संत महापुरुष अपने तपोबल से ही सिद्धत्व को प्राप्त करते हैं -मुनिश्री विलोक सागर

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संत महापुरुष अपने तपोबल से ही सिद्धत्व को प्राप्त करते हैं -मुनिश्री विलोक सागर
दसलक्षण पर्व में चल रही है दस धर्मों पर व्याख्यान माला

मुरैना (मनोज जैन नायक) पर्यूषण पर्व में बड़े जैन मंदिर में धर्म के दस लक्षणों पर चल रही प्रवचन श्रृंखला में दिगम्बर संत मुनिश्री विलोकसागरजी महाराज ने उत्तम तप धर्म के बारे में व्याख्यान देते हुए कहा कि अपने मन पर, अपने विकारों पर, अपनी भावनाओं पर अंकुश लगाने का नाम ही तप है । इच्छाओं पर पूर्ण नियंत्रण रखना ही तप है। इच्छा निरोधास्तपः अर्थात इच्छाओं का निरोध करना ही तप है । इंद्रियों के विषय विकारों को हटाकर विजय पाना ही उत्तम तप धर्म है। मनुष्य को जीवन में धैर्य और संयम से ऊपर उठकर तपना, पुरुषार्थ करना ही तप है। हमें अपने जीवन में योग, तप, ध्यान, संयम, साधना आदि का पुरुषार्थ करना होगा, तभी आत्मा का परमात्मा से मिलना होगा। यही उत्तम तप धर्म का सार है। उत्तम तप धर्म यानिकि परम तप । तप धर्म का अर्थ हैकि कर्मों को नष्ट करने, आत्मा को शुद्ध करने, शरीर, वाणी और मन को नियंत्रित करना । अंतरंग तप सच्ची श्रद्धा, भक्ति और अहिंसा के साथ किया जाता है, इस तप में शरीर को नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिए । तप से आध्यात्मिक शक्ति, आत्म नियंत्रण और चित्त की शुद्धि में सहायक है, जो आध्यात्मिक उन्नति को गति देता है। शारीरिक और मानसिक तप के माध्यम से भौतिक इच्छाओं से स्वतंत्रता और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करना है। तप के द्वारा ही भगवान महावीर और बुद्ध जैसे महान संतों को ज्ञान प्राप्त हुआ था । तप आध्यात्मिक विकास के लिए आधारशिला है, जिससे मनुष्य सुप्त संस्कारों का जागरण कर आध्यात्मिक शक्ति अर्जित करता है। तप ध्यान, उपवास, और संयम जैसे अभ्यासों से आत्म-अनुशासन और मन व शरीर को शुद्ध करने की एक प्रक्रिया है। तप का उद्देश्य न केवल ऊर्जा प्राप्त करना है, बल्कि उस ऊर्जा को संरक्षित और सुनियोजित करना भी है, जिससे मनुष्य सामर्थ्यवान बनता है।
क्या है उत्तम तप धर्म
आत्मा को पावन व पवित्र बनाए रखने के लिए अपने इष्ट की उपासना, पूजा, भक्ति में लीन हो जाना ही तप कहलाता है । अपनी सामर्थ्य के अनुसार या सामर्थ्य से अधिक व्रत रखना, त्याग करना, भौतिक सुखों को त्यागना ये सब तप की श्रेणी में ही आते हैं। इसमें शारीरिक कष्ट सहना शामिल है, लेकिन यह बुद्धिमत्तापूर्ण और विवेकपूर्ण होना चाहिए । मन को प्रसन्न रखना, मौन रहना और आत्मसंयम का पालन करना भी तप में शामिल है। जैन मुनिराज सदैव तप साधना में मग्न रहते हैं। उन्हें अपने तपोबल से सर्दी, गर्मी का अहसास तक नहीं होता । जैन संत सभी सुख तपस्या से ही प्राप्त करते हैं। अपनी तपस्या से ही वह भूख, प्यास सहित अपनी सभी इंद्रियों को वश में रखते हैं। जैन धर्म के तीर्थंकर महावीर स्वामी को बारह वर्ष की कठोर तपस्या के बाद ही केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
अन्नत चतुर्दशी को आयेगी घर घर से पूजन की थाली
पर्यूषण पर्व के अंतिम दिन प्रत्येक जैन परिवार के यहां से नगर के सभी जिनालयों में अष्टद्रव्य भेजी जाती है ।
नगर का श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन पंचायती बड़ा मंदिर मुरैना नगर में निवासरत सभी जैन धर्मावलंवियों की सर्वमान्य संस्था है । नगर में निवासरत सभी जैन परिवार अनन्त चतुर्दशी को अपने अपने घर से अष्टद्रव्य की थाली भेजते हैं, जिसमें श्री जिनेंद्र प्रभु की पूजन के लिए चावल, गोला, लौंग, इलायची, बादाम, केशर, छुहारे आदि सूखी सामग्री होती है । उक्त सामग्री से वर्षभर श्री जिनेंद्र प्रभु का पूजन किया जाता है ।
सामाजिक परंपरा के अनुसार प्रत्येक परिवार से आने वाली थाली से ही बोटर लिस्ट बनती है और प्रति तीन वर्ष पश्चात इसी सूची से बड़े जैन मंदिर की प्रबंध समिति का निर्वाचन होता है ।

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