जयपुर। देश में गणतंत्र की स्थापना 26 जनवरी को हुई थी इसलिए प्रत्येक वर्ष गणतंत्र दिवस एक पर्व के रूप में मनाया जाता है, किंतु वर्तमान दौर में गणतंत्र केवल शब्दों में सीमित होकर रह गया है, जिस पर बयानबाजी, भाषणबाजी, कानूनबाजी तो बहुत होती है किंतु जब धरातल पर देखने का वक्त आता है तो केवल ” काला अक्षर भैंस बराबर ” नजर आता है। जिसका जीता जागता उदाहरण देश की शिक्षा व्यवस्था है जिस पर हर साल 3-4 ने कानून तो बन जाते है किंतु पुराने सारे कानून धरे के धरे रह जाते है। शिक्षा व्यवस्था को लेकर संयुक्त अभिभावक संघ का मानना है की ” केंद्र और राज्यों की सरकारों को शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए विभाग की प्रत्येक कार्यप्रणाली में अभिभावकों को शामिल कर गणतंत्र की स्थापना करना चाहिए। जब तक विभाग के प्रत्येक कानून में अभिभावकों के विचारों, सुझावों पर अमल नहीं होगा तब तक देश की शिक्षा व्यवस्था में गणतंत्र की स्थापना भी संभव नहीं है।
प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक जैन बिट्टू के अनुसार केंद्र सरकार की शिक्षा योजना हो या राज्य सरकार की शिक्षा योजना हो सभी योजनाएं राजनीति का शिकार हो रही है और इसलिए सारी व्यवस्थाएं केवल पब्लिकसिटी स्टंट बनकर रह गई है। जिससे शिक्षा व्यवस्थाओं में सुधार कम हो रहा है और एक वायरस के सामान अव्यवथाओं का प्रकोप बढ़ रहा है। जहां देश में शिक्षा का स्तर बढ़ना चाहिए वह ना होकर शिक्षा के व्यापार का स्तर लगातार बढ़ रहा है। केंद्र सरकार वर्ष 2020 में नई शिक्षा नीति लागू की जिसमें सभी वर्गो को शामिल किया किंतु अभिभावकों को शामिल नहीं किया, ठीक इसी तरह आरटीई (राइट टू एजुकेशन 2009) में लागू हुआ इसमें भी सभी वर्गों को शामिल किया किंतु इसमें में अभिभावकों को दरकिनार किया गया, इसी प्रकार राजस्थान सरकार ने वर्ष 2016-17 फीस एक्ट कानून बनाया, इस कानून में अभिभावकों को स्थान तो मिला किंतु आजतक इस कानून की पालना सुनिश्चित नही हुई, जबकि इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट तक के आदेश आ चुके है उसके बावजूद कानून की पालना नही हो रही है।
अभिषेक जैन बिट्टू ने कहा की देश में बेहतर शिक्षा व्यवस्था बनाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कानून बनाना चाहिए जिसमें स्कूल स्तर पर कमेटी का गठन होना चाहिए जिसमें अभिभावकों को शामिल करना चाहिए साथ ही सम्पूर्ण भारत देश में एक सामान शिक्षा होनी चाहिए इसके अतिरिक्त प्रत्येक बच्चे को कक्षा प्री प्राइमरी से 12 कक्षा तक निशुल्क शिक्षा का प्रावधान होना चाहिए। अगर केंद्र सरकार और राज्य सरकारें इन मामलों को कानूनी रूप देकर अमल करवाती है तो निश्चित तौर पर आने वाले 10 से 15 वर्षों के दौरान पूरी दुनिया में भारत एकमात्र ऐसा देश होगा जो शतप्रतिशत साक्षर होगा।