साधुओं की पिछीका का में मोर पंख ही क्यों

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नैनवा जिला बूंदी 1 नवंबर 2023 बुधवार
दिगंबर जैन साधु का पिछिका एक संयम का उपकरण है दिगंबर साधु की मुख्य पहचान मोर पंखी होती है बिना पीछी के जैन साधु नहीं कहलाते जीव की रक्षा का पहला उपकरण पीछी का बताया है
1/पिछी वजन में बहुत हल्की रहती है 2/पसीना आने पर मलीनता नहीं होती 3/मिट्टी नहीं लगती पानी से गीली नहीं होती
4/जिओ की रक्षा का यही एक उपकरण है

पीछी का वर्षा योग समापन होने पर परिवर्तन होती है पुरानी पीछी देव शास्त्र गुरु भक्त को महाराज माताजी प्रदान करते हैं नई पीछी का उन्हीं भक्तों को दी जाती है जो साधुओं की सेवा वर्ती करते हैं देव शास्त्र गुरु भक्त हो उन्हें साधु अपने द्वारा अपने हाथों से भेंट की जाती है जिन घरों में पिछी का रहती है वह घरो में सदा ही मंगल ही मंगल होते हैं
आचार्य कुंदकुंद स्वामी भगवान ने बताया है
मोर ही एक ऐसा जीव है जो वासना से परे है जब मोर नाचने लगता है तभी वह अपने पूरे पंखों को फैला कर मस्त हो जाता है उस समय अपने पंखों से पंख गिरता है उसकी आंखों से आंसू गिरने लगते हैं मोरनी उन आंसुओं को पीने मात्र से गर्भधारण करती है इसीलिए मोरपंखी विशेष रूप से साधुओं की अनोखी पहचान का उपकरण बताया है वासना से परे है
साधु जब रात्रि को विश्राम करते हैं सोते हैं सोने के बाद उठने पर दो इंद्री जीव की रक्षा के लिए साधु सदैव पीछी का उपयोग करते हैं रात्रि में पीछी को जीव रक्षा के लिए मार्जिन करते हैं
बिना पीछे कमंडल के साधु की पहचान नहीं होती और इन दोनों उपकरणों के बिना साधु कभी बिहार नहीं कर सकते यह दिगंबर साधु का बहुत बड़ा जीव दया का संयम उपकरण बताया है

मयूर को भारत सरकार द्वारा पूर्णत सुरक्षित एवं राष्ट्रीय पक्षी की उपाधि प्राप्त है
इस कारण ही साधु की मयूर की पिछीका ही साधु की रक्षा का एक उपकरण बना है

महावीर कुमार जैन सरावगी जैन गजट संवाददाता नैनवा जिला बूंदी राजस्थान

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