भारत की वसुंधरा पर विभिन्न संस्कृतियों का उद्भव हुआ और सभी समन्वय के साथ पल्लवित होकर प्राणी मात्र को सुगंधित कर रही हैं। यहां समय-समय पर तीर्थंकर भगवंत, देवतुल्य महापुरुष व ऋषि-मुनियों ने जन्म लेकर मिटती हुई मानवता को पुनर्जीवित किया है। अनादि निधन जैन दर्शन में वर्तमान चौबीसी के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान सहित पांच तीर्थंकर व मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी की जन्मभूमि शाश्वत तीर्थ अयोध्या अनंत ऊर्जा से भरपूर है।
जैन शास्त्रों व वेद-पुराणों में उल्लेखित प्रसंगों के अनुसार अयोध्या में ही जन्मे भगवान ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र श्री भरत भगवान के नाम पर ही इस देश का नाम भारत पड़ा। जैन दर्शन के 19वें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतनाथ भगवान के समकालीन मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी के आदर्शों से जीवनयापन करने व शासन चलाने जैसे अनेक प्रेरणादायक उदाहरण सीखने को मिलते हैं।
जन-जन के प्रिय भगवान राम के मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा एक ऐसा प्रसंग है जिसमें समूचा विश्व एकसाथ खड़ा है और इस ऐतिहासिक कार्य की सराहना कर रहा है। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ऐसे अनूठे कार्य को सम्पादित करने में निमित्त बने, उसके लिए वह साधुवाद के पात्र हैं। हम सभी की प्रबल भावना है कि भारतवर्ष में समस्त संस्कृतियां संरक्षित व संवर्धित होती रहे और प्राणी मात्र के कल्याण हेतु अग्रसर रहे।
जैन दर्शन में भी भगवान राम की मान्यता है। जैन ग्रंथ पद्मपुराण (जैन रामायण) के अनुसार भगवान राम आंठवे बलभद्र थे और 63 श्लाका पुरुषों में से एक थे तथा तद्भव मोक्षगामी जीव थे। उन्होंने जीवन के अंत में जैनेश्वरी मुनि दीक्षा धारण कर महाराष्ट्र राज्य में स्थित सिद्ध क्षेत्र मांगीतुंगी से निर्वाण की प्राप्ति कर मनुष्य जीवन सार्थक किया। राम मन्दिर प्राण प्रतिष्ठा का यह आयोजन सभी के लिए मंगलकारी हो, इन्हीं शुभ भावनाओं के साथ…
वीतरागी प्रभुवर राम जी की जय।
दिगम्बर जैनाचार्य अतिवीर मुनिराज
(दिल्ली)