शुभ भावनाये पाप को भी पुण्य में बदल देती हैं – भावलींगी संत विमर्श सागर जी महाराज

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एटा दिन शनिवार को पुरानी बस्ती स्थित दिगंबर जैन बड़ा मंदिर में विराजमान भावलिंगी संत आचार्य विमर्श सागर जी महामुनिराज ने प्रातः काल में अपने प्रवचन के माध्यम से श्रावको को बताया कि जीवन में भावो का विशिष्ट महत्व होता है। भावो से आत्मा का पोषण होता है और भावनाओं से ही आत्मा का शोषण भी होता है राग – द्वेष- मोह- ईर्ष्या आदि अशुभ भावों से निश्चित ही आत्मा का पोषण होता है प्राणियों के कल्याण की भावना करना देखने में यह भावना संक्षिप्त दिखाई देती है किंतु ध्यान रखना यह भावना इतनी उत्कृष्ट – श्रेष्ठ भावना है जो आप को जगत में सर्वश्रेष्ठ बना देती है अर्थात् यह भावना तीन लोको में सर्वोत्कृष्ट तीर्थंकर पद को प्रदान करने वाली है।
हमारे समक्ष जो भी कार्य संपादित होते दिखाई दे रहे है उनमें कोई कारण अवश्य होता है क्योंकि बिना कारण के कोई भी कार्य निष्पन्न नहीं होता कई बार सही ज्ञान ना होने से हम कारण को ही कार्य समझ बैठते हैं और अपने लक्ष्यरूप कार्य को प्राप्त करने से वंचित रह जाते है धर्मानुष्ठान धर्मक्रिया तो मात्र कारण है उस धर्मक्रिया से होने वाली जो भावों की विशुद्ध है वह कार्य है अधिकांश का व्यक्ति धर्म क्रिया को प्राप्त कर संतुष्ट हो जाता है किंतु अपने भावों को लक्ष्य नहीं बनाते यही कारण है कि वर्षों तक भी धर्म क्रियाएं करते हुए भी व्यक्ति के जीवन में भाव विशुद्ध नहीं बन पाते भावनाओं का आपके जीवन में विशिष्ट महत्व है भावनाओं से आपकी क्रिया प्रभावित होती है भावनाएं अशुभ हो तो आपका उदय आने वाला पुण्य भी पाप रूप में परिवर्तित होकर उदय में आने लगता है।
भावनाओं को शुभ प्रशस्त बनाने के लिए सर्वप्रथम अशुभ निमितों से दूर हटकर शुभ निमितों का आश्रय करना सीखो बंधुओ ध्यान रखना सबसे पहले त्याग का मार्ग जीवन में आता है पश्चात त्याग के फल जीवन में अनुभव आते हैं।
कार्यक्रम दौरान निखिल जैन, रजत जैन, विपिन जैन, रवि जैन, विमल जैन, चित्रा जैन, रजनी जैन, गुंजन जैन, सुनीता जैन आदि लोग मौजूद रहे।

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