तीर्थंकर श्री संभवनाथ भगवान का ज्ञान कल्याणक —-विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन भोपाल

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द्वितीय तीर्थन्कर के निर्वाण के बाद बहुत काल बीत जाने पर तर्तीय तीर्थन्कर श्री सन्भवनाथ जी का जन्म हुआ | ग्रैवेयक देवलोक से च्यव कर प्रभु का जीव श्रावस्ती नगरी के राजा जितारि की रानी सेनादेवी की रत्न कुक्षी मे उत्पन्न् हुआ | माता ने चोदह मन्गल स्वप्न देखे | मार्गशीर्ष शुक्ल १५ को तीर्थकर देव का जन्म हुआ | सर्वत्र हर्ष का सन्चार हो गया |
प्रभु के गर्भ मे आने पर महाराज जितारि के असन्भव प्राय : कार्य भी सहज स्न्भव हो गए | बन्जर भुमि पर फ़सले लहलहाने लगी | इन बातो से प्रेरित हो महाराज ने पुत्र का नाम सन्भवनाथ रखा |
काल्क्रम से सन्भवनाथ युवा हुए | कई राजकन्याओ से उनका पाणी – ग्रहण कराया गया | बाद मे उन्हे राजपद पर प्रतिष्ठित करके महाराज जितारि ने प्रव्रज्या अन्गीकार कर ली | एक बार महाराज सन्भवनाथ सन्ध्या के समय अपने प्रासाद की छ्त पर टहल रहे थे | सान्ध्याकालीन बाद्लो को मिलते -बिखरते देखकर उन्हे वैराग्य की प्रेरणा हुई | प्रभु के मनोभावो को देखकर जीताचार से प्रेरित हो लोकान्तिक देव उपस्थित हुए | उन्होने प्रभु के सन्कल्प की अनुमोदना की |
पुत्र को राज्य सोन्पकर सन्भवनाथ वर्षीदान मे सन्लग्न हुए | एक वर्ष तक मुक्त हस्त से दान देकर सन्भवनाथ ने जनता का दारिद्रय दुर किया | तत्पश्चात मार्गशीर्ष शुक्ल पुर्णिमा के दिन सन्भवनाथ ने श्रमण -दीक्षा अन्गीकार की | चोदह वर्षो की साधना के पश्चात प्रभु ने केवल् ज्ञान प्राप्त कर धर्मतीर्थ की स्थाप्ना की| प्रभु के धर्मतीर्थ मे सहस्त्रो -लाखो मुमुक्षु आत्माओ ने सहभागिता कर अपनी आत्मा का कल्याण किया | सुदीर्घ काल तक लोक मे आलोक प्रसारित करने के पश्चात प्रभु सन्भवनाथ ने चैत्र शुक्ल पन्चमी को सम्मेद शिखर से निर्वाण प्राप्त किया |
भगवान के धर्म परिवार मे चारुषेण आदि एक सो पान्च गणधर , दो लाख श्रमण , तीन लाख छ्त्तीस हजार श्रमणिया , दो लाख तिरानवे हजार श्रावक एवम छ्ह लाख छ्त्तीस हजार श्राविकाए थी |
भगवान के चिन्ह का महत्व
अश्व –
यह भगवान सम्भवनाथ का चिन्ह है | जिस प्रकार अच्छी तरह से लगाम डाला हुआ अश्व युद्धों में विजय दिलाता है, उसी प्रकार संयमित मन जीवन में विजय दिलवा सकता है | अश्व से हमें विनय ,संयम , ज्ञान की शिक्षाएं मिलती हैं | यदि भगवान सम्भवनाथ के चरणों में मन लग जाए तो असम्भव भी सम्भव हो सकता हैं | यदि भगवान सम्भवनाथ के चरणो में मन लग जाए तो असम्भव भी सम्भव हो सकता है | जैन शास्त्रों में कहा है- ‘मणो साहस्सिओ भीमो , दुटठस्सो परिधावइ ‘ मन दुष्ट अश्व की तरह बडा साहसी और तेज दौडने वाला है |
कार्तिक कलि तिथि चौथ महान, घाति घात लिय केवल ज्ञान |
समवशरनमहँ तिष्ठे देव, तुरिय चिह्न चचौं वसुभेव ||
ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णाचतुर्थी ज्ञानकल्याणक प्राप्ताय श्रीसंभव0 अर्घ्यं नि0
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026 मोबाइल ०९४२५००६७५३

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