तीर्थक्षेत्र कमेटी की लगेगी ‘प्रसन्न’ क्लास

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औरंगाबाद  /मैनपुरी       नरेंद्र /पियूश जैन               आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी कुलचारम से बद्रीनाथ की यात्रा के लिये बढ़ते हुए कुछ दिन मैनपुरी रुके, जहां भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जंबू प्रसाद जैन, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष अशोक दोशी जी ने दर्शन किये और तीर्थ संरक्षण पर चर्चा की। इससे पहले। द्रोणगिरि में भी इस पर लम्बी चर्चा कुलचारम के बाद हो चुकी थी।
लगातार तीर्थक्षेत्र कमेटी द्वारा कार्य योजना व भविष्य की योजनाओं के प्रति उत्सुकता दिखाने पर आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी जी ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा कि तीर्थक्षेत्र कमेटी कार्यकारिणी के सदस्य अहिच्छेत्र में पहुंचे, वहीं अपने अनुभवों से महत्वपूर्ण उद्बोधन होगा।
सभी को ज्ञात होगा कि आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी का जहां चातुर्मास होता है, उस तीर्थ की काया-पलट हो जाती है और वे फिर आगे बढ़ जाते हैं। चाहे वो शिखरजी में स्वर्णभद्र टोंक हो, बीसपंथी कोठी हो या फिर वहां ताले में पड़े चोपड़ा कुंड को खुलवाने की बात हो। फिर उदगांव को एक श्रेष्ठतम तीर्थ का रूप समाज को देने के बाद कुलचारम तीर्थ को कैसे आकर्षण रूप में बदला,
अब भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी को जब वे अपने
अनुभव से टिप्स देंगे, तो निश्चय ही समाज के 350 तीर्थों के संरक्षण व सभी की सुरक्षा में यह एक महत्वपूर्ण पहल होगी और राष्ट्रीय अध्यक्ष जंबू प्रसाद जैन के नेतृत्व में एक वर्ष पहले निर्विरोध रूप से बनी कमेटी के लिये मील का पत्थर साबित हो सकता है। वर्तमान कमेटी लगातार साधु-संतों के दर्शन व उनके साथ तीर्थों की सुरक्षा पर चर्चा की एक योजना बना कर चल रही है।
तीर्थक्षेत्र कमेटी ही इस समय जैन समाज की सबसे बड़ी प्राचीन संस्था है, जो बिना बंटे अनवरत 123वें वर्ष में है। आगामी 22 अक्टूबर 2026 से 22 अक्टूबर 2027 तक, पूरे वर्ष एक महामहोत्सव वर्ष मनाने की भी तैयारियां चल रही हैं, जिसके अंतर्गत 2025 के वर्षायोग की शुरूआत में हर जगह तीर्थ सुरक्षा कलश स्थापना, वर्षायोग के दौरान तीर्थ सुरक्षा-संरक्षण से संबंधित 9 अंचल में विद्वत-महिला पत्रकार सम्मेलन आयोजित किये जाने की संभावना है।
तीर्थक्षेत्र कमेटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने बताया कि वर्षायोग, पंचकल्याणक या कोई भी बड़ा महोत्सव हो, उसमें एक हिस्सा तीर्थों की सुरक्षा के लिये रखा जाये। जब एक नये मंदिर का निर्माण हो, तो उसके साथ एक पुराने तीर्थ को जीर्णोद्धार के लिये गोद लें।            नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद

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