नरेंद्र /पियूष जैन (औरंगाबाद ) – परमपूज्य परम तपस्वी अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर’ जी महामुनिराज सम्मेदशिखर जी के स्वर्णभद्र कूट में विराजमान अपनी मौन साधना में रत होकर अपनी मौन वाणी से सभी भक्तों को प्रतिदिन एक संदेश में बताया कि तीन बच्चे सब्ज़ी बेच रहे थे। एक सज्जन ने पूछा- बेटा, पालक है क्या-? बच्चों ने जवाब दिया- बाबू, पालक होते तो आज हम सब्ज़ी नहीं, स्कूल में पढ़ाई कर रहे होते। वो सज्जन बच्चों का जवाब सुनकर आवाक से रह गये।
बचपन में माता पिता का साया उठ जाये तो बच्चों का जीवन ऐसा होता है जैसे बिन डोर की पतंग। संसार में सबसे ज्यादा प्यार और आशीर्वाद बच्चों पर माँ का बरसता है। पिता – सम्बल देता है। गुरू – धर्म और धैर्य देता है। याद रखना! संसार में इनका दूसरा कोई विकल्प नहीं है — जल, वायु, वनस्पति, माता-पिता और जीवनसाथी।जैसे – पंच तत्व का दूसरा कोई विकल्प नहीं है, वैसे ही उन पाँच का विकल्प खोजना यानि आँख खोलकर छींक लेने जैसा ही होगा।
आज इन्सान, कैसी सोच में जी रहा है-? इन्सान अपने मां बाप से सब कुछ लेकर, अपने बच्चों को सब कुछ देना चाहता है। और स्वयं अपना जीवन वृद्धाश्रम में काटना चाहता है…!!!। नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद