समय धन से अधिक मूल्यवान होता हैं !——वैद्य अरविन्द प्रेमचंद जैन भोपाल

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धन कमाने में श्रम लगता हैं ,लागत लगाना पड़ती हैं या नौकरी में समय ही और भी देना पड़ता हैं। मैं एक विभाग से सेवानिवृत प्रशासकीय अधिकारी के तौर पर हुआ। मेरे कार्यकाल में अधिकांश औषधालय दूरस्थ अंचलों में स्थित हैं। वहां पर पदस्थ अधिकांश चिकित्सक या तो मुख्यालय पर नहीं रहते हैं या थे या औषधालय शासन के आदेशानुसार न जाकर अपनी सुविधा के अनुसार जाते थे। कई बार निरीक्षण करने के उपरान्त कोई सुधार नहीं हुआ। उन चिकित्सकों से कहना रहता था की शासन आपको सब सुविधाएँ देती हैं ,दवा ,अधीनस्थ कर्मचारी यहाँ तक की रजिस्टर और पेन भी देता हैं ,बस आपको समय देना हैं उसके फलस्वरूप वेतन मिलता हैं। एक बार चिंतन किया तो हमारे चिकित्सक राष्ट्रपति महोदय से अधिक वेतन लेते ! राष्ट्रपति महोदय को चौबीस घंटे और तीस दिन काम करने पर मानलो ३ लाख वेतन मिलता हैं और कोई कोई चिकित्सक तीस दिन में चौबीस घंटे काम करते हैं और एक लाख रुपये से अधिक वेतन लेते हैं। इस प्रकार हमारे चिकित्सक राष्ट्रपति से भी अधिक वेतन धारक हैं। मैं अपने विभाग की बात इस आधार पर कह रहा हूँ क्योकि यह मेरी अनुभूति रही हैं। अन्य विभाग भी इसी तरह काम करते हैं या कर रहे हैं। दूरस्थ नहीं बल्कि जिला स्तर पर भी लगभग एलॉपथी डॉक्टर्स की यही स्थिति भी ऐसी हैं या रहती हैं। शिक्षा विभाग में भी इससे अधिक स्थिति गंभीर रहती हैं।
एक बार हमारे नजदीकी रिश्तेदार का बच्चा इंजीनियरिंग पढ़ने आये। वहां पर सेमेस्टर सिस्टम की पढ़ाई होती हैं और एक एक सेमेस्टर में बहुत मोटी मोटी पाठ्यक्रम की पुस्तकें रहती हैं और वह हमेशा घूमता हुआ मिलता ,या टाकीज़ में। उससे एक बार पूछा यार इतना कोर्स होता हैं और तुमको ये सब काम करने का अवसर कैसे मिल जाता तो बोला एक महीने की पढ़ाई में पूरा कोर्स हो जाता। मैं तो एक सेमेस्टर में उपस्थिति कम होने पर मेडिकल आधार पर छूट मिल जाती हैं।
एक दिन वह मेरे पास मिलने आया और पूछा तुम्हारा वार्षिक खरच कितना होता हैं तो बताया फीस और अन्य खरच सहित दो से तीन लाख होता है। मेने कहा आप तो गणित के छात्र हो इसलिए बताओ एक माह का कितना खर्च होता हैं तो उसने
बताया लगभग २५ हज़ार जिसमे फीस ,हॉस्टल फीस ,होटल का खर्च और अन्य खर्च। मैंने पूछा एक दिन का खर्च कितना हुआ लगभग आठ सौ रूपया हुआ और एक घंटे का लगभग तीस रूपया और एक मिनिट का पचास पैसे खर्च होता हैं। इस प्रकार विद्यार्थी जीवन में आप अपने व्यय पर ध्यान दे। यदि आप सिनेमा जा रहे हैं तो चार घंटे का खर्च एक सौ बीस रूपया और टिकिट और अन्य खरच अलग। यदि इस समय आप समय का मूल्य समझना शुरू करे तो आप अपने समय का सदुपयोग कर सकेंगे।
मेरा एक मित्र बहुत सिगरेट पीने वाला ,दिन रात में दो पैकेट पीता वह भी विल्स। एक दिन मेने चर्चा की भाई तुम कब से सिगरेट पी रहे हो तो उसने बताया लगभग पच्चीस वर्षों से। बहुत अच्छा। आजकल एक पैकेट कितने का आता तो बोला पचास रूपया और दो का सौ रूपया अमूमन। एक सिगरेट पीने में लगभग पांच मिनिट तो एक पैकेट में पचास मिनिट और दो में सौ मिनिट। इस प्रकार एक माह में तीन हजार रुपये और ४५ घंटे ,इस प्रकार एकसाल में छत्तीस हज़ार रूपया ,२४ दिन ,पच्चीस साल में ९ लाख रुपये और ६०० दिन के साथ स्वास्थ्य अलग ख़राब हुए बदनामी सहित ,इस अंकगणित से उसकी आँखे खुल गयी।
यदि किसी से आदर्श बदला लेना हो तो उसे चार सीख दे दो। पहली चुनाव लड़वा दो जो व्यक्ति किसी के सामने नहीं झुकता वह सबके सामने झुकता हैं। दूसरा पुराना ट्रेक्टर ,ट्रक खरीदवादो वह सुबह शाम पिंचिस पाना के साथ जुटा रहेगा ,तीसरा उसके ऊपर एक मुकदमा लगा दो तो वह दिन रात कोर्ट के चक्कर लगाता रहेगा और चौथा अनोरोइड मोबाइल दे दो वह दिन रात उसी में उलझा रहेगा। इसमें सबसे अधिक जिम्मेदार सस्ता मोबाइल प्लान होना। बेरोजगारी का होना ,युवाओं का भविष्य के प्रति अनिश्चितता।
बाजार में सब वस्तु मिलती हैं पर हमें उपयोगिता वाली सामग्री खरीदा जाता हैं या चाहिए ,इसी प्रकार मोबाइल ,,टी वी के द्वारा अनावश्यक सामग्री परोसी जा रही पर हम उपयोगी सामग्री का अधिकतम उपयोग करे। पर यह एक प्रकार का लत या व्यसन के कारण आजकल काल्पनिक जीवन जी रहे हैं। वास्तविकता से दूर हैं और पुस्तकों से लगाव न होने से ज्ञान का सृजन नहीं हो पा रहा हैं मात्र सूचना प्राप्त कर रहे हैं वह जीवन में कितना उपयोगी हो सकता हैं। फेस बुक ,व्हाट्सअप में अपनी भड़ांस निकाल बिना किसी नियंत्रण के भेज रहे। और अपने आप को लेखक ,कवि ,चिंतक आदि बनते जा रहे हैं। यदि वह समय ज्ञानार्जन में लगाए ,नौकरी में लगाए तो वे प्रगति कर सकेंगे।
आर्केमिडीज़ का घनत्व का सिद्धांत हैं जब कोई ठोस वस्तु किसी द्रव में डुबाया जाता हैं तो उसके भार में कमी होती हैं वह कमी उस वस्तु के द्वारा हटाए गए द्रव के बराबर होती हैं। इसी प्रकार जब कोई लड़का या लड़की किसी के प्यार में डूबता हैं तो उसकी पढाई में कमी होती हैं जो उसके द्वारा प्राप्त अंकों के बराबर होती हैं ।
इस आधार पर समय का महत्व बहुत अधिक हैं ,बीता हुआ समय वापिस नहीं आता।जिसने समय का सम्मान नहीं किया वह कभी भी विकास नहीं कर पाता हैं। इसीलिए समय धन से अधिक बहुमूल्य हैं।
वैद्य अरविन्द प्रेमचंद जैन, संरक्षक शाकाहार परिषद A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट ,होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026 मोबाइल 09425006753

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