सन्तों का आचरण दर्पण के समान होता है। अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी

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वात्सल्य रत्नाकर आचार्य श्री विमल सागर गुरूदेव की 108 वीं जन्म जयन्ती       नमन उदगाव नरेंद्र /पियूष जैन भारत गौरव साधना महोदधि    सिंहनिष्कड़ित व्रत कर्ता अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज एवं सौम्यमूर्ति उपाध्याय 108 श्री पीयूष सागर जी महाराज ससंघ का महाराष्ट्र के ऊदगाव मे 2023 का ऐतिहासिक चौमासा   चल रहा है इस दौरान  भक्त को  प्रवचन  कहाँ की
आज जो भी दौलत है, वो गुरूओं की बदौलत है। इसलिए कबीर को कहना पड़ा –
जो सुख है सत्संग में, वो बैकुण्ठ ना होय।
सन्त वह दर्पण है, जिसमें मनुष्य अपनी कमजोरियों और भूल को देखकर सुधार सकता है। सन्तों का आचरण दर्पण के समान होता है। इसलिए गुरू, सद्गुरू – शास्त्र और सिद्धान्त नहीं देता। शास्त्र और सिद्धान्त देने का काम तो पण्डित और पादरियों का है।सन्त, गुरू तो तप, त्याग, ज्ञान और आचरण देता है। बोध देता है, दिशा देते हैं, देखने को आँख देते हैं, जिससे तुम देख सको कि कहाँ खाई-गढ्ढे हैं और कहाँ समतल राजमार्ग है। तभी तो गुरू चरण में – आचरण की सुगंध है, चारित्र का इत्र है, और स्वयं भगवान बनने के मार्ग पर सतत अग्रसर है।आज गुरू, सद्गुरु की उपलब्धि अत्यन्त दुर्लभ है। हाँ – भगवान से भी ज्यादा दुर्लभ है। कारण कि – सद्गुरु की उपलब्धि के बाद भगवान का मिलना निश्चित हो जाता है। मगर जीवन मिलने पर सद्गुरु मिल ही जाएं, ऐसा कुछ भी तय होता नहीं है। गुरु की उपलब्धि जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। गुरु के रूप में गुरु घंटाल तो बहुत मिल जाएंगे। जो बातों के बादशाह तो है, मगर आचरण के आचार्य नहीं है। आज कल तो ऐसे गुरुओं की भरमार है। जहाँ देखो वहीं गुरु मंत्र बट रहे हैं, वहीं मंत्र दीक्षा हो रही है, वहीं दीक्षा संस्कार हो रहे हैं। ऐसे गुरुओं की बात नहीं कर रहा हूँ। मैं बात कर रहा हूँ, उन गुरुओं की जिनमें गुरु का गुरुत्व है, गुरु की गरिमा है, और गुरु का गौरव है। अतः ऐसे भक्तों को भगवान बनने के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने वाले वात्सल्य रत्नाकर आचार्य श्री विमल सागर गुरूदेव की 108 वीं जन्म जयन्ती के पर्व पर मेरे अनन्त प्रणाम स्वीकार करें…!!!नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद

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