उत्तम शौच का अर्थ है, जिसे चाहो – उससे कुछ मत चाहो..! अंतर्मना आचार्य प्रसन्नसागर

पर्वो के पर्वराज का चोथा चरण - उत्तम शौच

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औरंगाबाद – 83 लाख 99 हजार 9 सौ 99 योनियों में सिर्फ एक मानव है जो धन कमाता है। अन्य कोई भी जीव बिना धन कमाये आज तक ना भूखा सोया ना भूखा मरा। सिर्फ एक मानव है जो पैदा होने के बाद से आज तक ना पेट भर पाया, ना पेटी। इस लोभ वृत्ति से मुक्त होने के लिये सन्तोष का मार्ग है – उत्तम शौच।

सन्तोषी दरिद्र होने के बाद भी सुखी है और लोभी समृद्ध होने के बाद भी दुखी परेशान है।* हमें दुःख में से सुख खोजकर जीना है। दुःख में सुख खोज लेना भी एक कला है। *बड़े से बड़े दुखों में भी छोटे छोटे सुख के चिराग छुपे होते हैं। उन्हीं सुखों को पकड़कर यदि मनुष्य ज़िन्दगी जीता है, तो जिन्दगी भर सुख, शान्ति, आनंद, प्रेम का अमृत बरसता है।

मैं धन का विरोधी नहीं हूँ – धन होना चाहिए लेकिन सिर्फ धन के लिए जीवन नहीं गवाना चाहिए । जिन्दगी में धन कुछ हो सकता है – बहुत कुछ हो सकता है लेकिन धन सब कुछ नहीं हो सकता। जैसे जैसे धन बढ़ता है वैसे वैसे भोग विलासिता के संसाधन हमारे अमन चैन के जीवन को उजाड़ कर, ना सिर्फ वीरान बना देते हैं, अपितु दर्द भरा जीवन जीने के लिए विवश भी कर देते हैं। उत्तम शौच के अभाव में आदमी की अच्छी खासी जिन्दगी भोग विलास, ऐशो आराम से केवल पतोन्मुखी बनती है। इसलिए जीवन को उन्नत समुन्नत बनाने के लिये सिर्फ धन नहीं, साथ में धर्म की भी आवश्यकता है। सौ बात की एक बात – कितना भी धन कमा लो और धन जोड़ लो – साथ कुछ भी नहीं जायेगा। जो अनन्त सुख तक साथ दे उसका दामन थामना ही उत्तम शौच धर्म है।

-नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद

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