सोरायसिस — न खाएं ये चीजें,–विद्यावाचस्पति अरविंद प्रेमचंद जैन भोपाल

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आयुर्वेद में सोरायसिस को किटिभ कहते हैं। कृष्णातीति कुष्ठं –शरीर कीत्वचा आदि धातुओंका नाश करने के कारण इस रोग को कुष्ठ कहते हैं। आयुर्वेद में कुछ शब्द त्वचा के जैसे दाद ,खुजली जैसे साधारण रोग तथा कोढ़ दोनों को ग्रहण किया जाता हैं।
अस्वेदनम महावास्तु यंमतस्यशकलोपमं।
तदेककुष्ठं ,चर्माखयं बहलम हस्तिचर्मवत।।
श्याव किणखर स्पर्श परुष किटीभं स्मृतम।
जिसमे स्वेद न आये ,जो बहुत विस्तृत हो तथा जो मच्छली की त्वचा के सदृश्य (काला लाल ) हो उसे एक कुष्ठ कहते हैं। जिसमे त्वचा हाथी के चमड़े के समान मोती हो जाए उसे चर्म कुष्ठ कहते हैं। जो श्याव (स्निग्ध कृष्ण वर्ण का व्रण स्थान के समान खुरदरे स्पर्शवाल और कठोर होता हैं उसे किटिभ कहते हैं।
कारण –विरुद्ध अन्न -पान ,व द्रव और स्नेह बहुल गरिष्ठ पदार्थों का सेवन करने वाले ,उपस्थित वमन व अन्य वेगों को रोकने वाले ,अत्याधिक भोजन करने के उपरांत व्यायाम करने वाले व अत्याधिक संताप (अग्नि) का सेवन करने वाले ,धुप ,परिश्रम तथा भय से पीडितावस्था में बिना विश्राम किये ठंडा पानी सेवन करने वाले ,अपक्व पदार्थों का सेवन करने वाले व अध्यषयन करने वाले ,पंचकर्म में कुपथ करने वाले ,नवीन अन्न ,दही मच्छली ,लवण वाले वा खट्टे पदार्थों का सेवन करने वाले ,उड़द ,आलू ,मिटटी के बने पदार्थ ,तिल,दूध तथा गुड आदि का एक साथ सेवन करने, भोजन का परिपाक न होने पर भी मैथुन करने व दिन में सोने वाले,माता पिता और आचार्य का तिरस्कार करने व नीच कर्म करने वाले व्यक्तियों में ,वात ,पित्त और कफ दोष कुपित होकर त्वचा ,रक्त मांस और शरीरस्थ जलीय धातु को दूषित का देते हैं। ये ही सात धातुएं कुष्ठों के उत्पादक कारण होते हैं।
सोरायसिस त्वचा से जुड़ी एक समस्या है जिसके होने के पीछे कई कारण जिम्मेदार हैं। सोरायसिस को त्वचा अस्थमा भी कहा जाता है। इस रोग के होने परत्वचा शुष्क हो जाती है और त्वचा पर धब्बे बनने लगते हैं। तनाव, बहुत अधिक गर्मी या ठंड में रहना, सिगरेट धूम्रपान, संक्रमण, कुछ दवाओं का सेवन, अधिक वजन के चलते सोरायसिस नामक रोग हो सकता है। प्राचीन विज्ञान आयुर्वेद के अनुसार, हवा और कफ के असंतुलन के कारण भी सोरायसिस होता है। सोरायसिस तेजी से न फैले इसलिए हमें इसकी रोकथाम समय रहते करनी चाहिए।
अपथ्य
मांस – जिन लोगों को हृदय संबंधी समस्याएं होती हैं उन्हें रेड मीट के सेवन से बचना चाहिए। रेड मीट सेचुरेटिड फैट और बेड कोलेस्ट्राल से युक्त होता है जो हृदय रोग समेत सोरायसिस की समस्या को बढ़ा सकता है। यदि सोराससिस होने के बावजूद आप रेड मीट का सेवन करते हैं तो आपको सूजन और शरीर में दर्द की समस्या हो सकती है।
दुग्ध युक्त पदार्थ – यह सच है कि दूध और विभिन्न डेयरी उत्पाद आपके शरीर को प्रोटीन, कैल्शियम, पोटेशियम, विटामिन बी 12 और विटामिन डी समेत कई पोषक तत्व देते हैं लेकिन जो लोग सोरायसिस के शिकार होते हैं उन्हें इनसे दूर रहना चाहिए। रेड मीट की तरह ही डेयरी प्रॉडक्ट भी सूजन का कारण बन सकते हैं।
एल्कोहल- स्वास्थ्य विशेषज्ञों भी इस विषय में एकमत हैं कि एल्कोहल का सेवन सोरायसिस की समस्या को काफी हद तक बढ़ा सकता है। यदि ऐसे मरीज कभी कभी एल्कोहल का सेवन करते हैं तो उन्हें इससे भी बचना चाहिए। क्योंकि शराब आपके रक्त वाहिकाओं को चौड़ा करने का कारण बनती है। जिससे आपकी समस्या ट्रिगर हो सकती है।
जंक फूड- वैसे तो जंक फूड के सेवन से हर किसी को बचना चाहिए क्योंकि इनमें डलने वाले मसाले, मैदा और तेल सेहत के लिए बहुत नुकसानदायक होता है। सोरायसिस के मरीजों को डॉक्टर स्पष्ट रूप से जंक फूड कोन सेवन करने की सलाह देते हैं। यह आपकी परेशानी को और भी ज्यादा बढ़ा सकते हैं।जैसे पिज़्ज़ा बर्गर ,मेक्डोनाल्ड आदि
खट्टे फल — सोरायसिस से पीड़ित लोगों को नींबू, संतरे और अन्य खट्टे फलों का सेवन करने के बाद परेशानी होने लगती है। हालांकि, यह जरूरी नहीं है कि ये परेशानी सभी के साथ हो, लेकिन अधिकतर सोरायसिस मरीजों के साथ ऐसा होता है। यदि आपको सिट्रस फ्रूट के सेवन से कोई परेशानी नहीं होती है तो आप इनका सेवन कर सकते हैं। हालांकि अगर आप चाहें तो अपने डॉक्टर से सलाह भी ले सकते हैं।
चिकित्सा आयुर्वेद के अनुसार —
१ करंज तेल — स्थानिक प्रयोगार्थ
२ गर्जन तेल — गर्जन तेल को समान मात्रा में चुने के पानी के साथ मिलाकर लगाना चाहिए। इस तेल को १ चम्मच सुबह शाम
चालमोगरा तेल के साथ मिलाकर लेना चाहिए।
३ किट्टाभिहारी मलहम –स्थानिक प्रयोगार्थ
४ आरगवधादि उदवर्तन– इस उबटन नहाने के पहले लगाकर उबले नीम पत्र के पानी से से स्नान करना चाहिए। बिना नमक का शाकाहारी भोजन करना चाहिए।
५ पंचतिक्त घृत गुग्गुलु — २ -२ गोली महामंजिष्ठादि कवाथ के साथ सुबह शाम २० -२० मिलीमीटर के साथ लेना चाहिए।
६ आरोग्यवर्धिनी — २ -२ गोली सुबह शाम पानी से
संक्रामकता —
कुष्ठादि रोगों से पीड़ित रोगी को मैथुन करने या निरंतर संपर्क से। शरीर के स्पर्श से श्वास से ,साथ में भोजन करने से ,एक शय्या पर सोने से ,रोगी के पहिने वस्त्र और माला के धारण करने से कुष्ठ ,ज्वर राजयक्ष्मा ,नेत्राभिष्यन्द तथा अन्य औपसर्गिक रोग एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य पर संक्रांत हो जाते हैं।
वर्तमान में कुछ लोग गर्मियों में अपने शरीर से पसीना नहीं निकलने देते यानी ए सी ,कूलर पंखा आदि में रहते हैं ,जिस कारण उनके शरीर से पसीना के द्वारा विषाणु बाहर नहीं निकलते ,बार बार साबुन बदलना या भी नुक्सानदायक होता हैं। इसीलिए बचाव ही इलाज़ हैं।
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन भोपाल 09425006753

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