डोंगरगढ़ – संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया धूप के बाद छाया, छाया के बाद धूप, रात के बाद दिन, दिन के बाद रात, दुःख के बाद सुख और सुख के बाद दुःख आये यह कोई नियम नहीं है इस पर ब्रेक लगाया जा सकता है | वर्तमान में सुखी है, भविष्य में दुःख को मिटाकर महापुरुष सुख – दुःख कि परंपरा से डरते नहीं है | हम ऐसा उपाय कर सकते हैं जिससे दोनों का अभाव हो जाये | इसी श्रद्धान के साथ वे एक प्रकार से दुःख से डरते नहीं है और सुख में रूचि ही नहीं लेते | यह सुख दुःख नश्वर है यह पर पर आधारित है | डकार जानते हैं आप लोग ? डकार कब आती है ? जब भोजन करते हैं उसके कुछ समय बाद डकार आती है | जो कुछ भी खाया है उसी का रस आदि आएगा | खाओगे महेरी तो डकार मीठी आएगी क्या ? महेरी खाये थे तो खट्टी डकार आ रही है | अब खट्टी – मीठी को न देखे | वर्तमान में जो भूत के दुःख को याद कर दुखी होते हैं | कोई घटना घट जाने से हमेशा दुखी रहें यह कोई नियम नहीं है | उन्हें हमेशा अच्छे कार्य कि स्मृति को याद रखना चाहिये इससे बड़े से बड़े कार्य हो जाते हैं | विद्यालय में विद्या अर्जन करते – करते जब परीक्षा का समय आता है तो डर के कारण अच्छे – अच्छे बच्चे घबराने के कारण लिख नहीं पाते और अन्नुतिर्ण हो जाते हैं | उनको समझाना पड़ता है इसे याद मत रखो जो याद किये हो उसे लिखो तो उत्तीर्ण हो जाओगे | कुछ माता पिता बच्चे से कहते हैं कि महाराज के पास जाओ आशीर्वाद ले लो पास हो जाओगे | पहले हम अपने आप को सँभालते हैं | एक उदाहरण आगम में आता है कि चारो तरफ एकांत है मनुष्य का नामो निशान नहीं मात्र पशु – पक्षियों कि चहचहाहट सुनाई दे रही है | वहाँ दो व्यक्ति है परीक्षा कि घडी है, धैर्य का बाँध टूट रहा है ऐसी बाते करते रहते हैं | तभी वहाँ मुनि महाराज ने दर्शन दिया वे रिद्धिधारी थे उनको स्व और पर का ज्ञान था | वे मुनि महाराज से कहते हैं कि भगवान आपने दर्शन दे दिया बहुत अच्छा है | यह चट्टान, बड़े – बड़े पत्थर सर पर गिर गए तो क्या होगा गर्भ में शिशु है अब हमारा क्या होगा ? मुनि महाराज कहते हैं आपके गर्भ में जो शिशु है वह तद्भव मोक्षगामी जीव है वह इसी जन्म में मुक्त होगा | वह जन्म के समय माँ को कैसे पीड़ा दे सकता है उसके द्वारा ही आपको संबल मिलेगा | उसी के द्वारा आपका सभी कार्य होगा | उन्हें सांत्वना और आशीर्वाद देकर मुनि महाराज आकाश में उड जाते हैं | महाराज भी दुखी जीवो को देखकर एक सीमा तक ही उपदेश देते हैं | ज्यादा करने से दुःख के संवेदन से राग न हो जाए | आपको वह मुक्त तो नहीं कर सकते लेकिन मुक्ति का बोध अवश्य करा सकते हैं | एक बहुत बड़ा सिंह दहाड़ते हुए गर्जना करते हुए बहुत तेजी से वहां आ जाता है | दोनों सखियाँ डर के कारण एक दूसरे से लिपट गयी | एक कि शादि हुई थी तो एक उसकी सहेली उसके साथ आई थी| अब उसी बीच में अष्टापद आ जाता है और दोनों सिंह और अष्टापद के बीच में घमासान युद्ध होता है | युद्ध में अष्टापद सिंह को पछाड़कर भगा दिया और स्वयं वहाँ से चला गया | एक साता के उदय से और एक असाता के उदय से आया | अब उस शिशु का जन्म कैसे होगा जंगल में गुफा में दोनों अबला अकेले हैं ? तद्भव मोक्षगामी जीव होने के कारण प्रसूति के समय मेघराज बाजे बजा रहे थे और जब भव्य जीव जन्म लेता है तो ऊपर से बाजा आ जाता है और चारो तरफ प्रकाश ही प्रकाश आलोक हो जाता है | प्रतिदिन विद्याओं के माध्यम से भोजन मिलता था | मोक्षगामी जीव है अनेक प्राणियों का इससे उद्धार होगा | कुछ समय बाद वहाँ मामा आ गए| बीच में अनेक घटनाये होती है | कभी कभी कवी को दुःख का चित्रण करना बहुत कठिन हो जाता है | आपके दुःख को देखकर भगवान को आंशु नहीं आता लेकिन उनको इसका संवेदन होता है | दौलतराम जी ने ऐसी पंक्ति लिखी कि केवली भी आपके दुःख कि गाथा लिख नहीं पाए | संसार दुखी है चारो ओर सुख है ही नहीं | दुखी को देखकर दुखी नहीं होना यही सर्वज्ञ है | लेकिन यथावत भव्य जीव सम्यग्दृष्टि, होनहार वैरागी, वर्तमान में शांत रहता है | नरक में ३३ सागर तक जीव दुःख को भूख प्यास को सहन करता है | भद्र परिणामी जीव संसार के सुख दुःख को नश्वर मानकर साता असाता के उदय में धैर्य पूर्वक शांत बैठा रहता है | ऐसा अनुभव करने के लिये मुक्त होना पड़ेगा तब अनुभव में आएगा | अपने दुःख में रोना बंद कर देना लेकिन पर के दुःख में जो रोता है उसके लिये हमारा आशीर्वाद है और अपना दुःख कभी किसी के सामने नहीं रखना | हमारे लिये आचार्यों ने कहा है कि दुखी व्यक्ति को उद्बोधन दो या न दो पर उसका दुःख सुन अवश्य लेना जिससे उसका दुःख थोडा हल्का हो जाये | दूसरे के दुख को सुनना भी सीखो केवल अपना ही अपना देखते हो | भगवान से प्रार्थना करते हैं कि सभी शान्ति से धैर्य पूर्वक रहे और सभी का दुःख दूर हो जाये | आज आचार्य श्री विद्यासागर महाराज को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य ब्रह्मचारिणी निभा दीदी रीव (मध्य प्रदेश ) निवासी परिवार को प्राप्त हुआ | जिसके लिये चंद्रगिरी ट्रस्ट के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन,कार्यकारी अध्यक्ष श्री विनोद बडजात्या, सुभाष चन्द जैन,निर्मल जैन, चंद्रकांत जैन,मनोज जैन, सिंघई निखिल जैन (ट्रस्टी),निशांत जैन (सोनू), प्रतिभास्थली के अध्यक्ष श्री प्रकाश जैन (पप्पू भैया), श्री सप्रेम जैन (संयुक्त मंत्री) ने बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें दी| श्री दिगम्बर जैन चंद्रगिरी अतिशय तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन ने बताया की आचार्य क्षेत्र में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी की विशेष कृपा एवं आशीर्वाद से अतिशय तीर्थ क्षेत्र चंद्रगिरी मंदिर निर्माण का कार्य तीव्र गति से चल रहा है और यहाँ प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ में कक्षा चौथी से बारहवीं तक CBSE पाठ्यक्रम में विद्यालय संचालित है और इस वर्ष से कक्षा एक से पांचवी तक डे स्कूल भी संचालित हो चुका है | यहाँ गौशाला का भी संचालन किया जा रहा है जिसका शुद्ध और सात्विक दूध और घी भरपूर मात्रा में उपलब्ध रहता है | यहाँ हथकरघा का संचालन भी वृहद रूप से किया जा रहा है जिससे जरुरत मंद लोगो को रोजगार मिल रहा है और यहाँ बनने वाले वस्त्रों की डिमांड दिन ब दिन बढती जा रही है | यहाँ वस्त्रों को पूर्ण रूप से अहिंसक पद्धति से बनाया जाता है जिसका वैज्ञानिक दृष्टि से उपयोग कर्त्ता को बहुत लाभ होता है|आचर्य श्री के दर्शन के लिए दूर – दूर से उनके भक्त आ रहे है उनके रुकने, भोजन आदि की व्यवस्था की जा रही है | कृपया आने के पूर्व इसकी जानकारी कार्यालय में देवे जिससे सभी भक्तो के लिए सभी प्रकार की व्यवस्था कराइ जा सके |उक्त जानकारी चंद्रगिरी डोंगरगढ़ के ट्रस्टी सिंघई निशांत जैन (निशु) ने दी है |
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