भगवान ने सभी को समान रूप से २४ घंटे ही दिए हैं ,और वह समय का कैसा उपयोग, सदुपयोग और दुरूपयोग करता हैं .समय धन से भी महत्वपूर्ण होता हैं और समय धन भी हैं जो जितना धन कमाने में व्यस्त होता हैं उसे खाना नसीब नहीं होता और जिसके पास धन नहीं हैं उसे खाना नहीं मिलता .मनुष्य की बहुत बड़ी भूल हैं समय की कमी और व्यस्त रहना .व्यस्त जरूर रहो ,पर अस्त- व्यस्त मत रहो ,व्यस्त रहो मस्त रहो .
आजकल हमारे बुजुर्ग कभी कभी परिवार के साथ भी होने पर एकाकीपन का जीवन गुजार रहे हैं और जो अकेले हैं वे अकेले होने के साथ स्वयं से लड़ रहे हैं .
जब सुनाने का वक्त हो ,
तब सुनने वाला करीब न हो ,
तब अहसास होता हैं
कि
सुनाने वाले से सुनने वाला
कितना कीमती होता हैं
मानव एक सामाजिक प्राणी हैं वह समाज में ही रहना पसंद करता हैं .वैसे उसके लिए सबसे सुकून की जगह उसका अपना निजी आवास /घर होता हैं .यहाँ हाउस और होम में अंतर समझना जरुरी हैं .होम निजित्व का होता हैं और हाउस किराये का ,जहाँ निजिता नहीं होती .जैसे रेस्ट हाउस ,सर्किट हाउस ,.घर में भी बहुत सूक्ष्म अंतर होता हैं घर और घर जैसा घर .लड़के और भाई का घर ,घर होता हैं पर घर जैसा घर होता हैं .वहां पर आपकी अपनी स्वतन्त्रता नहीं होती जितनी खुद की झोपड़ी में होती हैं ,रहेंगी .सुख और सुखाभास .
आज बहुतायत में सीनियर सिटीजन होम ,वृद्धाश्रम की संख्या बढ़ती जा रही हैं .वृद्धाश्रम में भी महंगाई के कारण व्यवसायीकरण होता जा रहा हैं .सभी जगह यह स्थिति नहीं हैं .वहां सभी जन एक उम्र के पड़ाव के होते हैं ,चहल पहल होती हैं ,सामाजिकता मिलती हैं पर निजिता नहीं .
खास तौर वे वृद्ध सबसे अधिक परेशान होते हैं जिनको एकाकी जीवन के साथ जीवन साथी नहीं होता हैं ,पर उनको कुछ कुछ बोलने का समय चाहिए या कोई सुनने वाला चाहिए .इसके लिए आजकल एक बैंक का चलन सामने आया हैं जिंसमे आप अपना समय जमा कर सकते हैं इसमें ऐसे स्वयं सेवक हो सकते हैं जैसे विद्यार्थी ,डॉक्टर ,वकील ,इंजीनियर्स ,जो २ से ५ लोग मिलकर उन वृद्धों की बात सुने ,उनके अनुभव सुने और कुछ उनको सीखने का अनुभव मिलेगा .इसके लिए उस बैंक में उनका हिसाब रखा जाएगा ,उनके साथ संगोष्ठी कर चर्चा करेंगे .
वैसे यह भी बात चल पडी हैं कि विज्ञान के कारण तकनिकी के विकास ने टी वी के अलावा इंटरनेट के माध्यम से आप पूरी दुनिया से जुड़ सकते हैं पर कितने समय और कितने दिन .एक बात यहाँ जरूर कहना चाहूंगा की आप अपने शौक ,अध्ययन, पठनपाठन को स्वीकारें और सबसे सुखद हैं अपने धर्म का पालन करे .धार्मिक पुस्तकें पढ़े और जीवन में उनकी शिक्षाओं को उतारने का प्रयास जितना संभव हो करना चाहिए .जिससे मन की शांति के साथ संसार की नश्वरता का बोध होकर आत्मिक शांति मिलेंगी ,लेखक स्वयं ७२ वर्ष का होने के बावजूद उसके समय की कमी हैं .
यह स्थिति कमोबेश आगे चलकर जो युवा हैं और अपनी नौकरी व्यवसाय में अत्यंत व्यस्त होने से उनके मित्र कम बनते हैं और व्यस्त होने से परिवार जनों से दूर होकर पैतृक घरों से दूर देश या विदेश में स्थापित होने के कारण उनका भविष्य कैसा होगा ईश्वर जाने .आज कार्याधिकता के कारण जब अपनी पत्नी बच्चों को समय नहीं सकते तब उन्हें बुढ़ापे में कौन ,कितना साथ देगा .संभवतया बच्चों को उच्च शिक्षित कराने का लक्ष्य होने से अंत समय उनको भी तुम्हारे साथ नहीं रहना होगा .इतिहास पुनः दुहराता हैं .
इसके लिए सबसे सुगम तरीका हैं समय का प्रबंधन समुचित हो .सामाजिकता निभाए ,परिवार जनो में स्नेह रखे और उनसे संपर्क और जीवंत सम्बन्ध बनाये .अन्यथा अभी समय बैंक हैं उस समय अधिकांश वृद्धाश्रम न जाकर पागलखाने या हॉस्पिटल में रहेंगे .
पश्चिमी संस्कृति के कारण सामाजिकता ,पारिवारिक सम्बन्ध बनाये रखना जरुरी हैं अन्यथा एकाकी जीवन दुखद न बन जाए .
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026 मोबाइल ०९४२५००६७५३
Unit of Shri Bharatvarshiya Digamber Jain Mahasabha