जयपुर। राइट टू एजुकेशन प्रत्येक बच्चों को शिक्षा का अधिकार देने वाला कानून अब बच्चों और अभिभावकों के लिए सर दर्द बन चुका है। ना ही आरटीई की पालना हो रही है, ना बच्चों को शिक्षा का अधिकार मिल रहा और ना ही गरीब और जरूरतमंद अभिभावकों को इस कानून का फायदा मिल रहा है ऐसी स्थिति में बच्चों और अभिभावक केवल स्कूलों और सड़कों पर केवल धक्के खा रहे है, दर – दर की ठोकरें खाने पर मजबूर हो रहे है, अभिभावक आरटीई की समस्याओं को लेकर लगातार शिक्षा विभाग में भी चक्कर लगा रहे है किंतु विभाग केवल आश्वासन दे रहा है कार्यवाही कर राहत नहीं पहुंचा रहा है। मंगलवार को जयपुर जिला शिक्षा अधिकारी ने देर शाम 24 निजी स्कूलों के खिलाफ लगातार 14 वा नोटिस जारी किया, जिसमें से 3 नोटिस तो अंतिम चेतावनी के रूप में दिए जा चुके है। उसके बावजूद प्रदेश का निजी स्कूल संचालक ना केवल कोर्ट आदेश की अवहेलना कर रहे है बल्कि शिक्षा विभाग को खुलेआम ठेंगा दिखा रहे है। निजी स्कूलों के इस रवैये साफ अंकित होता ही उनकी नजर में शिक्षा विभाग की कोई अहमियत नहीं है जिसके चलते शिक्षा विभाग भी आरटीई की पालना करवाने करवाने में अनियमिता बरत रहा है इस कारण से प्रदेश का अभिभावक गुमराह हो रहा है और बच्चों को शिक्षा नही मिल रही है।
संयुक्त अभिभावक संघ ने कहा की – शिक्षा विभाग निजी स्कूलों को बार – बार नोटिस जारी कर रहा है केवल नोटिस जारी करने से बच्चों को शिक्षा का अधिकार प्राप्त नहीं होगा, विभाग को अपनी शक्तियों का अहसास निजी स्कूल संचालकों को करवाना होगा और तत्काल कार्यवाही करनी होगी, शिक्षा विभाग अब तक इस सत्र के प्रारंभ से अब तक कुल 14 नोटिस जारी कर चुका है उसके बावजूद स्कूल संचालकों के कानों में जू तक नही रेंग रही है। केवल एनओसी रद्द करने के नोटिस जारी करने से अगर बच्चों को उनका अधिकार मिल जाता तो अभिभावकों को ठोकरें खानी नही पड़ती, अभिभावक अब निजी स्कूलों पर कार्यवाही चाहता है, शिक्षा विभाग कब इन निजी स्कूल संचालकों पर कार्यवाही करेगा, जिससे प्रदेश के सभी निजी स्कूल संचालक जो मनमानी करते है अभिभावकों को प्रताड़ित करते, बच्चों को शिक्षा से वंचित रखते उनमें कड़ा और बड़ा संदेश पहुंच सके की कानून से खिलवाड़ करने की सजा सबको भुगतनी पड़ती है।
प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक जैन बिट्टू ने कहा की – अगर कोई यह सोचता है की हम निजी स्कूलों के खिलाफ है तो यह उनकी गलतफहमी है हम केवल शिक्षा में संपूर्ण सुधार के लिए संघर्ष कर रहे जो अंतिम सांस तक जारी रहेगी। हमारी लड़ाई केवल स्कूलों में कानून की पालना सुनिश्चित करवाने को लेकर है जिन कानूनों को सरकारों ने बनाया है और कोर्ट से भी आदेश मिले है उसके बावजूद भी अगर कानून के साथ खिलवाड़ हो रहा है तो मजबूरन हमें स्कूलों की मान्यता रद्द करने की मांग रखनी पड़ रही है। स्कूल और सरकार की लड़ाई में बच्चों का एक साल पहले ही बर्बाद हो चुका है और इस बार भी उसी तरह की प्रक्रिया को अंजाम दिया जा रहा है जो ना केवल कानून के खिलाफ है बल्कि देश के लोकतंत्र के भी खिलाफ है। यह लड़ाई केवल एक या दो बच्चों के भविष्य को संवारने की नही है बल्कि उन लाखों गरीब और जरूरतमंद अभिभावकों के सपने पूरे करने की जो अपने बच्चों को शिक्षित बनाकर उनका भविष्य संवारना चाहते है। शिक्षा विभाग अब तक केवल खानापूर्ति करता हुआ आ रहा है जिससे निजी स्कूलों को अपनी मनमानी करने का बल मिल रहा है, ऐसी स्थिति में अब विभाग को केवल कार्यवाही करनी चाहिए और एनओसी ही रद्द नही करनी चाहिए बल्कि उनकी मान्यता रद्द कर मनमानी करने वालो को सबक सिखाना चाहिए और कानून की ताकत का अहसास करना चाहिए।