संसार में आचार्य श्री विद्यासागरजी की कोई छायाप्रति नहीं, सही समय पर सच्चा गुरू मिलना सौभाग्य।मुनिपुंगव श्री सुधासागर महाराज

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*गौरेला।    वेदचन्द जैन
      संसार में आचार्य श्री विद्यासागर के समान कोई नहीं है।उनकी कोई छायाप्रति नहीं है और न होगी। उनकी प्रतिभा साधना ज्ञान कौशल अद्वितीय थी।निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर महाराज ने आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के उपकारों का स्मरण करते हुये कहा कि जीवन में सही समय पर सच्चा गुरू मिल जाये तो जीवन श्रेष्ठ हो जाता है।निम्न को उच्च स्थान पहुंचाने की क्षमता केवल आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज में थी। सूक्ष्म जीव भी उनकी शरण में अभय पाता था।
           संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के सुयोग्य शिष्य निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागरजी महाराज ने छतरपुर जिला के ग्राम किशनगढ़ में श्रद्धालुओं की सभा में जिज्ञासाओं का समाधान करते हुये कहा हमें आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की कोई छायाप्रति नहीं मिल सकती। उन्होंने जो संस्कार संसार को दिये हमें उन संस्कारों को संस्कृति बनाकर अक्षुण्ण रखना है। आपने कहा कि युवावस्था में सच्चा गुरू मिल जाये तो जीवन श्रेष्ठ बन जाता है। मेरा सौभाग्य था कि मुझे युवावस्था में ही श्रेष्ठतम संत और सर्वश्रेष्ठ गुरू आचार्य महाराज मिल गये और मुझे सही दिशा मिल गई। आचार्य श्री विद्यासागर महाराज प्रतिभा,साधना,ज्ञान,कौशल का एक ऐसा संगम थे कि संसार उन्हें साक्षात कुंदकुंद भगवान मानता था। उनकी चर्या उन्हें चतुर्थ कालीन श्रमण सदृश बनाती है। संसार उन्हें वर्तमान के वर्धमान की उपाधि उनके स्वपरहितकारी चारित्र योग्यता योगदान के कारण देता है।
    मुनिपुंगव श्री सुधासागर महाराज ने बताया कि ऊंचे पहुंचकर भी नीचे की वस्तु को देख लेते थे,निम्न को उच्च बना देना ये सामर्थ्य केवल आचार्य महाराज में ही थी।ऐसी दुर्लभ योग्यता अब अन्यत्र मिल पाना असंभव है। सूक्ष्म जीव भी उनकी शरण में अभत पाता था। कुण्डलपुर में आयोजित आचार्य पद प्रतिष्ठा समारोह समागम के लिये आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के शिष्यों का विहार चल रहा है।मुनिपुंगव श्री सुधासागर महाराज कानपुर से कुण्डलपुर विहार कर रहे हैं।
*वेदचन्द जैन

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