विश्व के सर्वोच्च संत शिरोमणि परम पूज्य आचार्य 108 विद्या सागर जी महामुनिराज के शरद पूर्णिमा के अवसर पर अवतरण दिवस पर कुछ अंतरात्मा से लिखी भावांजलि
जहा त्याग तपस्या संयम शील की बहती निर्मल धारा
वो विद्या गुरु
हमारा
पिता श्री मल्लप्पा जी और मात् श्रीमती के दुलारे
बचपन से विद्याधर ने श्रीजिन वचन उच्चारे
लिया तरुणाई में ब्रह्मचर्य व्रत है यह कितना न्यारा
वो विद्या गुरु हमारा
संसार शरीर और भोगों से जिसने है नेह हटाया
गुरु ज्ञान सागर जी से विद्यासागर जी नाम पाया
चल दिए छोड़ घर बार सभी मुक्ति का पथ उजियारा
वो विद्या गुरु हमारा
जो लोभ मोह और माया से नित नित दूर ही रहते
जीवादी प्रयोजन भूत तत्वों पर नित नित चिंतन करते
जिनकी वाणी ने भेद ज्ञान का अमृत कलश बिखरा
वो विद्या गुरु हमारा
श्री महावीर स्वामी से आप लगते हो लघुनंदन
इस पंचम काल में बांट रहे हो कुंद कुंद का कुंदन
जितने भी शिष्य हुए जगती में उनको नमन हमारा
वो विद्या गुरु हमारा
जिनके सन्मुख उपमा छोटी से छोटी होती जाए
वो मंद मधुर मुस्कान सदा चेहरे पर खिलती आए ‘ पार्श्वमणि’ हम सब मिल करते हैं वंदन जिनका बारंबारा
वो विद्या गुरु हमारा
गुरुरज चरण सेवक रचियता
पारस जैन पार्श्वमणि कोटा 9414764980