सुख शांति प्रदायक भगवान महावीर स्वामी के पावन संदेश

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जैन धर्म में वर्तमान चौबीसी के 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी हैं। जिन्हें  वर्तमान शासन नायक भी कहा जाता है। तीर्थंकरों के संबंध में कहा जाता है – जो संसार सागर को पार करके और दूसरों को पार कराने के लिए कार्य करते हैं वे महान पुरुष तीर्थंकर कहलाते है। तीर्थंकर वह व्यक्ति बनता है जो लोक कल्याण की भावना के साथ दर्शन विशुद्धयादि षोडश कारण भावनाओं का अत्यंत विशुद्ध भाव से चिंतन कर उनका अनुकरण करते हैं। भगवान महावीर स्वामी का जन्म ऐसे ही विशुद्ध परिणामों का फल था।

भगवान महावीर स्वामी का जन्म आज से 2621 वर्ष पूर्व इसी भरतक्षेत्र के विदेह नामक देश संबंधी कुंडपुर नगर के राजा सिद्धार्थ तथा प्रिय कारिणी ( त्रिशला देवी ) के नंद्यावर्त नामक महल में चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के दिन शुभयोग में हुआ था। जन्म से ही मति, श्रुत और अवधिज्ञान के धारी भगवान महावीर स्वामी का सौधर्म इंद्र ने ऐरावत हाथी पर विराजमान कर देवों से घिरी हुई पांडुक शिला पर ले जाकर जन्माभिषेक कर वर्धमान नाम रखा और उसकी शूरवीरता की अत्यंत प्रशंसा कर स्तुति की।

वीर,अतिवीर,सन्मति, वर्धमान और महावीर के नाम से प्रसिद्ध भगवान महावीर स्वामी की स्तुति जैन ग्रंथों
में इस प्रकार से की गई है।

नमः श्री वीरनाथाय भव्याम्भोरुहभास्वते।
सुरानंद सुधास्यद स्वाद संवेदनात्मने – प्रबोध सार

भगवान वीरनाथ स्वामी सर्वोत्कृष्ट अनंतसुख रूप अमृत से उत्पन्न हुए स्वाद का सदा अनुभव करते रहते हैं और भव्य रूपी कमलों को प्रफुल्लित करने के लिए जो सूर्य हैं ऐसे श्री वीर नाथ स्वामी के लिए सदा नमस्कार करता हूँ।

वर्धमानः श्रियं देवादवर्धमानां शिवोत्तराम।
येन प्रवर्तित तीर्थ भव भ्रम विनाशनम् ।।

अर्थात जिन भगवान महावीर स्वामी ने संसार के परिभ्रमण का नाश करने वाले तीर्थ की प्रवृत्ति  की है, ऐसे वे भगवान वर्धमान स्वामी प्रति    समय बढ़ने वाली और मोक्ष को प्राप्त कर होने वाली लक्ष्मी को प्रदान करें।

प्रत्येक धर्मात्मा मनुष्य का चरम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति है। तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी ने बतलाया कि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र रूप रत्नत्रय का पालन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके लिए तीर्थंकरों, अरहंत, सिद्ध पर यथार्थ श्रद्धान, भगवान जिनेंद्र देव की वाणी पर विश्वास तथा सम्यग्चारित्र के पालन के लिए राग, द्वेष, मोह, तथा हिंसा,झूठ,चोरी, कुशील, परिग्रह रूप पांच पापों का त्याग आवश्यक है। पांच पापों से बचने के लिए मन, वचन और काय की शुद्धता और अहिंसा तथा दया धर्म के पालन पर जोर दिया गया है महावीर स्वामी ने कहा –

दयामूलं यतो धर्मः सत्वानां शान्तिदः सदा।
शिव सौधस्य सोपानं सर्वेश्वर्य  प्रसाधनम्।।—प्रबोध सार

अर्थात समस्त जीवों की दया करना ही धर्म है क्योंकि दया ही समस्त प्राणियों को सदा सुख पहुंचाने वाली है। यही मोक्ष महल की सीढ़ी है और समस्त संपदाओं को देने वाली है। धर्म का पालन करने के लिए आपने बताया कि संसार में रहने वाले प्राणी भव बंधनों से मुक्त होने के लिए तीन रूपों में धर्म का पालन करें। आचरणात्मक शुद्धि के लिए अहिंसा, आत्मनियंत्रण के लिए संयम और अष्टकर्मों के नाश के लिए तप साधना करें। तप साधना से ही तन और मन दोनों के बंधन समाप्त होते है। शरीर और रोगों से बचने के लिए शरीर के बंधन से मुक्त होना आवश्यक है। जब तक शरीर का बंधन है तब तक जीव कर्म बंधनों से मुक्त नहीं हो सकता, अतः उन्होंने उपदेश दिया कि तन मिलता है तो मन शुद्ध रखकर तपस्या करो ताकि जन्म और मृत्यु के बंधनों से मुक्त हो सकें।

भगवान महावीर स्वामी की इस प्रेरणा का ही सुपरिणाम है कि आज भी हजारों व्यक्ति परिग्रह का त्याग कर दिगंबर मुद्रा धारण कर तप साधना करते हुए मोक्ष प्राप्ति की ओर अग्रसर हैं तथा अहिंसा और शांति का संदेश दे रहे हैं। भगवान महावीर स्वामी की शिक्षा के पाँच मुख्य केंद्र बिंदु हैं -अहिंसा,सत्य,अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य। इन्हें जैन धर्म में पाँच महाव्रत कहा जाता है। भगवान महावीर स्वामी ने जब देखा कि मनुष्य से संसार के समस्त प्राणी भयभीत हैं, पशुओं की हिंसा हो रही है,यज्ञ के नाम पर पशुबलि दी जा रही है, नारियों का यथोचित सम्मान नहीं है,  इन कुरीतियों को सुधारने तथा भयमुक्त समाज की स्थापना करने के लिए उन्होंने अहिंसा और जीव दया की भावना पर जोर दिया और मानव को प्रेरणा दी कि यदि आत्मा के निकट रहकर मोक्ष प्राप्त करना है तो जीव हिंसा तो होनी ही नहीं चाहिए तथा मन वचन और काय से भी आरंभी, उद्योगी, विरोधी और संकल्पी हिंसा न हो इसका सार्थक प्रयास करना चाहिए। ऐसा करने से तन
और मन दोनों से ही आप सभी बंधन मुक्त होंगे।

मन की सोच को महत्वपूर्ण बताते हुए भगवान महावीर स्वामी ने बताया कि मन के कारण ही व्यक्ति बंधन बद्ध तथा बंधन मुक्त होता है। संसार में रहकर यदि सत्य का अनुकरण करेगा तो चोरी, छल कपट, बेईमानी से बचेगा, इच्छाओं को रोककर परिग्रह का त्याग करेगा और इंद्रियों पर नियंत्रित रखेगा तो पाँच पापों से मुक्त रहकर सन्मार्ग पर चलकर मोक्ष प्राप्त करेगा। भगवान महावीर स्वामी के अहिंसा आदि पाँच महाव्रत मानव ही नहीं जीव मात्र के लिए कल्याण कारक, सुख
कारक तथा शांति प्रदायक  हैं । अतः किसी कवि ने उनकी स्तुति करते हुए लिखा है —

सुख शांति विधायक वीर प्रभु आदर्श तुम्ही हित कर्ता हो।
जगदीश विज्ञ बिन राग द्वेष तुम ही जंग संकट हर्ता हो।।

आज जबकि चारों ओर अशांति और अन्याय का वातावरण है, मनुष्य जीवनमूल्यों को न समझकर स्वार्थ में लिप्त है, विनाशक हथियारों बनाने की होड़ लगी है, स्वार्थ का बोलबाला है, ऐसे में भगवान महावीर स्वामी का सर्वोदयवाद एवं कर्मवाद के सिद्धांत आज भी अपनी उपयोगिता को सिद्ध कर रहे हैं।

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