचनिक कायिक आदि भी हैं .
वर्तमान में हिंसा ,झूठ ,चोरी ,बलात्कार ,और जमाखोरी आदि का व्यापक विस्तार हुआ हैं .यानी मारकाट ,हत्याएं आत्महत्याएँ ,का ग्राफ बढ़ता जा रहा हैं ,झूठ बोलना तो पहले आम बात थी पर मोबाइल आदि ने इसका बहूत अधिक प्रादुर्भाव किया हैं ,हर जगह बात बात पर यह आम के साथ ख़ास बात हो गयी हैं ,धार्मिक राजनैतिक ,सामाजिक ,पारिवारिक आदि क्षेत्रो में आम हैं और सरकारी तंत्र तो इनसे भर पड़ा हैं .चोरी डकैती ,राहजनी ,छलावा धोखाधड़ी हेराफेरी का कोई ठिकाना नहीं .बलात्कार /व्यभिचार /दुराचार पर जितना अंकुश लगाया जा रहा हैं वे अपराध दिन दुने रात चौगने बढ़ रहे हैं और बढ़ाते और बढ़ते रहेंगे .और क्यों न बढे ,ये सब प्राचीनकाल से चले हैं और चले आ रहे हैं .ये अपराध कभी भी ख़तम नहीं होंगे ,इसके बाद परिग्रह यानी अपनी आवश्यकता ,सीमा से अधिक धन ,सामग्री ,वस्तुओं का संग्रह .संग्रह बुरा नहीं हैं पर असीमित होना यह अपराध हैं ,आजकल जमाखोरी ,लूटखसोट से धन संग्रह करना ये सब पाप हैं पर इन सबकी बहुलता दिखाई दे रही हैं .
एक बात समझ से परे हैं की मनुष्य इन सब कार्यों को करके क्या पाता हैं ? और आजतक कौन कितना अपने साथ लेकर गया .अंत में पाप के साथ अपराधी बनकर दण्डित होना पड़ता हैं .इस सब बातों पर हमारे प्राचीन ग्रंथों ने भरपूर लिखा हैं . लोभ ,भोग लालसा आग के समान हैं .कामना ,अतृप्ति का घी उसमे डालिये यह और भभकेगा .ऋग्वेद में लिखा हैं –स्वार्थपूर्ण धनसंग्रह विपत्ति का कारण हैं .धन से सुख के रिश्ते को लेकर कई ऋषियों ने खूब लिखा हैं .
बृहदारण्यक उपनिषद में उल्लेख हैं –अमृतत्वस्य तू नाशस्ति वित्तेन यानी धन से अमरत्त्व प्राप्त होने की आशा ही नहीं हैं .धन की सीमा ,धन की जरुरत ,धन के महत्व को लेकर ग्रामीणवासियों से लेकर सभी को यह बोध हैं .वाल्मीकि का उदाहरण को नहीं जानता ,सिकंदर दोनों हाथ खाली गया .धन जीने के लिए जरुरी हैं .धर्म अर्थ काम मोक्ष जीवन के चार लक्ष्य बताये गए हैं लेकिन इनकी सीमा भी होनी चाहिए ,शर्म और ईमानदारी से कमाई करना चाहिए .पर आज बगैर श्रम ,धन अर्जन और संग्रह की भूख बेलगाम हैं .न कानून का भय ,न सामाजिक बंधन ,नचोरी करने पर शर्म हैं और न बड़े बड़े अपराध करने पर आत्मपश्चताप .
यह देश हो वेद उपनिषद ,पुराण महावीर बुद्ध से लेकर गाँधी की इस मिटटी में घोर लोभी लालची पैदा हो रहे हैं यह पूरे समाज के लिए चिंता का विषय हैं .
वर्तमान शासन काल में एक तरफ तानाशाह रवैय्या अख्तियार किये हुए हैं शासक, तो दूसरी तरफ मंहगाई ,बेरोजगारी ,भ्रष्टाचार ,अत्याचार ,झूठ फरेबी का बोलबाला ,के कारण असंतोष हैं ऐसे में अमृत महोत्सव कितना उपादेय हैं .जिस तिरंगे का हम गुणगान करते हैं उसमे निहित रंगो का कितना देशवासियों में अहसास हैं .यह सब एक औपचारिकता के अलावा कुछ नहीं .सिर्फ आत्मप्रशंसा और परनिंदा में जी रहे हैं सत्ताधारी .
विद्यावास्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् ए 2 /१०४ पेसिफिक ब्लू नियर डी मार्ट होशंगाबाद रोड भोपाल ४६२०२६ मोबाइल 09425006753

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